शिवराज सरकार ने विधानसभा सत्र में कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह के लिखित सवाल के जवाब में बता दिया कि कमलनाथ सरकार ने किसानों का कर्जा माफ़ किया था. सरकार ने जवाब में बताया कि कमलनाथ सरकार ने दो चरण में 26 लाख 95 हज़ार किसानों का कुल 11,600 करोड़ रुपए का कर्ज माफ़ किया. बस क्या था. कांग्रेस के हाथ लॉटरी लग गई.
Source: News18Hindi
Last updated on: September 23, 2020, 5:02 PM IST
बीते दिनों हुए एक दिन के विधानसभा सत्र में सरकार ने कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह के पूछे लिखित सवाल के जवाब में बता दिया कि कमलनाथ सरकार ने किसानों का कर्जा माफ़ किया था. कृषि मंत्री कमल पटेल की तरफ से दिए गए जवाब में कहा गया कि दो चरणों में 26 लाख 95 हज़ार किसानों का कुल 11,600 करोड़ रुपए की कर्ज माफ़ी कमलनाथ सरकार ने की थी. बस क्या था. कांग्रेस के हाथ लॉटरी लग गई और भाजपा खीझ मिटाने के लिए ग़लत जवाब देने वाले अधिकारी के खिलाफ जांच की बात कहकर किसी तरह इस पर पर्दा डालने की बात कह रही है.
शिवराज जानते हैं कि सदन के अंदर दिया गया ये जवाब दस्तावेजी साक्ष्य है और इससे मुकरा नहीं जा सकता. अब क़वायद शुरू हुई इसे ग़लत साबित करने की. सबसे पहले तो कृषि संचालक संजीव सिंह का तबादला किया गया. उसके बाद बचाव में आए सरकार के नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह. उन्होंने मीडिया से कहा कि अधिकारियों ने सरकार को अंधेरे में रखकर सदन में ग़लत जवाब दिया और उनकी इस गंभीर चूक की जांच सरकार करवाएगी.
हालांकि, तब तक बात बहुत आगे निकल चुकी थी. सवाल ये उठता है कि सदन में पूछे गए सवालों के जवाब यदि कृषि संचालक ने तैयार भी किए होंगे तो उसे पहले विभाग के प्रमुख सचिव के बाद भेजा गया होगा, फिर उसे अतिरिक्त मुख्य सचिव के पास भेजा गया गया होगा. बाद में कृषि मंत्री ने उसे देखा होगा और फिर वो उन सभी की सहमति के बाद सदन के पटल पर सरकार के अधिकृत जवाब के तौर पर नुमाया हुआ होगा. यानी इस मसले में किसी भी व्यक्ति ने गंभीरता से नहीं देखा (यदि ये ग़लत जवाब है तो) कि तथ्य सही हैं या नहीं. हैरत है कि सरकार कैसे अधिकारियों के बूते चल रही है, जो सरकार को ही विवादित बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे.
शिवराज इस बड़े नुकसान की भरपाई अपनी नई घोषणाओं से करना चाह रहे हैं. प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई किसान प्रोत्साहन निधि की राशि उन्होंने कल आनन-फानन में बढ़ा दी. पहले इसमें दो चरणों में सिर्फ छह हज़ार मिलते थे. एमपी सरकार ने दो चरणों में अपने दो-दो हज़ार रुपये और जोड़कर इस निधि को कुल दस हज़ार रुपये कर दिया. ये कितना असरकारक होगा, पता चलेगा तब जब चुनाव होंगे. यूं भी केंद्र सरकार की कृषि नीति को लेकर पारित हुए तीन बिल यूं भी कई राज्यों के किसानों को आंदोलित किए हुए हैं, उस पर कोढ़ में खाज़ जैसा प्रयोग विधानसभा में दिया गया ये जवाब बन गया. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ बेहद गदगद हैं, वे वाणी में ओज भरकर कहते हैं कि हमारे कर्ज़माफी के दावे को तो खुद सरकार ने सदन में स्वीकार किया है. वो कहते हैं मुझे न भाजपा से सर्टिफिकेट चाहिए, ना शिवराज से. जनता और किसान मुझे सर्टिफिकेट दे रहे हैं.
एमपी के चुनाव सामान्य उपचुनाव नहीं हैं. ये कई लोगों की राजनीति की दशा और दिशा तय करेंगे. बल्कि ये कहना शायद ग़लत नहीं होगा कि राजनैतिक भविष्य ही तय कर देंगे. ऐसे में कोई भी दूसरे की तुलना में दावे और घोषणाओं में कमतर नहीं होना चाहता. भाजपा की मुश्किल ये है कि उसके पास कांग्रेस की 15 महीने की सरकार के खिलाफ के आरोप लगाने का जो एकमात्र मुद्दा था, वो भी हाथ से जाता रहा. दूसरी तरफ कांग्रेस खुद को साजिश का शिकार, अपनों के कारण लुटी हुई बताने के साथ साथ किसान क़र्ज़ माफ़ी को सरकार की उपलब्धि के तौर पर प्रस्तुत कर रही है. ये भी तय है कि आंकड़ों में चुनौती कांग्रेस के पास ज्यादा हैं. उसे सरकार बनाने के लिए लगभग पूरी सीटें जीतना है जबकि भाजपा मैजिक फिगर 116 के मुहाने पर ही है, उसे सिर्फ 9 सीटें जीतना है. लिहाज़ा ‘अपर हैण्ड’ भाजपा का दिखता है लेकिन जिस शिद्दत से चुनाव कांग्रेस लड़ रही है, वो ज़रूर भाजपा की पेशानी में बल पैदा कर रहा है. कुलमिलाकर ये चुनाव एमपी में बहुत दिलचस्प होंगे इसकी संभावना पूरी है. (डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.)
First published: September 23, 2020, 5:02 PM IST