किसान भाइयों! अगर आप हर साल गेहूं या चने की खेती करते-करते अब ऊब चुके हैं और बढ़ती लागत के बावजूद मुनाफा नहीं मिल पा रहा है, तो अब वक्त है फसल बदलने का. आज हम बात कर रहे हैं मसूर की खेती (Lentil Farming) की — जो कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल मानी जाती है. यह दाल भारत में सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली दालों में से एक है और बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है. मध्यप्रदेश के किसान भागीरथ पटेल ने पारंपरिक गेहूं और चने की खेती छोड़कर मसूर की खेती शुरू की, जिससे उन्हें उम्मीद से कई गुना ज्यादा लाभ हुआ. उनका कहना है कि मसूर की फसल ने उनकी आर्थिक स्थिति सुधार दी और अब वे हर सीजन में इसके क्षेत्र को बढ़ा रहे हैं.
मसूर एक ऐसी फसल है जो कम पानी और कम देखभाल में भी अच्छी उपज देती है. यह रबी सीजन की फसल है, जिसे अक्टूबर-नवंबर में बोया जाता है और मार्च-अप्रैल तक तैयार हो जाती है. मसूर की खास बात यह है कि यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है क्योंकि इसकी जड़ों में मौजूद राइजोबियम बैक्टीरिया हवा से नाइट्रोजन को खींचकर मिट्टी में मिलाते हैं.
खेती के लिए सही जमीन और जलवायु
मसूर की फसल दोमट या बलुई दोमट मिट्टी में सबसे अच्छी होती है. खेत में पानी का निकास अच्छा होना चाहिए क्योंकि मसूर की फसल में जलभराव नुकसानदायक होता है. ठंडी और सूखी जलवायु में यह फसल बेहतर होती है. तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच रहने पर इसकी वृद्धि शानदार होती है.
बीज की बुआई और किस्में
किसान उच्च गुणवत्ता वाले प्रमाणित बीजों का चयन करें. भारत में लोकप्रिय किस्में हैं — MPL-62, JL-3, और Pusa-1201. एक हेक्टेयर खेत में लगभग 35 से 40 किलोग्राम बीज पर्याप्त होते हैं. बीजों को बुवाई से पहले फफूंदनाशक दवा से उपचारित करना जरूरी है, जिससे फसल में रोग न लगें.
सिंचाई और खाद प्रबंधन
मसूर की फसल में केवल 2 से 3 बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है. पहली सिंचाई फूल आने पर और दूसरी दाना बनने के समय करनी चाहिए. जैविक खाद जैसे गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग करने से उत्पादन और गुणवत्ता दोनों बढ़ती है.
रोग और कीट नियंत्रण
फसल में फफूंद, पत्ती झुलसा और कीटों का प्रकोप हो सकता है. इसके लिए समय-समय पर जैविक छिड़काव जैसे नीम तेल का उपयोग करें. इससे फसल सुरक्षित रहती है और रासायनिक अवशेष भी नहीं रहते.
बाजार और मुनाफा
मसूर की मांग हर मौसम में बनी रहती है. बाजार में इसका भाव ₹100 से ₹130 प्रति किलो तक पहुंच जाता है. अगर किसान एक हेक्टेयर में मसूर की खेती करते हैं तो उन्हें लगभग 10 से 15 क्विंटल उपज मिल सकती है. इससे कुल आय ₹1.2 से ₹1.8 लाख तक हो सकती है, जबकि लागत केवल ₹25-30 हजार तक आती है. यानी मुनाफा दोगुना से भी ज्यादा!
मसूर की खेती आज के समय में किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर बन सकती है. कम सिंचाई, कम लागत और बढ़िया दाम — ये तीन बातें इसे “खेतों का सोना” बना देती हैं. किसान अगर गेहूं-चना जैसी परंपरागत फसलों से हटकर मसूर की खेती अपनाते हैं, तो न सिर्फ उनकी आमदनी बढ़ेगी बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी सुधरेगी. इस रबी सीजन, अपने खेत में उगाइए मसूर और कमाइए तगड़ा मुनाफा — क्योंकि अब खेतों में उगेगा असली सोना!