MP के 15 जिलों की मिट्‌टी में नाइट्रोजन की भारी कमी, फसल उत्पादन पर संकट

MP के 15 जिलों की मिट्‌टी में नाइट्रोजन की भारी कमी, फसल उत्पादन पर संकट


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Khargone News: मध्य प्रदेश में तीन तरह की मिट्टी पाई जाती है. लवणीय, क्षारीय और अम्लीय. लवणीय मिट्टी का पीएच स्तर 8.8 से 9.3 के बीच होता है, इसमें पौधे पर्याप्त पानी नहीं खींच पाते हैं और पत्तियां पीली पड़ जाती हैं.

खरगोन. मध्य प्रदेश के खेतों में मिट्टी की हालत अब बिगड़ने लगी है. ताजा मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि राज्य के 15 जिलों में नाइट्रोजन का स्तर बहुत कम हो गया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर हालात ऐसे ही रहे, तो आने वाले रबी सीजन में गेहूं और चना जैसी मुख्य फसलों की पैदावार में 25 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है क्योंकि नाइट्रोजन पौधों की बढ़वार और अनाज की गुणवत्ता के लिए सबसे जरूरी होता है.

रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश के ग्वालियर, भिंड, मुरैना, शिवपुरी, अशोकनगर, गुना, विदिशा, रायसेन, नर्मदापुरम, हरदा और बैतूल समेत 15 जिलों में मिट्टी में नाइट्रोजन की गंभीर कमी दर्ज की गई है. इनमें से कई जिलों में 70 फीसदी से ज्यादा खेतों की मिट्टी तय मानक से नीचे पाई गई है. कृषि विभाग के अधिकारी मानते हैं कि मिट्टी में लगातार एक ही फसल चक्र अपनाने, रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग और मिट्टी परीक्षण न कराने की वजह से यह असंतुलन बढ़ता जा रहा है.

बीज का अंकुरण भी हो रहा प्रभावित
जबलपुर के मृदा वैज्ञानिक डॉ विरेंद्र स्वरूप द्विवेदी के मुताबिक, नाइट्रोजन की कमी से बीज का अंकुरण कमजोर हो जाता है और पौधों की जड़ें गहराई तक नहीं जातीं. इससे फसल जल्दी पक नहीं पाती और दाने छोटे रह जाते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि शिवपुरी, सागर, नीमच और शहडोल जिलों में फास्फोरस की भी कमी मिली है, जिससे पौधों की जड़ों की वृद्धि रुक जाती है. ऐसे में फसल पूरी तरह तैयार होने से पहले ही कमजोर पड़ जाती है.
कागजों में चल रहीं मिट्टी जांच की लैब
रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि प्रदेश में मिट्टी जांच की कई सरकारी लैब सिर्फ कागजों पर चल रही हैं. कई किसानों को समय पर मिट्टी जांच की रिपोर्ट तक नहीं मिलती. कृषि विज्ञान केंद्र खरगोन के वैज्ञानिक डॉ राजीव सिंह ने कहा कि मिट्टी की जांच इसलिए जरूरी है ताकि किसान को पता रहे कि खेत में कौन से पोषक तत्व कम हैं. जब जांच नहीं होती, तो खाद और पानी का अनुपात गलत पड़ जाता है और फसल की पैदावार घट जाती है, इसलिए किसानों को बुआई से पहले मिट्टी परीक्षण करवाना चाहिए.

जैविक खाद से सुधरेगी मिट्टी की हालत
विशेषज्ञों का कहना है कि नाइट्रोजन की कमी पूरी करने के लिए किसानों को यूरिया एक साथ न देकर किस्तों में देना चाहिए और साथ ही खेतों में गोबर खाद या वर्मी कंपोस्ट मिलाना चाहिए. जिन खेतों में फास्फोरस कम है, वहां बुवाई के समय एसएसपी या डीएपी देना जरूरी है. इसके अलावा पोटाश, जिंक और आयरन की कमी वाले खेतों में संतुलित मात्रा में इन तत्वों को मिलाने से मिट्टी की उर्वरक क्षमता फिर से लौटाई जा सकती है. मिट्टी की सेहत सुधारने के लिए हर तीन साल में एक बार जांच कराना बेहद जरूरी है.

प्रदेश में तीन तरह की मिट्टी
बता दें कि प्रदेश में तीन तरह की मिट्टियां पाई जाती हैं. लवणीय, क्षारीय और अम्लीय. लवणीय मिट्टी का पीएच लेवल 8.8 से 9.3 के बीच होता है, इसमें पौधे पर्याप्त पानी नहीं खींच पाते और पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. क्षारीय मिट्टी का पीएच 9.3 से ऊपर होता है, जो सख्त और दरार युक्त बन जाती है. इस मिट्टी में चना और सरसों की खेती फायदेमंद रहती है. वहीं अम्लीय मिट्टी का पीएच 6.5 से कम होता है, जिससे पौधों की जड़ कमजोर हो जाती है.

Rahul Singh

राहुल सिंह पिछले 10 साल से खबरों की दुनिया में सक्रिय हैं. टीवी से लेकर डिजिटल मीडिया तक के सफर में कई संस्थानों के साथ काम किया है. पिछले चार साल से नेटवर्क 18 समूह में जुड़े हुए हैं.

राहुल सिंह पिछले 10 साल से खबरों की दुनिया में सक्रिय हैं. टीवी से लेकर डिजिटल मीडिया तक के सफर में कई संस्थानों के साथ काम किया है. पिछले चार साल से नेटवर्क 18 समूह में जुड़े हुए हैं.

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