13 मिनट पहले
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2025 के नोबेल पुरस्कारों की घोषणा हो चुकी है। फिजियोलॉजी या मेडिसिन (चिकित्सा), फिजिक्स (भौतिकी), केमिस्ट्री (रसायन विज्ञान) और शांति के विजेताओं के नाम घोषित हो चुके हैं। हर विजेता को 1.1 करोड़ स्वीडिश क्रोनर (यानी लगभग 10.3 करोड़ रुपए), सोने का मेडल और सर्टिफिकेट मिलते हैं।
- 6 अक्टूबर को मेडिसन में मैरी ई. ब्रंकॉ (अमेरिका), फ्रेड राम्सडेल (अमेरिका) और शिमोन साकागुची (जापान) को टी-सेल की खोज ओर पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस पर रिसर्च के लिए नोबेल प्राइज मिला।
- 7 अक्टूबर को फिजिक्स में 3 अमेरिकी वैज्ञानिक, जॉन क्लार्क, मिशेल डेवोरेट, जॉन मार्टिनिस को मैक्रोस्कोपिक क्वांटम टनलिंग पर रिसर्च और एक्सपेरिमेंट के लिए नोबेल प्राइज मिला।
- 8 अक्टूबर को केमिस्ट्री में सुसुमु कितागावा (जापान), रिचर्ड रॉबसन (ऑस्ट्रेलिया) और उमर एम. याघी (अमेरिका) को मेटल ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क्स (MOF) की खोज के लिए नोबेल प्राइज मिला।
आइए समझते हैं कि इम्यून सिस्टम पर रिसर्च को मेडिसन, फिजिक्स ओर केमिस्ट्री में आखिर क्यों मिला है इस साल का नोबेल पुरस्कार।
मेडिसन में इस साल 3 वैज्ञानिकों को नोबेल
साल 2025 का मेडिसिन का नोबेल प्राइज 3 वैज्ञानिकों को मिला है। इन्हें यह पुरस्कार शरीर की रक्षा प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम को बेहतर समझने की खोज और पेरीफेरल इम्यून टॉलरेंस पर रिसर्च के लिए मिला है।

पेरिफेरल इम्यून सिस्टम का मतलब है इम्यून सिस्टम का ऐसा व्यवहार जहां वो शरीर के खुद के टिशू या सेल्स पर हमला नहीं करता हैं। यह सिस्टम जानता है कि कौन से सेल या प्रोटीन हमारे शरीर के हैं।
हमारे इम्यून सिस्टम का काम, बाहरी वायरस, बैक्टीरिया या बाकी हानिकारक फॉरन पार्टिकल्स को पहचान कर उनसे लड़ना हैं। लेकिन कभी-कभी यह सिस्टम गलत तरीके से शरीर के अपने हिस्सों को भी खतरा समझने लगता है, जिससे ऑटोइम्यून रोग (जैसे टाइप 1 डायबिटीज, रूमेटॉयड अर्थराइटिस आदि) हो सकते हैं।
ऐसा न हो इसके लिए ब्रंकॉ, राम्सडेल और साकागुची ने इम्यून सिस्टम के ‘सुरक्षा गार्ड’ यानी रेगुलेटरी टी-सेल्स की पहचान की, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि इम्यून सेल हमारे अपने शरीर पर हमला न करें।
इम्यून सिस्टम को 2 स्तरों पर सेल्फ और नॉन-सेल्फ की पहचान करना सिखाया जाता है।
- सेंट्रल टॉलरेंस : हमारे सीने में मौजूद थाइमस ग्लैंड और बोन मैरो में इम्यून सेल्स को ट्रेन किया जाता है कि वे अपने शरीर के सेल्स और टिशूस पर हमला न करें।
- पेरिफेरल टॉलरेंस : जो सेल्स ट्रेनिंग से बच गईं, उन्हें थाइमस के बाहर कंट्रोल या साइलेंस किया जाता है। इससे इम्यून ओवररिएक्शन को शांत किया जाता है। ऐसा न होने पर इम्यून सिस्टम अपने ही शरीर से लड़ता रहेगा और ऑटोइम्यून डिसीजेज बढ़ेंगी।
