‘अभी तो आप जवान हैं, बेटे के लिए कोशिश कीजिए’: ग्रामीण औरतों ने पिता को कहा तो सहम गई, आज 20 लाख बच्चियों को स्‍कूल से जोड़ा

‘अभी तो आप जवान हैं, बेटे के लिए कोशिश कीजिए’:  ग्रामीण औरतों ने पिता को कहा तो सहम गई, आज 20 लाख बच्चियों को स्‍कूल से जोड़ा


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4 मिनट पहले

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‘एक असाइनमेंट पर मैं मसूरी के पास एक गांव में छोटा स्वास्थ्य केंद्र स्थापित कर रही थी। तब मेरे पिता मुझसे मिलने आए। उस गांव की महिलाओं ने उनसे पूछा कि उनके कितने बच्चे हैं। उन्होंने जवाब दिया- ये मेरी इकलौती संतान है! उन महिलाओं के चेहरे उतर गए, मानो बेटी होना कोई त्रासदी हो।

उन्होंने मेरे पिता से कहा कि वे अभी वो जवान हैं और उन्‍हें बेटे के लिए कोशिश करनी चाहिए। यह बात मेरे मन में गहराई से बैठ गई। मैं ये समझने की कोशिश करने लगी कि उस इलाके में बेटियों को कम क्‍यों समझा जाता है, क्‍यों उन्हें बोझ और पढ़ाई के लायक नहीं समझा जाता।’

आज इंटरनेशनल डे ऑफ गर्ल चाइल्‍ड के मौके पर दैनिक भास्‍कर ने बात की ‘एजुकेट गर्ल्स’ NGO की फाउंडर सफीना हुसैन से। पिछले महीने ‘एजुकेट गर्ल्स’ को 2025 के रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। सफीना भारत में पढ़ाई से दूर हो चुकी बच्चियों को वापस स्‍कूल से जोड़ने का काम करती हैं। वो अब तक 20 लाख बच्चियों को स्‍कूल से जोड़ चुकी हैं।

एजुकेट गर्ल्‍स की फाउंडर सफीना हुसैन (बांए) वॉलेंटियर्स गर्ल्‍स के साथ।

एजुकेट गर्ल्‍स की फाउंडर सफीना हुसैन (बांए) वॉलेंटियर्स गर्ल्‍स के साथ।

अपनी जर्नी के बारे में बात करते हुए सफीना बताती हैं- मेरी पढ़ाई में 3 साल का लंबा अंतराल आया था और मैं पढ़ाई से एकदम दूर हो गई थी। लेकिन मुझे दूसरा मौका मिला। मैंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ाई की, और दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और एशिया में वंचित समुदायों के साथ काम किया।

तभी मुझे यह एहसास हुआ कि मेरी शिक्षा ने मुझे मौके दिए, एक आवाज दी। मुझे गहराई से ये बात समझ आई कि भारत में लाखों लड़कियों को ये मौका कभी नहीं मिलता। इसलिए, 2007 में मैंने एजुकेट गर्ल्स (Educate Girls) की शुरुआत की। इसका उद्देश्य यही है कि जैसे मुझे एक मौका मिला, वैसे ही हर लड़की को मौका मिले।

सबसे कठिन इलाकों से काम शुरू किया

मेरा पहला कदम मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD) से संपर्क करना था, जो स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग की देखरेख करता है। MHRD ने मुझसे 26 ऐसे जिलों की एक लिस्‍ट शेयर की, जहां शिक्षा में लैंगिक असमानता ‘गंभीर’ स्तर पर थी। इनमें से 9 जिले राजस्थान में थे। यह साफ था कि मुझे यहीं से काम शुरू करना था।

इस जानकारी के साथ मैं राजस्थान सरकार को ये मनाने में कामयाब रही कि वे हमें अपनी सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले गांवों की 50 सरकारी स्कूलों में काम करने दें। इस तरह Educate Girls की नींव रखी गई।

हमने समस्या पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया। परिवार अपनी बेटियों को स्कूल क्यों नहीं भेज रहे हैं? लड़कियों की शिक्षा को लेकर जो सामाजिक कलंक बना हुआ था, वह एक बहुत बड़ी बाधा थी। हमने परिवारों से मिलना और उनसे बात करना शुरू किया। काम मुश्किल था, लेकिन हमने प्रयास जारी रखे। धीरे धीरे बच्चियों के पेरेंट्स उन्‍हें स्‍कूल भेजने को राजी होने लगे। राज्य सरकार ने ये देखा। दो साल के अंत में, हमें 500 स्कूलों मे काम करने की जिम्मेदारी सौंप दी गई।

