Opinion: बदजुबानी के लिए याद रखा जाएगा मध्य प्रदेश विधानसभा की 28 सीटों का उपचुनाव | – News in Hindi

Opinion: बदजुबानी के लिए याद रखा जाएगा मध्य प्रदेश विधानसभा की 28 सीटों का उपचुनाव | – News in Hindi


क्या जनता के बीच अभी भी शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) की ग्राह्ता बची है..? क्या कमलनाथ के साथ षड्यंत्र हुआ है और जनता की सहानुभूति उनके साथ है? ये सब निर्णय जनता 10 नवंबर को कर देगी.

Source: News18Hindi
Last updated on: October 12, 2020, 6:32 PM IST

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मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों का उपचुनाव (By-election) दोनों प्रमुख राजनैतिक दलों भाजपा (BJP) और कांग्रेस (Congress) के लिए एक तरह से अस्तित्व की लड़ाई बनता रहा है. ज़ाहिर है कि अल्पमत में बैठी सरकार और अपदस्थ हुई कमलनाथ (Kamal Nath) सरकार का भविष्य यही चुनाव तय करेंगे. ये चुनाव ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) की नई राजनैतिक पारी का रुख भी तय करेगा. क्या जनता के बीच अभी भी शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) की ग्राह्ता बची है..? क्या कमलनाथ के साथ षड्यंत्र हुआ है और जनता की सहानुभूति उनके साथ है? ये सब निर्णय जनता 10 नवंबर को कर देगी. सभी बड़े नेता शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलनाथ, नरेंद्र सिंह तोमर जानते हैं कि ये चुनाव कितना महत्वपूर्ण है. इस बार शायद यही वज़ह है कि आरोपों में भाषाई मर्यादा बहुत बुरी तरह से ध्वस्त हो रही है. जिस नेता के मुंह में जो आ रहा है वो बोल रहा है. हैरत इस बात की है कि छोटे या मंझोले कहे जाने वाले नेताओं के मुंह से आग नहीं निकल नहीं रही बल्कि उन नेताओं के मुंह से भी निकल रही है जिनके बारे में कहा जाता है कि वे बहुत सोच समझकर बोलते हैं.

सबसे पहले जिक्र बिल्कुल ताज़ा बयान से करें. कांग्रेस किसान प्रकोष्ठ के नेता दिनेश गुर्जर ने सोमवार को कहा कि कमलनाथ तो देश के प्रमुख उद्योगपतियों में शुमार हैं, जबकि शिवराज सिंह चौहान बहुत भूखे-नंगे परिवार से हैं. इसलिए भ्रष्टाचार को संरक्षण देते हैं. लम्बे वक़्त से मुद्दे की तलाश में बैचेन भाजपा को जैसे मुंह मांगी मुराद इस बयान से मिल गई. शिवराज ने खुद ट्विट किया कि ‘हाँ मैं भूखा-नंगा हूँ और उनके दर्द को बहुत करीब से समझता हूँ. क्या गरीब के घर पैदा होना गुनाह है’ दरअसल बयानों का स्तर तब गिरना शुरू हुआ था जब सिंधिया की कांग्रेस से रुखसती हुई थी. कांग्रेस ने उन्हें गद्दार कहा. उनके साथ जाने वालों को बिकाऊ कहा. उसके बाद तो दोयम बयानों की बाढ़ सी आ गई. कोई भाजपा का नेता कहता है कि कमलनाथ तो कलंकनाथ हैं. कपटनाथ हैं. गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा अपने एक भाषण में कमलनाथ को चेतुआ कह गए. चेतुआ यानी ग्रामीण भाषा में चैत के महीने में सिर्फ फसल काटने आता है. एक भाजपा नेता ने कहा इस बार सांवेर में लड़ाई साधू और शैतान की है. ज़ाहिर है कि उन्होंने कांग्रेस को शैतान कह दिया. जवाब कमलनाथ की तरफ से नहीं आया, बल्कि उनके ख़ास सिपहसलार और पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी का आया. उन्होंने दिवंगत राजमाता विजयाराजे सिंधिया और माधवराव सिंधिया तक को गद्दार कह दिया.

अमूमन आम लोगों के निधन के बाद भी उनके सम्मान में गुस्ताख़ी करने का चलन एमपी में कभी नहीं रहा. कमलनाथ ने ग्वालियर में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान शिवराज को नालायक कह दिया था.

कुल मिलाकर ये शायद पहला ऐसा चुनाव है, जिसमें भरपूर मुद्दे होने के बाद भी नेताओं के भाषण से मुद्दे नदारद हैं. वज़ह शायद यही है कि भाजपा चाहती है कि असल मुद्दे अलग ही रखे जाएं, वर्ना कांग्रेस विक्टिम कार्ड खेल सकती है, क्यूंकि कमलनाथ सभाओं में कह भी रहे हैं कि मेरा कुसूर क्या है. क्यूँ मेरी सरकार गिराई गई..? शायद एक रणनीति के तहत नेता रोज़ बयानों के ज़रिए एक नया मुद्दा उछाल कर उसी के इर्द गिर्द जनता को उलझाए रखना चाहते हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान न्यूज़ 18 से बात करते हुए कहते हैं कि ‘बयानों की मर्यादा होनी चाहिए, कमर के नीचे वार नहीं होना चाहिए लेकिन इसकी शुरुआत किसने की. आप बोलेंगे तो सुनने के लिए तैयार रहना होगा.’ वज़ह चाहे जो भी हो लेकिन इतना तो तय है कि ये चुनाव दोयम बयानों/आरोपों के लिए ही याद रखा जाएगा.


First published: October 12, 2020, 6:12 PM IST





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