नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) की इंदौर विशेष पीठ ने कुछ महीने पहले ही एक बड़ा फैसला सुनाया था. ट्रिब्यूनल ने महेश्वर डैम प्रोजेक्ट को पूरी तरह से बंद करने के साथ ही बांध का ढांचा, टरबाइन, अधिग्रहित जमीन और अन्य संसाधनों सहित करीब 6 हजार करोड़ की संपत्ति नीलाम करने का आदेश दिया है. इस फैसले से क्षेत्र के हजारों लोगों की उम्मीदें टूट गईं, जिन्हें रोजगार और विकास की आस थी.
Local18 से खास बातचीत में क्षेत्र के विश्वदीप मोयदें ने निराशा जताते हुए कहा है, बचपन से इस डेम को बनता हुआ देख रहे है. उम्मीद थी कि एक दिन डैम शुरू होगा और लोगों को रोजगार मिलेगा. क्षेत्र का विकास होगा. इस महत्वपूर्ण परियोजना को बंद नहीं करना चाहिए. सरकार को फिर से डेम का काम शुरू करवाना चाहिए. यशवंत तंवर ने कहा कि, 1974 के आसपास डैम का पेपर वर्क शुरू हुआ था. इसका ऑफिस मेरे घर के पास ही था.
मध्य प्रदेश के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री स्व. सुभाष यादव इस प्रोजेक्ट को लेकर आए थे. हालांकि, हम उस समय छोटे थे तो डर भी लगता था कि, अगर कभी डेम बना और टूट गया तो हमारा क्या होगा? लेकिन फिर धीरे-धीरे एहसास हुआ कि इससे क्षेत्र को काफी फायदा होगा. बिजली बनेगी, और रोजगार बढ़ेगा. 2003 में सत्ता परिवर्तन के बाद से ही परियोजना में ढिलाई शुरू हो गई. लगभग 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है. सरकार को चाहिए कि प्रोजेक्ट पर ध्यान दें और डेम को पूरा किया जाए. बंद करना उचित नहीं है.
संतोष सिंह ठाकुर ने कहा कि, पूरे जिले के लिए महेश्वर जल विद्युत परियोजना महत्वपूर्ण है. इसका बंद होना युवाओं का रोजगार छीनने जैसा है. क्षेत्र का विकास बाधित हुआ अलग. हम भी लगातार ज्ञापन के माध्यम से मांग परियोजना शुरू करने की मांग कर रहे है. चुंकि, नर्मदा बचाव आंदोलन ने परियोजना को काफी प्रभावित किया. जिससे परियोजना को आर्थिक मदद बाधित हुई. लेकिन अब डॉ. मोहन यादव सरकार को डेम का काम शुरू करवाना चाहिए.
परियोजना से जुड़े दुर्गेश राजदीप ने बताया कि, परियोजना की नीलामी के लिए कोर्ट का आदेश हुआ है. लेकिन, यह दिन सरकारों की उदासीनता की वजह से आया है. किसी भी सरकार की इस प्रोजेक्ट के प्रति अच्छी भूमिका नहीं रही. जिसकी वजह से आंदोलन खूब फले फुले. नहीं तो यह डेम ओंकारेश्वर डैम से पहले बन जाता. बाद में परियोजना महंगी हो गई. अब बड़ी समस्या ये है कि, इतने महंगे प्रोजेक्ट को कोई कंपनी खरीदना नहीं चाहती.
क्योंकि, जब बिजली बनेगी तो उसकी लागत भी ज्यादा आएगी, जिसे कोई खरीदेगा नही. ऐसा सबको लगता है. ऐसे में सरकार को गारंटी देनी होगी तभी कोई कंपनी इस प्रोजेक्ट को खरीदेगी. इस प्रोजेक्ट से जुड़े लगभग 450 कर्मचारियों का भविष्य भी दांव पर लगा है. वहीं, परियोजना से जुड़े मुफज्जल हुसैन ने बताया है कि, नीलामी के आदेश के बाद NCLT एक ओर अपील दायर हुई है, जिसमे थोड़ा और समय मांगा है. हालांकि, अभी इसपर कोई निर्णय नहीं आया है.
गौरतलब है कि, महेश्वर जल विद्युत परियोजना की नींव साल 1992-93 में रखी गई थी. यहां 400 मेगावाट बिजली उत्पादन होना था. निर्माण कार्य एस कुमार्स कंपनी को सौंपा गया था और इसकी शुरुआती लागत करीब 450 करोड़ रुपए की थी. लेकिन समय के साथ परियोजना पर खर्च लगातार बढ़ता गया. बार-बार काम बंद होने से लागत बढ़ते-बढ़ते लगभग 7 से 8 हजार करोड़ तक पहुंच गई. इसके बावजूद 32 सालों में प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पाया. न बिजली बनी, न ही लोगों को रोजगार मिला. अब नीलामी के फैसले के बाद लोगों में निराशा देखी गई. वह चाहते है कि, सरकार इसे फिर से शुरू करें.