एमपी में त्योहार के वक्त निजी बस ऑपरेटर्स यात्रियों से चार से पांच गुना ज्यादा किराया वसूल करते हैं। ये किराया हवाई जहाज के किराए के बराबर हो जाता है, लेकिन यात्रियों की सुरक्षा न के बराबर होती है। इसी को देखते हुए 16 अक्टूबर को प्रदेश के परिवहन मंत्
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इस बैठक में अमले को निर्देश दिए गए कि यात्रियों से मनमाना किराया न वसूला जाए, साथ ही ये भी देखा जाए कि बसों में सुरक्षा मानकों का पूरी तरह पालन किया जा रहा है या नहीं। परिवहन मंत्री के निर्देश का कितना पालन हो रहा है?
ये देखने के लिए भास्कर ने भोपाल, इंदौर, जबलपुर और अन्य प्रमुख रूट पर चलने वाली एसी और डीलक्स बसों की जमीनी हकीकत देखी। इस पड़ताल में पाया कि ऐसे किसी नियम का पालन नहीं किया जा रहा है। पढ़िए रिपोर्ट…
परिवहन विभाग की बैठक लेते परिवहन मंत्री राव उदयप्रताप सिंह।
अब जानिए क्या है बसों में सुरक्षा के हाल
भास्कर ने भोपाल से इंदौर, जबलपुर, पुणे, मुंबई जैसे प्रमुख रूट पर चलने वाली बसों की जमीनी हकीकत देखी तो पता चला कि हजारों रुपए देकर यात्री अपनी जान जोखिम में डालकर इन बसों में सफर कर रहे हैं। भास्कर को पड़ताल में चार प्रमुख खामियां नजर आईं।
1.आपातकालीन दरवाजे नदारद: ज्यादातर बसों में आपातकालीन दरवाजे (इमरजेंसी गेट) ही नहीं हैं। कुछ बसों में सीटों के नीचे एक छोटा सा गेट बना दिया गया है, जिसे आपात स्थिति में खोजना और खोलना लगभग असंभव है।
2.अग्निशमन यंत्र सिर्फ दिखावा: बसों में अग्निशमन यंत्र तो लगे मिले, लेकिन जब हमने कंडक्टर से पूछा कि आग लगने पर इसका इस्तेमाल कैसे करेंगे, तो उसे कोई जानकारी नहीं थी। ड्राइवर को थोड़ी-बहुत ट्रेनिंग दी गई है, लेकिन कंडक्टर और अन्य स्टाफ पूरी तरह अनजान हैं।

बसों में आपातकालीन गेट के नाम पर बस एक छोटा सा दरवाजा है। जो हादसे के वक्त खुलेगा या नहीं इसकी कोई गारंटी भी नहीं।
3.संकरे रास्ते और जानलेवा शीशे: बसों के अंदर गैलरी (आने-जाने का रास्ता) इतनी संकरी है कि दो लोग एक साथ निकल भी नहीं सकते। भगदड़ की स्थिति में यहां से निकलना नामुमकिन है। इसके अलावा, खिड़कियों में लेमिनेशन वाले ग्लास लगे हैं, जो बेहद मजबूत होते हैं और हादसे के समय आसानी से नहीं टूटते। इसका मतलब है कि अगर दरवाजा जाम हो जाए, तो यात्री अंदर ही फंस जाएंगे।
4.यात्रियों को जानकारी नहीं: सबसे बड़ी लापरवाही यह है कि यात्रियों को बोर्डिंग के समय आपातकालीन सुरक्षा उपायों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती। भोपाल से इंदौर जा रहे नितेश पाटीदार ने कहा, ‘मुझे इस बस में इमरजेंसी गेट कहां है, यह नहीं पता। न ही ड्राइवर या कंडक्टर ने कुछ बताया है। हमें तो सिर्फ आगे और ड्राइवर साइड वाले गेट के बारे में ही पता है।’

इमरजेंसी एग्जिट के लिए ग्लास हैं, लेकिन ये लेमिनेटेड हैं।
इमरजेंसी गेट की जगह सीटें, हादसों से नहीं लिया सबक कई बसों में यह भी पाया गया कि जहां इमरजेंसी गेट होना चाहिए था, वहां अतिरिक्त कमाई के लिए सीटें लगा दी गई हैं। वॉल्वो और एसी स्लीपर बसों में पीछे का हिस्सा पूरी तरह से बंद होता है, जिससे आग लगने या धुआं भरने की स्थिति में बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं बचता।
राजस्थान में हाल ही में हुए एक बस हादसे में 20 यात्री बस के अंदर जिंदा जल गए , क्योंकि बस का ऑटोमैटिक दरवाजा लॉक हो गया था और खिड़कियों के शीशे नहीं टूटे थे। हमारी पड़ताल में भोपाल और इंदौर से चलने वाली कई बसों में यही जानलेवा जोखिम मौजूद है।
भास्कर ने पुणे रूट पर चलने वाले वॉल्वो बस के कंडक्टर यश नागले से बात की तो उसने बताया कि वॉल्वो एसी बस में केवल एक गेट ही होता है। कोई इमरजेंसी गेट नहीं होता। ये पूछने पर कि यदि बस हादसे का शिकार हो जाए तो यात्रियों को बस से निकलने में कितना समय लगेगा? यश ने बोला कि कम से कम 15 मिनट लगेंगे।

