कोहली-शर्मा विवाद का क्लाइमैक्स अब दिलचस्प मोड़ पर
पिछले कई सालों से लगातार इस तरह की अटकलें लगायी जा रहीं थी कि कोहली और शर्मा के बीच के समीकरण पहले की तरह तो बिल्कुल नहीं है. एक वक्त था जब कोहली ने खुद से बेहतर बल्लेबाज़ रोहित को बताया था और जवाब में रोहित भी कोहली की बल्लेबाज़ी की तारीफ करते नहीं थकते थे. लेकिन, जैसे ही कप्तान के तौर पर महेंद्र सिंह धोनी के उत्तराधिकारी की तलाश होने लगी, स्वभाविक तौर पर कोहली को प्राथमिकता मिली क्योंकि वो बल्लेबाज़ के तौर पर तीनों फॉर्मेट में अपना लोहा मनवा चुके थे.
रोहित की आईपीएल में कामयाबी से असुरक्षित महसूस कर हैं कोहली?
बहरहाल, 2013 के बाद से हालात बदलने लगे. भारतीय क्रिकेट में आईपीएल के खेल को काफी गंभीरता से लिया जाने लगा. रणजी ट्रॉफी की बजाए कई खिलाड़ी सिर्फ आईपीएल के बूते टीम इंडिया का हिस्सा होने लगें. ऐसे में पिछले 8 सालों में 5 आईपीएल ट्रॉफी जीतने के बावजूद अगर रोहित को सफेद गेंद की क्रिकेट में कप्तानी की ज़िम्मेदारी नहीं दी जा रही है तो उनके अहम को ठेस तो लग ही रही होगी. वहीं दूसरी तरफ पहली बार कोहली को ऐसा लग रहा है कि उनकी बादशाहत को चुनौती देने के लिए लगभग उनके के ही स्तर का एक खिलाड़ी मैदान में पूरी तरह से उतर चुका है. क्योंकि इससे पहले जब जब रविचंद्रण अश्विन या अंजिक्या रहाणे जैसे खिलाड़ी कप्तानी की दौड़ में शामिल होने के बारे में सोचते कि कि किसी एक फॉर्मेट से उनका पत्ता कट जाता. दरअसल, कोहली-शर्मा विवाद के पीछे भारतीय कप्तानी का मसला सबसे असली मुद्दा है.
शास्त्री से आखिर कोई सवाल क्यों नहीं करता है?
2019 वर्ल्ड कप के दौरान भी इंडियन ड्रेसिंग रुम से इस तरह की ख़बरें लीक हो चुकी हैं जहां ये दावा किया गया है कि टीम कोहली और शर्मा के खेमों में बंट गई हैं. जब तक धोनी टीम का हिस्सा थे वो किसी तरह से दोनों दिग्गजों को समझा-बुझा कर मामले को बड़ा होने से पहले ही सुलझा देते थे. लेकिन, अब धोनी जैसा कोई भी सीनियर खिलाड़ी इस टीम का हिस्सा नहीं है और ऐसे में कोच के तौर पर रवि शास्त्री की ज़िम्मेदारी काफी बढ़ जाती है. लेकिन, शास्त्री तो शास्त्री ही हैं. वो कहोली की आभा में इतने अभिभूत है कि बस उन्हें कप्तान का ख़्याल रखने के अलावा कुछ याद नहीं रहता है. मुंबई के कई पूर्व खिलाड़ियों को इस बात पर काफी हैरानी हो रही है कि मुंबई का ही एक पूर्व खिलाड़ी अपने राज्य के एक बेहद शानदार खिलाड़ी के साथ खड़ा होना तो दूर की बात, एक उचित रवैया अपनाने से हिचकता दिखता है और दिल्ली के एक खिलाड़ी के साथ पूरी तरह से समर्पण से जुड़ा है.अगर पूरे मामले में शास्त्री को भी कसूरवार ठहराया जाए तो ये ग़लत नहीं होगा. आखिर, कोच ने तो अपने दौर में देखा है कि कैसे ड्रेसिंग रुम में जब दिग्गजों(सुनील गावस्कर-कपिल देव) के बीच तना-तनी होती है तो इसका कितना बुरा असर युवा खिलाड़ियों और टीम के नतीजों पर पड़ता है. ये मुमकिन है कि कोहली और रोहित एक-दूसरे से सीधे सीधे बात नहीं करना चाहतें हैं या फिर फोन नहीं कर सकते लेकिन कोच को किस बात के लिए करोड़ों रुपये मिलते हैं हर साल? ऐसे नाजुक मुद्दों को समय रहते सुलझाने के लिए ही ना? आखिर, यही काम तो गैरी कर्स्टन किया करते थे जब धोनी से कोई सहवाग या गंभीर नाराज़ हो जाया करता था. यही काम तो जॉन राइट भी किया करते जब गांगुली से कोई लक्ष्मण या आकाश चोपड़ा परेशान हो जाया करते थे. लेकिन, ग्रेग चैपल ने ऐसा नहीं किया. वो अपने कप्तान(गांगुली) के साथ ही भिड़ जाते थे और बाद में दूसरे कप्तान(द्रविड़) की ऑथोरिटी को ही पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर जाते थे. शास्त्री ने ये सब कुछ बेहद करीब से देखा है और उसके बावजूद उन्होंने भारतीय क्रिकेट का मज़ाक अब ऑस्ट्रेलियाई मीडिया में उड़वाने के लिए छोड़ दिया.
