कठपुतलियों की दुनिया: धागा पुतली से किया पंचतंत्र की कहानियाें का मंचन

कठपुतलियों की दुनिया: धागा पुतली से किया पंचतंत्र की कहानियाें का मंचन


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भोपाल3 घंटे पहले

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जनजातीय संग्रहालय में धागा पुतुल शैली में पंचतंत्र की कहानियों का मंचन।

  • जनजातीय संग्रहालय में गमक के अंतर्गत कठपुतली परंपरा पर व्याख्यान
  • धागा पुतली शैली में भिलाई की कलाकार विभाषा उपाध्याय ने बयां की कहानी

जनजातीय संग्रहालय में आयोजित गमक महोत्सव के तहत सोमवार को कठपुतली परंपरा पर एकाग्र व्याख्यान और पंचतंत्र की कथाओं का दस्ताना और धागा पुतली शैली में प्रदर्शन किया गया। इस अवसर पर भिलाई से आए कलाकार विभाषा उपाध्याय ने पारंपरिक पुतलियों के माध्यम से पंचतंत्र की कथाओं का प्रदर्शन किया। शुरूआत इस परंपरा से लोगों को परिचित कराते उन्होंने भगवान शिव और राजा विक्रमादित्य से लेकर अब तक प्रचलन में आई कठपुतलियों के इतिहास के विषय में चर्चा की। उन्होंने कहा कि भारत सहित अन्य देशों में प्रचलित कठपुतली शैलियों के विषय में विस्तारपूर्वक बताया। इसके बाद उन्होंने पंचतंत्र की कहानी- परी और लकड़हारा, बोलने वाली गुफा, जादुई पंख, सांप और सपेरा, तीन ठग, दो सिर वाला लकड़हारा, हाथी और चींटी एवं समझदार कलाकार जैसी कहानियों को दस्ताना और धागा पुतली शैली के माध्यम से प्रदर्शित किया।

इसलिए खास है दस्ताना पुतुल शैली

दस्‍ताना पुतली को भुजा या हथेली पुतली भी कहा जाता है। इन पुतलियों का मस्‍तक पेपर मेशे (कुट्टी), कपड़े या लकड़ी का बना होता है तथा गर्दन के नीचे से दोनों हाथ बाहर निकलते हैं। बाकी शरीर के नाम पर केवल एक लहराता घाघरा होता है। ये पुतलियां वैसे तो निर्जीव गुडि़यों जैसी होती हैं लेकिन निपुण संचालक के हाथों में पहुंचते ही अनेक गतिविधियों को सक्षमता से प्रस्‍तुत करती हैं। इन्हें हाथों से गतिविधियों पर नियंत्रण रखा जाता है। पहली अंगुली मस्‍तक में जाती है और मध्‍यमा और अंगूठा पुतली की दोनों भुजाओं में। इस प्रकार अंगूठे और दो अंगुलियों की सहायता से दस्‍ताना अंगुली सजीव हो उठती है ।



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