मौसम की बेरुखी ने तोड़ी कमर, गुस्से में किसानों ने सोयाबीन में चराए मवेशी

मौसम की बेरुखी ने तोड़ी कमर, गुस्से में किसानों ने सोयाबीन में चराए मवेशी


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Agriculture News: खरगोन में इस बार बारिश समय पर नहीं हुई. जून-जुलाई में बारिश के इंतजार में खेत सूखते रहे और फिर जब जरूरत नहीं थी, तब झमाझम बारिश हुई. ऊपर से येलो मोजेक ने किसानों की उम्मीदें तोड़ दीं.

खरगोन. मध्य प्रदेश के खरगोन में इस साल मौसम की बेरुखी ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया है. कभी सूखा तो कभी तेज बारिश और फिर पीला मोजेक जैसी बीमारियों का अटैक. इन सबने मिलकर सोयाबीन की पूरी फसल चौपट कर दी. जिले के कई गांवों में हालत इतने खराब है कि एक एकड़ खेत से मुश्किल से एक बोरी (50 किलो से एक कुंतल) उपज मिली है. गुस्से में किसान अब खेतों में मवेशी चराने लगे हैं. कुछ ने रोटावेटर चलाकर फसल को पूरी तरह मिटा दिया.

किसानों का कहना है कि जब मेहनत का फल ही नहीं मिला, तो थ्रेसर चलाने का क्या फायदा. इससे अच्छा तो रोटावेटर चलाएं और अगली फसल की तैयारी करें. दरअसल खरगोन जिले में इस बार बारिश समय पर नहीं हुई. जून-जुलाई में बूंदाबांदी के इंतजार में खेत सूखते रहे और फिर जब जरूरत नहीं थी, झमाझम बारिश हुई. ऊपर से पीला मोजेक वायरस ने किसानों की उम्मीदें तोड़ दीं. खेतों में पत्तियां पीली पड़ने लगीं, दाने नहीं बने और पूरा पौधा सूख गया.

किसानों ने सुनाया दर्द
लोकल 18 से बातचीत में झिरन्या क्षेत्र के किसान आकाश गुर्जर बताते हैं कि दो खेतों में करीब 6 एकड़ में सोयाबीन बोई थी. जब थ्रेसिंग कराई, तो दोनों जगह मिलाकर मुश्किल से एक क्विंटल उपज मिली. वहीं जमना लाल पंवार ने कहा कि थ्रेसिंग का खर्च ही दो हजार रुपये प्रति एकड़ आ रहा है. जब उपज इतनी कम है, तो किसान क्या बचाएगा. श्याम सिंह पवार ने कहा कि 50 किलो से एक कुंतल प्रति एकड़ फसल मिल रही है. ऐसे में किसान मवेशी नहीं चराए, तो क्या करें. रोटावेटर चलाकर खेत खाली कर रहे हैं ताकि रबी सीजन की फसल समय पर बोई जा सके. वहीं किसानों ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर शासन ने मदद नहीं दी, तो आंदोलन ही आखिरी रास्ता बचेगा.

भावांतर योजना में नहीं कराया पंजीयन
किसानों का कहना है कि उन्होंने इस बार भावांतर योजना में नाम ही नहीं लिखवाया. जब खेत में उपज नहीं है, तो योजना का फायदा क्या. नमी वाली सोयाबीन का भाव बाजार में 4500 रुपये कुंतल भी नहीं मिल रहा है. कटाई, थ्रेसिंग और मजदूरी का खर्च उससे कहीं ज्यादा है. किसानों ने सरकार से मांग की है कि सोयाबीन की एमएसपी पर खरीदी की जाए या फिर प्रति एकड़ मुआवजा दिया जाए ताकि वे अगली फसल के लिए फिर से हिम्मत जुटा सकें.

एक्सपर्ट ने बताया फसल बर्बादी का कारण
कृषि वैज्ञानिक डॉ राजीव सिंह लोकल 18 को बताते हैं कि सोयाबीन की बर्बादी कारण खुद किसान हैं. बुआई के समय ही उन्हें बताया जाता है कि बीजोपचार जरूर करें लेकिन किसान ऐसा नहीं करते हैं, जिसकी वजह से फसल में पीला मोजैक जैसी बीमारियां फैलती हैं क्योंकि पीला मोजेक पत्तियों का रस चूसकर वायरस को पौधे में पहुंचा देता है. एक बार संक्रमण बढ़ जाए, तो बीमारी पूरी फसल में फैल जाती है. बारिश की नमी और उमस से यह मक्खी और सक्रिय हो जाती है. अंत में किसान के पास फसल जोतने के अलावा कोई उपाय नहीं बचता.

Rahul Singh

राहुल सिंह पिछले 10 साल से खबरों की दुनिया में सक्रिय हैं. टीवी से लेकर डिजिटल मीडिया तक के सफर में कई संस्थानों के साथ काम किया है. पिछले चार साल से नेटवर्क 18 समूह में जुड़े हुए हैं.

राहुल सिंह पिछले 10 साल से खबरों की दुनिया में सक्रिय हैं. टीवी से लेकर डिजिटल मीडिया तक के सफर में कई संस्थानों के साथ काम किया है. पिछले चार साल से नेटवर्क 18 समूह में जुड़े हुए हैं.

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