यात्री बसें बनीं मालगाड़ी, ओवरलोडिंग से बढ़ा खतरा लंबी दूरी की ये बसें अब सिर्फ यात्रियों को ही नहीं, बल्कि भारी मात्रा में पार्सल भी ढो रही हैं। बसों की छतों और डिक्की में सैकड़ों क्विंटल का सामान लादा जा रहा है। इससे न केवल बसों का संतुलन बिगड़ता है, बल्कि आग लगने या बस के पलटने का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है। इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
चार से पांच गुना ज्यादा किराया वसूल रहे
बसों में सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है और बस ऑपरेटर यात्रियों से मनमाना किराया वसूल रहे हैं। इंदौर, भोपाल, जबलपुर, रीवा, गुना, शिवपुरी, छिंदवाड़ा से लेकर मुंबई, हैदराबाद और अहमदाबाद जैसे लंबे रूट पर चलने वाली बसों का किराया सामान्य दिनों के मुकाबले चार से पांच गुना तक बढ़ा दिया गया है।
उदाहरण के तौर पर, भोपाल से रीवा का किराया जो आम दिनों में 800 से 1000 रुपए होता है, वह अब 3100 से 3700 रुपए तक वसूला जा रहा है। इसी तरह, इंदौर से रीवा तक का 800 रुपए का किराया 3700 रुपए के पार पहुंच गया है। एक बस ऑपरेटर ने भास्कर को बताया, ‘दिवाली पर मांग इतनी ज्यादा है कि लोग 8 हजार रुपए तक देने को तैयार हो जाते हैं।’

ऑनलाइन एप्स पर भी बढ़ा हुआ किराया भोपाल के आईएसबीटी बस स्टैंड पर हमें सीधी की रहने वाली सुनीता सिंह मिलीं, जो रीवा जाने वाली बस का इंतजार करते-करते थक चुकी थीं। उन्होंने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा, ‘रीवा जाने के लिए ट्रेन में टिकट नहीं मिला, तो सोचा बस से चली जाऊं। दोपहर से यहां बैठी हूं, लेकिन कोई बस नहीं मिल रही।
जो बसें मिल भी रही हैं, वे चार से पांच गुना किराया मांग रही हैं। हम तीन लोग हैं, इतना महंगा टिकट कैसे लें? अब रात 9 बजे तक इंतजार करूंगी, शायद कोई कम किराए वाली बस मिल जाए।’ बस स्टैंड पर ऐसे कई यात्री भटकते नजर आए। बस टिकट बुकिंग ऐप्स और वेबसाइटों पर भी यह लूट खुलेआम जारी है।

एक्सपर्ट बोले- परिवहन अमला जिम्मेदारी नहीं निभा रहा ट्रांसपोर्ट मामलों के एक्सपर्ट श्याम सुंदर शर्मा कहते हैं कि रोड ट्रांसपोर्टेशन एक्ट के तहत साधारण, एसी और डीलक्स सभी तरह की बसों का किराया फिक्स्ड होता है। नियम के मुताबिक ये बसें जिस स्टेंड से ऑपरेट होती है, वहां किराया सूची लगाया जाना चाहिए। बस में भी किराया सूची लगी होनी चाहिए। यात्रियों से ज्यादा किराया वसूला जा रहा है उसके लिए परिवहन विभाग ही दोषी है।
बसों का नियंत्रण और रेगुलेशन की जिम्मेदारी विभाग की है। जो मैदानी अमला है वो कभी कभार ही इस पर एक्शन लेता है। अभी विभागीय मंत्री ने बैठक ली है तो पिछले दो से तीन दिनों में इंदौर में जरूर किराए को लेकर कार्रवाई की गई है, लेकिन ये बात परिवहन अमले को हर बार बताना क्यों पड़ती है? ऐसी ही स्थिति सुरक्षा को लेकर भी है।
बसों में आपातकालीन दरवाजे होने चाहिए, लेकिन एसी बसों में ऐसे दरवाजे नहीं होते। आग लगने जैसी स्थिति में यात्री बाहर निकल नहीं पाते। बस हादसों के लिए भी परिवहन एजेंसियां ही जिम्मेदार होती हैं। बस हादसों के बाद जो जिम्मेदार है, उन पर कार्रवाई हो, उनको कठोर दंड दिया जाए।

परिवहन विभाग में ये हैं जिम्मेदार
- परिवहन विभाग के प्रमुख सचिव: प्रदेश में परिवहन नीति, योजनाओं और किराया विनियमन पर अंतिम निर्णय लेने वाले सर्वोच्च अधिकारी। उनकी जिम्मेदारी है कि वे यह सुनिश्चित करें कि नियम-कानून सिर्फ कागजों पर न रहें, बल्कि जमीन पर भी लागू हों।
- ट्रांसपोर्ट कमिश्नर : प्रदेश में यात्रियों से मनमाना किराया वसूले जाने और सुरक्षा नियमों के उल्लंघन पर कार्रवाई की निगरानी करना इनका मुख्य काम है। सड़क सुरक्षा अभियान चलाना और नियमों का उल्लंघन करने वालों पर सख्त कार्रवाई करना इनकी जिम्मेदारी है।
- डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर (संभागीय): हर संभाग में किराया निर्धारण समिति के अध्यक्ष होने के नाते, इनकी सीधी जिम्मेदारी है कि वे अपने क्षेत्र में किराए की मनमानी को रोकें।
- क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (RTO): जमीनी स्तर पर मोटर वाहन अधिनियम को लागू करने और वाहनों की फिटनेस जांचने के लिए RTO सीधे तौर पर जिम्मेदार है। टूरिस्ट परमिट की आड़ में चल रहे इस गोरखधंधे को रोकना इनका काम है।
- जिला कलेक्टर: स्थानीय प्रशासन के मुखिया होने के नाते, त्योहारों के दौरान यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा सुनिश्चित करना कलेक्टर का दायित्व है। उन्हें RTO और पुलिस के साथ समन्वय बनाकर निरीक्षण दल सक्रिय करने चाहिए और मनमानी करने वाले ऑपरेटरों पर कार्रवाई करनी चाहिए।
