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Satna News: सतना का भुंजवा मोहल्ला 150 साल पुरानी भुने चनों की परंपरा और 20 से ज्यादा भुने आइटम्स के लिए मशहूर है, लेकिन आधुनिकता के चलते इसकी पहचान खतरे में है. जानें सब
Satna News: सतना शहर में एक ऐसा मोहल्ला है, जिसका नाम सुनकर लोग चकरा जाते हैं. यह जगह अपने अजब-गजब नाम और 150 साल पुरानी भुने चनों की परंपरा के लिए मशहूर है. इसे स्थानीय भुंजवा मोहल्ला के नाम से जानते हैं. पीढ़ियों से चलता आ रहा यह कारोबार आज अपनी पुरानी कला को भूलता दिखाई दे रहा है. हालांकि, आज भी यहां की गलियों में भुने चनों और सत्तू की खुशबू लोगों को खींच लाती है.
स्थानीय व्यापारी रावेंद्र भुंजवा ने लोकल 18 को बताया कि उनके परिवार को इस काम को करते हुए सौ साल से भी ज़्यादा समय हो गया है. पहले के समय में यहां लगभग हर घर इसी काम से जुड़ा था. लोग इतने बड़े पैमाने पर चने और अन्य अनाज भूंजते थे कि धीरे-धीरे इस मोहल्ले को ही भुंजवा मोहल्ला कहा जाने लगा. उस दौर से अब तक यह पहचान कायम है.
भुने आइटम्स की विविधता
भुंजवा मोहल्ला सिर्फ भुने हुए चनों तक ही सीमित नहीं है. यहाँ आज भी करीब 20-25 प्रकार के भुने आइटम्स उपलब्ध हैं. इनमें चना, सत्तू, मूंगफली, मटर, पॉपकॉर्न, लाई, गुड़ या नमक वाला सेव आदि शामिल हैं. त्योहारो और मेलों के समय इनकी डिमांड और बढ़ जाती है. कई लोग अपने परिवार के साथ यहां आकर परंपरागत स्वाद का आनंद लेते हैं.
बदलते दौर और घटती परंपरा
हालांकि समय के साथ परंपरा में बदलाव भी आया है. रावेंद्र भुंजवा ने चिंता जताई कि नगर निगम द्वारा पुरानी भट्टियाँ बंद कर दी गई हैं और नई आधुनिक भट्टियों का इस्तेमाल शुरू हो रहा है. अब सिर्फ 10-12 परिवार ही खुद से भूनने का काम कर रहे हैं, जबकि बाकी व्यापारी कटनी, रीवा और जबलपुर से भुना हुआ सामान मंगवाकर बेचते हैं. पिछले 50 साल से इस काम से जुड़ी महिला व्यापारी देवी भुंजवा बताती हैं कि उनके सास-ससुर और उनके माता-पिता भी यही काम करते थे. उनका कहना है कि यह सिर्फ एक व्यवसाय नहीं बल्कि एक परंपरा है और वो इसे निभा रही है.
स्थानीय लोगों की यादें
मोहल्ले के निवासी सुनील केशरवानी ने कहा कि पहले हर घर में चना भूनने की आवाज़ और खुशबू गूंजती थी लेकिन अब मशीन और बाहर से आए माल ने इस परंपरा को कमजोर कर दिया है. उन्होंने यह भी बताया कि उनका परिवार सौ साल से यहाँ से खरीदारी करता आ रहा है और पहले यहीं पर पुरानी मंडी भी लगती थी.
पहचान बचाने की चुनौती
आज भुंजवा मोहल्ला आधुनिकता की रफ्तार में अपनी पुरानी पहचान खोने की कगार पर है. परंपरागत तरीके से भुने गए चनों का स्वाद अब भी लोगों को आकर्षित करता है लेकिन इसकी असली विरासत को बनाए रखना आने वाली पीढ़ियों के लिए चुनौती है.
एक दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय. प्रिंट मीडिया से शुरुआत. साल 2023 से न्यूज 18 हिंदी के साथ डिजिटल सफर की शुरुआत. न्यूज 18 के पहले दैनिक जागरण, अमर उजाला में रिपोर्टिंग और डेस्क पर कार्य का अनुभव. म…और पढ़ें
एक दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय. प्रिंट मीडिया से शुरुआत. साल 2023 से न्यूज 18 हिंदी के साथ डिजिटल सफर की शुरुआत. न्यूज 18 के पहले दैनिक जागरण, अमर उजाला में रिपोर्टिंग और डेस्क पर कार्य का अनुभव. म… और पढ़ें