एक ही प्रत्याशी को रिपीट नहीं करती सांवेर की जनता, क्या इस बार टूटेगा मिथक?

एक ही प्रत्याशी को रिपीट नहीं करती सांवेर की जनता, क्या इस बार टूटेगा मिथक?


सांवेर सीट को लेकर एक मिथक सालों से चलता आ रहा है.

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के इंदौर (Indore) जिले की बहुचर्चित सांवेर सीट पर प्रत्य़ाशी के रिपीट न होने का मिथक टूटेगा या नहीं ये 10 नवंबर को तय होगा.

इंदौर. मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के इंदौर (Indore) जिले की बहुचर्चित सांवेर सीट पर प्रत्य़ाशी के रिपीट न होने का मिथक टूटेगा या नहीं ये तो 10 नवंबर को तय होगा, लेकिन यदि सांवेर विधानसभा सीट का इतिहास देखा जाए तो पिछले 40 साल में कभी भी कोई प्रत्याशी लगातार दो बार चुनाव नहीं जीत पाया. हालांकि इस सीट पर हुए मध्यावधि चुनाव इसके अपवाद रहे हैं. सांवेर सीट पर हो रहे उपचुनाव में पिछले 40 साल की बात की जाय तो इस सीट का 1980 से 2018 तक के चुनाव में कभी कोई प्रत्याशी दोबारा चुनाव नहीं जीत सका.

हालांकि 1993 में हुए मध्यावधि चुनाव और उसके पहले 1990 के मुख्य चुनाव में बीजेपी के प्रकाश सोनकर जीते थे. प्रकाश सोनकर के निधन होने से 2007 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के तुलसीराम सिलावट जीते और उसके बाद 2008 के मुख्य चुनाव में भी तुलसीराम सिलावट जीत मिली. इसके अलावा कभी भी किसी भी पार्टी का प्रत्याशी लगातार दूसरी बार यहां से नहीं जीता. 1990 में भाजपा के प्रकाश सोनकर कांग्रेस के तुलसीराम सिलावट को हराकर चुनाव जीते, लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद का ढांचा तोड़ने के बाद हुए दंगों के चलते भाजपा की प्रदेश सरकार बर्खास्त कर दी गई. इसके बाद 1993 में मध्यावधि चुनाव हुए तो भाजपा के प्रकाश सोनकर ने कांग्रेस के तुलसीराम सिलावट को फिर चुनाव हरा दिया.

2007 में मिली थी जीत
भाजपा नेता प्रकाश सोनकर के निधन पर 2007 में यहां उप चुनाव हुए तो कांग्रेस के तुलसीराम सिलावट ने भाजपा के संतोष मालवीय को हरा दिया और उसके बाद 2008 के मुख्य चुनाव में कांग्रेस के तुलसीराम सिलावट ने भाजपा की निशा सिलावट को 3517 वोट से हरा दिया. पिछले 40 साल में हुए मुख्य चुनावों में कोई भी प्रत्याशी दूसरी बार नहीं जीता. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अऩुरोध जैन का कहना है कि इस बार भी यही इतिहास दोहराया जाएगा और सांवेर की जनता प्रत्य़ाशी रिपीट नहीं करेगी.दलबदल कर चुनाव

सांवेर से चुनाव लड़ रहे दोनो प्रत्य़ाशी दल बदलकर चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस प्रत्याशी प्रेमचंद गुड्डू 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे और बेटे अजीत को बीजेपी के टिकट पर उज्जैन जिले की घटिया विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाया था, जिसमें अजीत हार गए थे और इस साल कांग्रेस की प्रदेश सरकार गिरने के बाद गुड्डू फिर कांग्रेस में आ गए और सांवेर से टिकट भी पा गए. वहीं तुलसीराम सिलावट अपने नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस और मंत्री पद छोड़कर आए और भाजपा में शामिल होकर फिर मंत्री बन गए. भाजपा ने उन्हें फिर सांवेर से प्रत्य़ाशी बनाया है. ऐसे वो रिपीट प्रत्याशी के रूप में देखे जा रहे हैं. बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता उमेश शर्मा का कहना है कि इस बार सांवेर का मिथक टूट जाएगा. इस तरह के अंधविश्वासों और आशंकाओं को बीजेपी निरमूल मानती है.





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