कहां चली गई गांगुली की दादागीरि?
दरअसल, ग़लती तो सबसे ज़्यादा बीसीसीआई और इसके अध्यक्ष सौरव गांगुली की है. जो बोर्ड और अध्यक्ष अपने सीनियर खिलाड़ी को ये कहने का साहस नहीं जुटा सकता कि उसके लिए देश बड़ा है या आईपीएल तो और क्या कहा जाए. गांगुली ने जिस तरह की ढील-ढाल वाला रवैया एक बार फिर से अपनाया है उससे साफ है कि वो कप्तान के तौर पर कभी दादागिरी दिखाने वाला ये शख़्स अब सिर्फ अपनी कुर्सी की परवाह करता है. आपको याद है ना किस तरह से दादा की धज्जियां विराट कोहली ने
अनिल कुबंले-रवि शास्त्री कोच चयन के दौरान की थी?
बीसीसीआई भले ही दुनिया का सबसे अमीर बोर्ड है लेकिन पेशेवर रवैये के नाम पर वो बहुत ग़रीब है. तभी तो एक अहम दौरे से पहले इसके कप्तान को एक संवेदनशील मुद्दे पर प्रेस कांफ्रेस वो सब कुछ खुल कर बोलना पड़ा जिसके चलते उसके बोर्ड को शर्मिंदगी झेलनी पड़ती. कोहली को सवाल पहले से भेजे गये थे यानि वो जवाब देने के लिए पूरी तरह से तैयार थे. जब उनके जवाब से अपरोक्ष तरीके से गांगुली और बीसीसीआई का मज़ाक उड़ा तो रात 12 बजे से ठीक पहले एक प्रेस रीलीज़ आती है जहां ये दावा किया जाता है कि रोहित दरअसल अपने बीमार पिता की वजह से मुंबई आये थे और अब भी वो ऑस्ट्रेलिया जा सकतें हैं.
जैसा अध्यक्ष, वैसा कोच और उससे भी एक डिग्री आगे मुख्य चयनकर्ता!
सुप्रीम कोर्ट और लोधा कमेटी की दखल के बाद एक बार इस बात की उम्मीद जगी थी कि शायद बीसीसीआई में पेशवर रवैया देखने को मिले लेकिन ये उम्मीद भी रोहित-कोहली विवाद के चलते एक्सपोज़ हुई है. देखिये ना, इस पूरे मामले को एकदम शुरुआत में ख़्तम किया जा सकता था अगर मुख्य चयनकर्ता सुनील जोशी इस मुद्दे पर प्रेस कांफ्रेस करते. जोशी को अगर प्रेस से मुखातिब होना पड़ता तो वो निश्चित तौर पर रोहित, कोहली, शास्त्री और गांगुली से ज़ूम कॉल पर बाच करने के बाद हर किसी को ये ज़रुर बताते कि ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए उनकी चयनसमिति ने जो टीन टीमें चुनी हैं , उसमें खिलाड़ियों के अंदर और बाहर होने की वजह क्या है. इंग्लैंड , ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसे मुल्कों में मुख्य चयनकर्ताओं को हमेशा अपने फैसलों को जायज ठहराने की ज़रुरत पड़ती है लेकिन भारतीय क्रिकेट में ही चयनकर्ताओं को सिर्फ अपना मुंह बंद इसलिए रखने को कहा जाता है ताकि उनके आकाओं को किसी तरह की परेशानी ना हो!
रोहित के दामन पर भी छींटें पड़ें
वैसे , इस पूरे मामले में रोहित शर्मा के शानदार दामन पर भी छींटें पड़ें हैं. अगर गौतम गंभीर जैसा तगड़ा प्रशंसक भी इस मुद्दे पर विराट कोहली के साथ खड़ा दिखे तो ये समझना आसान हो जाता है कि चूक तो रोहित से भी हुई है. रोहित जो अपने शानदार रवैये के लिए खिलाड़ियों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं और काफी सम्मान पातें हैं, वो पूरे विवादास्पद एपिसोड के चलते आलोचनाओं के घेरे में आए हैं. आखिर, कोहली के साथ उनका संबध चाहे कैसा भी हो, लेकिन भारतीय क्रिकेट से तो उनका संबध अटूट है. उनके हर फैसले से जिससे टीम इंडिया को फर्क पड़ता है, शायद काफी सोच-समझ कर लिया जाना चाहिए था. लेकिन, ऐसा लगता है कि फिलहाल दो हाइ-प्रोफाइल खिलाड़ियों के बीच अहम के टकराव वाला खेल मैदान के बाहर कुछ और वक्त तक चलता दिखेगा.
विमल कुमार
न्यूज़18 इंडिया के पूर्व स्पोर्ट्स एडिटर विमल कुमार करीब 2 दशक से खेल पत्रकारिता में हैं. Social media(Twitter,Facebook,Instagram) पर @Vimalwa के तौर पर सक्रिय रहने वाले विमल 4 क्रिकेट वर्ल्ड कप और रियो ओलंपिक्स भी कवर कर चुके हैं.