एक घंटा पहले
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गिद्ध, नाम सुनते ही एक तस्वीर हमारे मन में उभर कर सामने आती है बड़े शरीर और पंखों वाला बड़ा सा एक पक्षी। जिनका जन्म 90 के दशक में हुआ है उनमें से कई लोगों ने कभी न कभी कहीं न कहीं अपने आसपास इन पक्षियों को देखा ही होगा, परन्तु वर्तमान पीढ़ी ने सिर्फ किताबों या टी.वी .में इसके बारे में पढ़ा, देखा या सुना होगा, या शायद नहीं । गिद्ध, शिकारी पक्षियों की श्रेणी में आने वाले पक्षी हैं, जो वास्तविकता में शिकार नहीं करते, अपितु मृत पशुओं के अवशेषों को खाकर अपना भोजन प्राप्त करते हैं इसलिए इन्हे अपमार्जक (Scavenger) या मुर्दाखोर कहा जाता है, और ये प्रकृति के माहिर सफाईकर्मी भी माने जाते हैं।
गिद्धों का महत्व: पर्यावरण के संतुलन बनाये रखने के लिए हर प्राणी का प्रकृति में एक विशेष महत्व है, परन्तु इस सन्दर्भ गिद्धों की एक अलग ही भूमिका है। गिद्धों को खाद्य श्रृंखला में शीर्ष स्थान प्राप्त है। गिद्ध मृत प्राणियों के अवशेषों को खाकर पर्यावरण को स्वच्छ बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस तरह ये अप्रतक्ष्य रूप से मनुष्यों की सहायता करते हैं एवं कई तरह की गंभीर संक्रामक बीमारियों से मनुष्यों की सुरक्षा करते हैं। अलग अलग समुदायों में गिद्धों का एक अलग सांस्कृतिक-धार्मिक महत्व है। रामायण में जटायु और सम्पाती नामक गिद्ध का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने सीता की खोज के दौरान वन में भगवान श्री राम की सेना की मदद की थी। नेपाल और तिब्बत में रहने वाले लामा अपने पुजारी के आग्रह पर अपने प्रियजनों के शवों को गिद्धों को खाने के लिए छोड़ देते है, पारसी समुदाय के लोग भी अपने प्रियजनों के गुजर जाने के बाद उनके शवों को ”टावर ऑफ़ साइलेंस” में प्रकृति को समर्पित कर देते है, जिनका भक्षण गिद्धों द्वारा कर लिया जाता है।
तालिका 1: भारत के गिद्ध: भारतीय उपमहाद्वीप में गिद्धों की नौ प्रजातियां पाई जाती हैं ।
क्र. |
प्रजाति का नाम |
वैज्ञानिक नाम |
IUCN Status |
|
1 |
लम्बी चोंच वाला गिद्ध, Long billed vulture |
Gyps indicus |
Critically Endangered |
|
2 |
सफ़ेद पीठ वाला काला गिद्ध White rumped vulture |
Gyps bengalensis |
Critically Endangered |
|
3 |
लाल सर वाला या राज गिद्ध Red headed or King vulture |
Sarcogyps calvus |
Critically Endangered |
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4 |
छोटा सफ़ेद गिद्ध Egyptian vulture |
Neophron percnopterus |
Endangered |
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5 |
पतली चोंच वाला गिद्ध Slender billed vulture |
Gyps tenuirostris |
Critically Endangered |
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6 |
हिमालयन गिद्ध Himalayan vulture |
Gyps himalayensis |
Near Threatened |
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7 |
यूरेशियन गिद्ध Eurasian vulture |
Gyps fulvus |
Least Concern |
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8 |
सिनेरियस गिद्ध Cinereous vulture |
Aegypius monachus |
Near Threatened |