हमारी शुरुआत 18 साल पहले, राजस्थान के पाली जिले के लगभग 50 गांवों से हुई थी। तब से, समुदाय और सरकारी संसाधनों की मदद से हमने 20 लाख से ज्‍यादा लड़कियों को स्कूल वापस लाने में मदद की है। साथ ही, 30,000 गांवों में 24 लाख से ज्‍यादा बच्चों की सीखने की क्षमता में सुधार किया है।

सफीना हुसैन ने 1998 से 2004 तक सैन फ्रांसिस्को में चाइल्ड फैमिली हेल्थ इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक के रूप में काम किया। 2007 में वे भारत आ गईं।

सफीना हुसैन ने 1998 से 2004 तक सैन फ्रांसिस्को में चाइल्ड फैमिली हेल्थ इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक के रूप में काम किया। 2007 में वे भारत आ गईं।

टेक्‍नोलॉजी और AI की मदद से हॉटस्‍पॉट पहचानते हैं

डेटा एनालिसिस और AI का उपयोग करके संस्था उन गांवों की सटीक पहचान करती है जहां स्कूल से बाहर रहने वाली लड़कियों की संख्या सबसे ज्‍यादा है। इन्‍हें ‘हॉटस्पॉट्स’ कहा जाता है।

राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के हजारों गांव हॉटस्‍पॉट हैं। हमारा लक्ष्य है अगले 10 साल में भारत के 12 राज्यों में 1 करोड़ बच्चियों तक पहुंचना।

अगले 10 साल में, हम एक ऐसी दुनिया देखना चाहते हैं जहां हर लड़की माध्यमिक शिक्षा पूरी करे। जहां शिक्षा सामान्य हो, अपवाद नहीं, और जहां लैंगिक असमानता यानी लड़के-लड़की में भेदभाव केवल इतिहास की बात बन कर रह जाए।

एजुकेट गर्ल्स अब तक 30 हजार से ज्‍यादा गांवों में काम कर चुकी है। 55,000 से अधिक सामुदायिक वालंटियर्स (टीम बालिका ) की मदद से 20 लाख से ज्‍यादा बच्चियों को स्कूल वापिस लाने और 24 लाख से ज्‍यादा बच्चों की बेहतर पढ़ाई में मदद दी है।

एजुकेट गर्ल्स अब तक 30 हजार से ज्‍यादा गांवों में काम कर चुकी है। 55,000 से अधिक सामुदायिक वालंटियर्स (टीम बालिका ) की मदद से 20 लाख से ज्‍यादा बच्चियों को स्कूल वापिस लाने और 24 लाख से ज्‍यादा बच्चों की बेहतर पढ़ाई में मदद दी है।

दुनिया में 12 करोड़ लड़कियां स्‍कूल से दूर

आज भी दुनिया भर में लगभग 12.2 करोड़ लड़कियां स्कूल से बाहर हैं। हमने देखा है कि कैसे लड़कियां न केवल स्‍कूलों में वापस आई हैं, बल्कि बहुत अच्‍छा प्रदर्शन भी कर रही हैं। कुछ ने तो ओपन स्कूल परीक्षाओं में राज्य में टॉप तक किया है।

Educate Girls में हमने बार-बार देखा है कि जब हम एक लड़की को दोबारा स्कूल लाते हैं और उसे बने रहने और सीखने के लिए मदद देते हैं, तो हम सिर्फ उसका नहीं, बल्कि उसके पूरे समुदाय का भविष्य बदलते हैं।

पिछले दो दशकों में, भारत सरकार ने देश में शिक्षा को लेकर बड़े कदम उठाए हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम जैसी ऐतिहासिक पहल के चलते अब स्कूल देश के सबसे दूरस्थ गांवों तक पहुंच पाए हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और हाल की उल्लास जैसी योजनाओं ने लड़कियों को पढ़ने के बेहतर मौके दिए हैं। फिर भी ये धारणा कि प्राइवेट स्‍कूलों की पढ़ाई, सरकारी स्कूलों से बेहतर है, खत्‍म होनी चाहिए। सरकारी स्‍कूलों की पढ़ाई का स्‍तर भी बेहतर करना जरूरी है ताकि इसमें लोगों का विश्‍वास बन सके।

साथ ही, हमें ओपन स्कूलों की नई कल्पना भी करनी होगी। उन्हें टेक्‍नोलॉजी रेडी, सुलभ, और सस्‍ता बनाना होगा। ओपन स्‍कूल उन बच्‍चों को मौका देते हैं, जो स्कूल छोड़ चुके हैं या कभी स्कूल गए ही नहीं। ये उन्हें सीखने का दूसरा मौका देने में बहुत अहम है।

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