नई दिल्ली. लगातार तीसरी बार, भारत की महिला टीम वह मैच हार गई जो वह जीत सकती थी बल्कि जीतना चाहिए था पर ऐसा हुआ नहीं. इंग्लैंड के खिलाफ यह हार वर्ल्ड कप सेमीफाइनल की उम्मीदों पर बड़ा झटका है. न्यूज़ीलैंड को हराकर स्थिति सुधारी जा सकती है, लेकिन क्या टीम को अब भी खुद पर विश्वास है ये अपने आप में बड़ा सवाल है.
आ बैल मुझे मार!
भारत ने किसी तरह से हार का रास्ता खोज निकाला, खुद ही मुश्किलें खड़ी कीं और सुनहरा मौका गंवा दिया. केवल सामान्य समझदारी की जरूरत थी जो टीम में उस समय नहीं दिखी. ये तीसरी बार हुआ जब भारत ने मैच के अंतिम पलों में चूक की. दो बार स्कोर बचाते हुए और इस बार रन चेज़ करते हुए. अब अभियान पूरी तरह अधर में लटका है. हरमनप्रीत कौर ने अच्छी बल्लेबाज़ी की, लेकिन उन्हें अपनी कप्तानी पर सोचने की जरूरत है. श्री चरनी से 50वां ओवर कराना अजीब फैसला था उन्होंने काफी रन दे दिए, और जब रेणुका सिंह ठाकुर का एक ओवर बचा था, तो वह क्यों नहीं कराई गईं ये सवाल उठते हैं. चरनी उस दिन लय में नहीं थीं और यह एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ.
सीनियर खिलाड़ी कब सीखेंगे?
सबसे पहले बात आती है दीप्ति शर्मा की, 2017 वर्ल्ड कप में भी वह चूकी थीं तब वह युवा थीं और सबको लगा था कि सीखेंगी और बेहतर होंगी लेकिन आठ साल बाद भी वही कहानी दोहराई गई. उसी विरोधी टीम के खिलाफ, वही स्थिति और फिर से चूक. रिचा घोष की बात करें टीम की सबसे बेहतरीन हिटर्स में से एक उन्हें बस एक शॉट चाहिए था गेंद को हवा में मारो और इनफील्ड पार करो लेकिन उन्होंने एक अधूरा शॉट खेला और कवर में कैच दे बैठीं. जिस फॉर्म में वह थीं, बस एक ओवर की बात थी और मैच खत्म किया जा सकता था.
अंत में अमनजोत कौर और स्नेह राणा दोनों बल्ले से काफी कुछ कर सकती हैं, बड़ी हिट्स भी हैं उनके पास लेकिन न जाने क्यों उन्होंने मैच को आखिरी ओवर तक खींचा 49वें ओवर की पहली गेंद पर जब मिसफील्ड होकर चौका गया, तभी लॉरेन बेल पर दबाव बनाना था लेकिन कोई आक्रामकता नहीं दिखाई गई, सिर्फ सिंगल लेते रहे बेहद उलझन भरा प्रदर्शन था यह और सच्चाई ये है कि ऐसा लगा जैसे कोच अमोल मजूमदार को पता ही नहीं था कि वह डगआउट से कोई निर्देश भेज सकते हैं.
कठिन है डगर टॉप फोर की
न्यूज़ीलैंड के खिलाफ अभी भी उम्मीद बाकी है जीत से सेमीफाइनल की राह फिर खुल सकती है लेकिन असली सवाल यह है क्या इस टीम को अब भी खुद पर भरोसा है, क्या वह ऊर्जा बाकी है, क्या वे खुद को फिर से संगठित कर पाएंगी, कौन बनेगा संकटमोचक, अब मामला मानसिक मजबूती का है. व्हाइट फर्न्स के खिलाफ मैच इस टीम के करियर का सबसे दबाव भरा मुकाबला होगा. फिलहाल, इस हार को पचाना आसान नहीं दिवाली की खुशियों के बीच भी यह हार दिल से निकल नहीं रही क्योंकि चोट गहरी है.