पेरीफेरल इम्यून टॉलरेंस सेल्फ एंटिजन की पहचान कर हानिकारक प्रतिक्रिया को रोकता है। यानी ये शरीर के इम्यून सिस्टम को कंट्रोल में रखता है।
इस रिसर्च और इसके रिजल्ट की वजह से फ्यूचर में कैंसर और ऑटोइम्यून रोगों के इलाज और अंग ट्रांसप्लांट को बेहतर बनाने में भी मदद मिलेगी। नोबेल कमेटी ने कहा इनकी खोज ने चिकित्सा विज्ञान को नई दिशा दी है।
क्वांटम टनलिंग की खोज के लिए मिला फिजिक्स का नोबेल
इस साल फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार 3 अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन क्लार्क, मिशेल डेवोरेट, जॉन मार्टिनिस को मिला है। इन्होंने सुपरकंडक्टिंग सर्किट्स में बड़े पैमाने पर क्वांटम फिजिक्स (क्वांटम टनलिंग) के नियमों को दिखाया। यानी बहुत छोटे स्तर पर होने वाली क्वांटम घटनाएं बड़ी मशीनों में भी लागू हो सकती हैं।

क्वांटम टनलिंग वह प्रक्रिया है जिसमें कोई कण किसी बैरियर को कूदकर नहीं बल्कि उसके ‘आर-पार’ होकर निकल जाता है, जबकि सामान्य फिजिक्स के हिसाब से यह असंभव होना चाहिए।
आम जिंदगी में हम देखते हैं कि कोई गेंद दीवार से टकराकर वापस आ जाती है, लेकिन क्वांटम की दुनिया में छोटे कण कभी-कभी दीवार को पार कर दूसरी तरफ चले जाते हैं। इसे क्वांटम टनलिंग कहते हैं।
वैज्ञानिकों ने क्वांटम इफेक्ट को मानव स्तर पर भी साबित किया
रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने कहा कि इन वैज्ञानिकों ने यह साबित किया कि क्वांटम इफेक्ट मानव स्तर पर भी दिखाई दे सकते हैं। दरअसल, फिजिक्स में एक बड़ा सवाल यह रहा है कि क्या क्वांटम इफेक्ट, जो आम तौर पर बहुत छोटे स्तर पर ही दिखते है, बड़े पैमाने पर भी दिखाई दे सकते हैं?
इसके लिए जॉन क्लार्क, मिशेल डेवोरेट और जॉन मार्टिनिस ने साल 1984 और 1985 में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में एक खास प्रयोग किया—
- उन्होंने दो सुपरकंडक्टर (ऐसे पदार्थ जो बिना रुकावट बिजली चला सकते हैं) से एक बिजली का सर्किट बनाया।
- इन दोनों सुपरकंडक्टरों के बीच में एक पतली परत थी, जो बिजली को रोकती थी।
- फिर भी, उन्होंने देखा कि सर्किट में मौजूद सभी चार्ज किए हुए कण एक साथ मिलकर ऐसा व्यवहार करते थे, जैसे वे एक ही कण हों।
- ये कण उस पतली परत को पार कर दूसरी तरफ जा सकते थे, जो क्वांटम टनलिंग का सबूत था।
- इस प्रयोग से वैज्ञानिकों ने यह कंट्रोल करना और समझना सीखा कि क्वांटम टनलिंग बड़े सिस्टम में कैसे काम करती है।
यह खोज क्वांटम कंप्यूटिंग और नई तकनीकों के लिए बहुत बड़ी बात है क्योंकि ये खोज बताती है कि क्वांटम असर सिर्फ छोटे-छोटे परमाणुओं तक ही सीमित नहीं है। बड़े और आम तरह के सिस्टम में भी क्वांटम नियम काम कर सकते हैं। इससे हमें समझने में मदद मिलेगी कि छोटी (क्वांटम) और बड़ी (क्लासिकल) दुनिया आपस में कैसे जुड़ी हुई है।
