लोकनृत्य में संस्कृति के रंग: बैगा युवक-युवतियां टोली बनाकर एक-दूसरे के गांव में जाकर करते हैं नृत्य

लोकनृत्य में संस्कृति के रंग: बैगा युवक-युवतियां टोली बनाकर एक-दूसरे के गांव में जाकर करते हैं नृत्य


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भोपाल3 घंटे पहले

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जनजातीय संग्रहालय में ‘गमक’ श्रृंखला के अंतर्गत तेरहताली नृत्य की प्रस्तुति देती कलाकार।

  • जनजातीय संग्रहालय में तेरहताली और बैगा नृत्य की प्रस्तुति

जनजातीय संग्रहालय में ‘गमक’ श्रृंखला के अंतर्गत आज तेरहताली नृत्य और बैगा जनजातीय नृत्य की प्रस्तुतियां हुईं | प्रस्तुति की शुरुआत जीवन दास और साथियों ने गणेश वंदना से की। उसके बाद बाबा रामदेव के भजन-हेलो म्हारो सामलो रणुजे व माता जी के भजन- लटिका करती आऊ मेरी मां के माध्यम से राजस्थान का पारंपरिक नृत्य तेरहताली प्रस्तुत किया। राजस्थान के प्रसिद्ध नृत्य घूमर से प्रस्तुति को विराम दिया।

दूसरी प्रस्तुति बैगा जनजातीय नृत्य की हुई। बैगा मध्यप्रदेश के डिण्डौरी जिले के चाड़ा के जंगलों में निवास करने वाली आदिम जनजाति है। बैगा के करमा, परघौनी, घोड़ी पैठाई और फाग प्रमुख नृत्य हैं। करमा नृत्य में बैगा अपने ‘कर्म’ को नृत्य-गीत के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। इसी कारण इस नृत्य-गीत को करमा कहा जाता है। विजयादशमी से वर्षा के प्रारंभ होने तक चलने वाला यह नृत्य बैगा युवक-युवतियां टोली बनाकर एक दूसरे के गांव जा जाकर करते हैं। घोड़ी पैठाई नृत्य दशहरे के दिन से शुरू होकर दिसंबर के अंत तक किया जाने वाला नृत्य है। सभी प्रकार के करमा मे नृत्य करने की शैली एक सी ही होती है सिर्फ गीत गाने मे अंतर होता है, उसके लय के उतार चढ़ाव के साथ ही ताल मिलाकर नृत्य किया जाता है।



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