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9 |
बेअरडेड गिद्ध या लेमेरगियरर Bearded vulture |
Gypaetus barbatus |
Vulnerable |
गिद्धों पर संकट: एक दौर था जब कहीं भी कोई जानवर मर जाता था तो आसमान इन पक्षियों से भर जाता था, चारों तरफ यही पक्षी नजर आते थे और देखते ही देखते जानवर का मृत शरीर हड्डियों का ढांचा मात्र रह जाता था। मुझे याद है, बचपन के वो दिन जब कई सारे अलग-अलग तरह के गिद्ध मेरे घर के सामने पीपल के वृक्ष में बैठे रहते थे और घरवाले हमें वहां जाने से रोकते थे। न जाने वो सारे गिद्ध कहाँ चले गए। इसी तरह के कई सारे सवाल हर किसी के मन में उठते होंगे की कभी हजारों की संख्या में नजर आने वाला यह पक्षी अचानक से कहां गुम हो गया। इन सवालों के जबाब मुझे मिले जब मैं वन्यजीव संरक्षण की मुहिम से जुड़ा।
90 के दशक के आसपास जीव वैज्ञानिकों ने यह पाया की गिद्धों की संख्या बहुत तेजी से कम हो रही है, खासतौर पर जिप्स प्रजाति के गिद्ध। भारत में पक्षी संरक्षण में काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के अध्ययन में सामने आया की भारत में लगभग 99% गिद्ध समाप्त हो चुके थे। यह एक चिंता का विषय था, कि आखिर कैसे इनकी संख्या में इतनी तेजी से कमी आयी। कई शोधों के पश्चात् यह सामने आया की इसके पीछे किसका हाथ है। गिद्ध मृत जानवरों को खाते हैं, अधिकांशतः मवेशी या पालतू पशु जैसे गाय, भैंस या बकरी आदि उनकी खुराख का हिस्सा हैं। इन्ही पालतू पशुओं के इलाज में प्रयोग होने वाली “डाइक्लोफेनाक सोडियम” नामक दर्द निवारक दवा गिद्धों के लिए घातक सिद्ध हुई। जब बीमार पशु का इलाज इस दवा से किया जाता है, और इलाज के 72 घंटे के भीतर यदि उसकी मृत्यु जाये और ऐसे मृत पशु को यदि गिद्ध खाते हैं तो यह दवा गिद्धों के भीतर जाकर उनके आंतरिक अंगों को ख़राब कर देती है और उनकी मृत्यु हो जाती है। और जैसा की हम जानते हैं की एक मृत पशु के शव से कई सौ गिद्ध अपना भोजन प्राप्त करते हैं, वे सारे गिद्ध इस दवा के असर से प्रभावित हो जाते हैं। डाइक्लोफेनाक सोडियम के अलावा दूसरी अन्य पशुचिकित्सा दवायें भी गिद्धों के लिए हानिकारक हो सकती हैं इस विषय पर अभी कई शोध चल रहे हैं। प्राकृतिक आवास, भोजन की अनुपलब्धता, विषप्रयोग, विध्युतीकरण एवं कई अन्य कारणों से भी गिद्ध आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं

गिद्धों के संभावित खतरों को प्रदर्शित करती हुई कुछ तस्वीरें
गिद्ध संरक्षण के प्रयास: गिद्धों की तेजी से गिरती संख्या वैज्ञानिकों के साथ-साथ भारत सरकार के लिए भी एक चिंता का विषय बन गयी। इनके संरक्षण के लिए कई संस्थाएं सरकार के साथ आगे आईं और वर्ष 2004 में “वल्चर रिकवरी प्लान” बनाया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य इस घातक दवा पर प्रतिबन्ध एवं गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्रों की स्थापना करना था। वर्ष 2006 में भारत में पशु चिकित्सा में डाइक्लोफेनेक के उत्पादन एवं उपयोग पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया गया, साथ ही हरियाणा पश्चिम बंगाल, असम और मध्य प्रदेश में गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्रों