सुपरकंडक्टिंग सर्किट्स वो टेक्नोलॉजी है जिस पर क्वांटम कंप्यूटर बनते हैं। इस रिसर्च से ऐसे डिवाइस बनाना आसान होगा जो क्वांटम बिट्स को संभाल सकें। यही क्वांटम कंप्यूटर की नींव है।
इस खोज से सिक्योरिटी और डेटा प्रोटेक्शन में भी बड़ा बदलाव आ सकता है। बहुत ही छोटे मैग्नेटिक सिग्नल पकड़ने वाले सेंसर्स और बेहद सटीक मेजर करने वाली मशीनें बन सकेंगी।
कुल मिलाकर, इस रिसर्च से क्वांटम टेक्नोलॉजी जैसे क्वांटम कंप्यूटर, क्वांटम कोडिंग और क्वांटम सेंसर्स, को तेजी से आगे बढ़ने में मदद मिलेगी। साथ ही ये मेडिकल फील्ड में भी काम आ सकता हैं। क्वांटम सेंसर्स से शरीर के बहुत छोटे बदलाव भी पकड़े जा सकेंगे, जिससे बीमारियों का जल्दी पता चल सकेगा।
मेटल ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क्स की खोज के लिए केमिस्ट्री का नोबेल
यह नोबेल पाने वाले वैज्ञानिकों ने ऐसे एटम बनाए हैं जिनमें बड़े-बड़े खाली हिस्से होते हैं, जिनसे गैस और अन्य रासायनिक पदार्थ आसानी से गुजर सकते हैं।

इसे ऐसे समझिए की इन वैज्ञानिको ने ऐसे एटम की खोज की हैं जो एक स्पॉन्ज की तरह हैं मगर मैक्रोस्कोपिक स्पॉन्ज। जैसे स्पॉन्ज में खाली जगह होती हैं हवा या पानी के लिए, ऐसे ही इस एटम में, एक नेटवर्क की तरह, छोटे होल्स या पोर्स यानी खाली जगह हैं, जहां गैस या अन्य पदार्थ स्टोर किए जा सकते हैं।
ये एटम मेटल या ऑर्गेनिक (कार्बन-बेस्ड) मॉलिक्यूल से बना है। इन संरचनाओं को मेटल ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क्स (MOF) कहते हैं। इसमें ऐसे क्रिस्टल बनते हैं, जिनमें बड़े खाली हिस्से होते हैं। ये खास तरह से डिजाइन किए जा सकते हैं ताकि वे किसी खास चीज को कैप्चर या स्टोर कर सकें।
केमेस्ट्री का नोबेल प्राइज देने वाली कमेटी ने MOF को हैरी पॉटर सीरीज में हरमाइनी के बैग से कंपेयर किया है। कमेटी मेंबर्स ने कहा जैसे हरमाइनी का मोतियों से बना बैग बाहर से दिखने में छोटा लगता है लेकिन अंदर से काफी बड़ा है और काफी चीजें उसमें समा सकती हैं। इसी तरह MOF भी दिखने में छोटे लेकिन अंगर से काफी बड़े हैं।
ये रिसर्च इतनी बड़ा और जरूरी इसलिए है क्योंकि इनका इस्तेमाल कई तरह से किया जा सकता हैं। जैसे—
- रेगिस्तान की हवा से पानी निकालने में: इस एटम का इस्तेमाल कर, सूखी हवा से भी नमी को पकड़कर पानी निकाला जा सकता है।
- पानी से हानिकारक रसायन हटाने में: यह एटम कोई भी प्रदूषित पार्टिकल को अपने अंदर स्टोर कर पानी को साफ और पीने लायक बना सकती हैं।
- हवा से CO₂ हटाने में: यह मेटल ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क्स (MOF), कार्बन डाइऑक्साइड निकालकर, अपने अंदर स्टोर कर सकती हैं और हवा को साफ रखा जा सकता है।
- हाइड्रोजन या मीथेन गैस स्टोर करने में: इस एटम में, इन गैसों को सुरक्षित और कम जगह में रखा जा सकता है।
- शरीर में दवा पहुंचाने में: इस एटम में स्टोर्ड दवा को शरीर में सही जगह और धीरे-धीरे दिया जा सकता है।
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