मध्य प्रदेश में मेडिकल शिक्षा का दायरा अब और बड़ा होने जा रहा है। राज्य सरकार ने 9 जिला अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज में बदलने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। 2340 करोड़ रुपए के PPP प्रोजेक्ट के तहत हर जिले में 100 MBBS सीटें जोड़ी जाएंगी, जिससे प्रदेश में
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सरकार का दावा है कि यह मॉडल वित्तीय बोझ घटाएगा और स्वास्थ्य सेवाओं को जिला स्तर पर सशक्त बनाएगा। हालांकि, डॉक्टरों के एक वर्ग ने चेताया है कि निजी प्रबंधन के कारण शिक्षा की गुणवत्ता और पारदर्शिता पर निगरानी बेहद जरूरी है।
9 जिलों में खुलेंगे मेडिकल कॉलेज मध्य प्रदेश सरकार ने शाजापुर, खरगोन, भिंड, मुरैना, नरसिंहपुर, सीधी, टीकमगढ़, अशोकनगर और गुना जिलों में नए मेडिकल कॉलेज खोलने की मंजूरी दी है। हर कॉलेज को संबंधित जिला अस्पताल से जोड़ा जाएगा ताकि पहले से मौजूद इमारतों और संसाधनों का बेहतर उपयोग हो सके। सरकार का उद्देश्य है कि हर जिले में चिकित्सा शिक्षा और इलाज दोनों एक ही छत के नीचे उपलब्ध हों।
सरकार का उद्देश्य है कि हर जिले में चिकित्सा शिक्षा, इलाज दोनों एक ही छत के नीचे उपलब्ध हों।
2340 करोड़ का प्रोजेक्ट इस प्रोजेक्ट की कुल लागत 2340 करोड़ रुपए आंकी गई है। सरकार इसे पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल पर लागू कर रही है, जिसमें निजी कंपनियां कॉलेज का डिजाइन, निर्माण, संचालन और रखरखाव करेंगी। इन कंपनियों को संबंधित जिला अस्पताल के प्रबंधन की जिम्मेदारी भी दी जाएगी। अधिकारियों के अनुसार, इस मॉडल से प्रोजेक्ट तेजी से पूरा होगा और सरकारी खजाने पर सीधा दबाव नहीं पड़ेगा।
900 नई सीटों से होगी शुरुआत इन कॉलेजों के शुरू होने के बाद प्रदेश में 900 नई MBBS सीटें जुड़ जाएंगी। यह राज्य के चिकित्सा शिक्षा इतिहास में हाल के वर्षों की सबसे बड़ी वृद्धि मानी जा रही है। नए कॉलेजों से ग्रामीण और पिछड़े जिलों में न केवल डॉक्टरों की संख्या बढ़ेगी, बल्कि स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच भी सुधरेगी। सरकार का मानना है कि इससे जिला अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की मौजूदगी बढ़ेगी और मरीजों को इलाज के लिए बड़े शहरों का रुख नहीं करना पड़ेगा।
निजीकरण को लेकर डॉक्टरों की चिंता हालांकि इस फैसले पर चिकित्सा जगत में मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन के संयोजक डॉ. राकेश मालवीय ने कहा कि सरकार की मंशा सराहनीय है, लेकिन बिना पर्याप्त फैकल्टी और इन्फ्रास्ट्रक्चर के निजी कंपनियों को इतनी बड़ी जिम्मेदारी देना जोखिम भरा हो सकता है। PPP मॉडल को कठोर सार्वजनिक निगरानी और शैक्षणिक पारदर्शिता के साथ लागू करना जरूरी है, वरना यह कदम चिकित्सा शिक्षा के व्यावसायीकरण का रास्ता खोल सकता है।