की स्थपना की गयी। इन सबके अलावा कई पर्यावरण संस्थाओं ने भी इस दिशा में किसानों, पशुपालकों, डेरी संचालकों एवं दवा विक्रेताओं के बीच जागरूकता अभियान चलाकर गिद्धों के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किये हैं। परन्तु काफी सस्ती एवं असरकारी होने के कारण, कई मुनाफाखोरों के द्वारा मनुष्य के इलाज में आने वाली डाइक्लोफेनेक का उपयोग पशु इलाज में निरंतर जारी रहा, इससे अभी भी गिद्धों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा था। जुलाई 2015 में सरकार ने एक आदेश के द्वारा मनुष्यों के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली डाइक्लोफेनेक सोडियम दवा की शीशी की मात्रा की दर मात्र 3 ML कर दी है। शोधों से यह ज्ञात हुआ है की डाइक्लोफेनेक के अलावा अन्य पशु इलाज की दवायें भी इन पक्षियों के लिए नुकसानदायक हो सकती हैं।

मध्य प्रदेश के गिद्ध एक नजर में : जैव विविधता से परिपूर्ण मध्य प्रदेश में गिद्धों की सात प्रजातियां पाई जाती है: चार रहवासी एवं तीन प्रवासी (तालिका 2)। रहवासी साल भर यही निवास करते हैं एवं अपने घोंसले भी यही बनाते हैं, जबकि प्रवासी गिद्धों का आगमन केवल शीत ऋतू काल में होता है। गिद्धों के संरक्षण हेतु मध्य प्रदेश में काफी सराहनीय प्रयास हुए हैं। पिछले कुछ वर्षों से गिद्धों की संख्या के आंकलन में मध्य प्रदेश देश में अग्रणी रहा है। प्रदेश में गिद्ध गणना की शुरुआत वर्ष 2010 में पन्ना टाइगर रिज़र्व से हुई। वर्ष 2016 में मध्यप्रदेश वन विभाग द्वारा प्रथम प्रदेश व्यापी गिद्ध गणना का आयोजन दो चरण: शीत एवं ग्रीष्म काल में किया गया। शीत काल में कुल 6999 एवं ग्रीष्म काल में 7057 गिद्ध पाए गए। वहीं हाल ही में जनवरी 2019 में किये गए सर्वेक्षण में इनकी संख्या में 12% वृद्धि दर्ज की गयी और इनकी संख्या बढ़कर 7906 तक पहुंच गयी। गिद्धों की संख्या में यह संतोषजनक वृद्धि कई तरह के संरक्षण कार्यों का ही परिणाम है।
तालिका 2: मध्य प्रदेश की गिद्ध प्रजातियां:-
क्र. |
रहवासी |
क्र. |
प्रवासी |
1 |
लम्बी चोंच वाला गिद्ध, Long billed vulture |
1 |
हिमालयन गिद्ध Himalayan vulture |
2 |
सफ़ेद पीठ वाला काला गिद्ध White rumped vulture |
2 |
यूरेशियन गिद्ध Eurasian vulture |
3 |
लाल सर वाला या राज गिद्ध Red headed or King vulture |
3 |
सिनेरियस गिद्ध Cinereous vulture |
4 |
छोटा सफ़ेद गिद्ध Egyptian vulture |
अभी भी देर नहीं हुई है, प्रकृति के इस निशुल्क सफाईकर्मी के अस्तित्व की लड़ाई में हम सब भी अपना योगदान दे सकते हैं व् प्रकृति के इस माहिर सफाई कर्मी को विलुप्त होने से बचा सकते हैं, ज्यादा कुछ नहीं बस डाइक्लोफेनेक एवं इस तरह की दवा जो इनके लिए असुरक्षित हैं उनके प्रयोग को रोक कर, लोगों को इस पक्षी व इसकी उपयोगिता के बारे में जागरूक कर, व जो अन्य संभावित खतरों की जानकारी हासिल कर एवं उनकी रोकथाम कर।
आईये मिलकर कदम बढ़ाये, पर्यावरण को स्वच्छ बनाये, गिद्ध बचाये।
इस मुहीम से जुड़ने या इसका हिस्सा बनने के लिए क्लिक करें

उपरोक्त आर्टिकल WWF-India के प्रोजेक्ट ऑफिसर संदीप चौकसी द्वारा साझा किया गया है
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