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- Question There Could Have Been A Wait Till The Assembly Session To Implement The Freedom Of Religion Act, Why There Was A Need To Bring Ordinance.
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भोपाल17 मिनट पहलेलेखक: राजेश शर्मा
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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने धर्म स्वातंत्र्य कानून को अध्यादेश से लागू करने के संबंध में मंगलवार देर शाम राजभवन में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से मुलाकात की।
- संविधान भी कहता है कि अध्यादेश खास मौकों पर ही लाया जाना चाहिए
- सियासी मायने – क्या मप्र में नगरीय निकायों के चुनाव में राजनीतिक फायदा होगा
शिवराज सरकार ने एक दिन में 13 कानून अध्यादेशों से लागू कर एक इतिहास बना दिया। इसमें से सबसे ज्यादा चर्चा लव जिहाद के खिलाफ लागू किए गए धर्म स्वातंत्र्य कानून की है। दरअसल, सवाल यह उठ रहा है कि इस कानून को लागू करने के लिए आनन-फानन में अध्यादेश लाने की जरूरत क्यों पड़ी? विधानसभा के आगामी सत्र तक इंतजार नहीं किया जा सकता था? यह सवाल इसलिए भी उठा, क्योंकि संविधान भी कहता है कि अध्यादेश खास मौकों पर ही लाया जाना चाहिए। मप्र में यह कानून 52 साल (1968 ) से लागू है। शिवराज सरकार ने इसमें संशोधन कर प्रभावी बनाया है।
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस कानून को अध्यादेश लाकर लागू करने के सियासी मायने निकाल रही है। पूर्व मंत्री पीसी शर्मा ने कहा कि एक दिन का विशेष सत्र बुलाकर भी इसे कानूनी रूप दिया जा सकता था। जब नव निर्वाचित 28 विधायकों को विधानसभा में बुलाकर शपथ दिलाई जा सकती है तो सत्र आहूत क्यों नहीं हो सकता था? बीजेपी नगर निगम चुनाव में इसे मुद्दा बनाकर मूल समस्याओं से ध्यान भटकाना चाहती है। वर्तमान में नगर निगमों में बीजेपी का कब्जा है। लेकिन विकास के नाम पर बताने के लिए कुछ भी नही है।
विधायक कुणाल चौधरी कहते हैं कि सरकार इस कानून को लेकर विधानसभा में बहस से बचना चाहती है। सरकार महिलाओं की सुरक्षा के लाख दावे करे, लेकिन इसके बावजूद मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार में सबसे ज्यादा अपराध हुए। गृहमंत्री इस पर जवाब दें और प्रदेश सरकार महिला अपराधों को लेकर सख्त कानून बनाए। हालांकि पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर आरोपो को सिरे से खारिज करती हैं। उन्होंने कहा कि समाज को कितने दिन तक बर्बाद होने देंगे? जितनी जल्दी कानून लागू होगा, उतनी जल्दी राहत मिलेगी। क्योंकि देरी से मिला न्याय, अन्याय ही होता है।
प्रदेश अध्यक्ष का सिर्फ एक अध्यादेश पर बयान
शिवराज कैबिनेट ने 13 अध्यादेशों को मंजूरी दी, लेकिन बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का बयान केवल लव जिहाद के खिलाफ लागू हो रहे कानून को लेकर आया। उन्होंने कहा कि प्रदेश की भाजपा सरकार ने जिस तत्परता से कैबिनेट की बैठक में प्रस्तावित धर्म स्वातंत्र्य विधेयक को मंजूरी दी है, उससे यह स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार प्रदेश में धर्मांतरण का कुचक्र रचने वालों को अपने मंसूबों पर अमल के लिए बिलकुल समय नहीं देना चाहती।
राज्यपाल से शिवराज की मुलाकात
कैबिनेट की बैठक में मंगलवार को सुबह 11 बजे अध्यादेश को मंजूरी दी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चाैहान ने देर शाम राजभवन जाकर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से मुलाकात की। ऐसा माना जा रहा है कि सरकार इस कानून को तत्काल प्रभाव से लागू करना चाहती है और इस सिलसिले में मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच चर्चा हुई। बता दें यूपी सरकार के अध्यादेश को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने ही 28 नवंबर को मुहर लगाई थी।
संयोग या रणनीति : चार दिन में यूपी, हरियाणा और एमपी में कानून बनाने का ऐलान
लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने को लेकर बीजेपी शासित तीन राज्यों यूपी, हरियाणा और एमपी में चार दिन के भीतर ऐलान हुए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 31 अक्टूबर को कानून बनाने का ऐलान किया था। इसके एक दिन बाद ही हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज भी यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान के साथ खड़े नजर आए थे। विज ने 1 नवंबर को सीधे शब्दों में इस बात की ओर इशारा कर दिया कि हरियाणा भी लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने पर विचार कर रहा है.।जल्द ही इस पर कोई ठोस निर्णय लिया जाएगा। इसके दो दिन बाद यानी 4 नंवबर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस कानून को मप्र में लागू करने की घोषणा कर दी थी।
योगी- शिवराज की भाषा भी एक..
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सबसे पहले जैनपुर की एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि सरकार लव जिहाद को लेकर कानून बनाएगी। मैं उन लोगों को चेतावनी देता हूं, जो पहचान छिपाते हैं और हमारी बहनों के सम्मान के साथ खेलते हैं। यदि आप अपने तरीकों को ठीक नहीं करते हैं तो आपका राम नाम सत्य यात्रा शुरू हो जाएगी। ठीक इसी तरह शिवराज सिंह चाैहान ने बीजेपी कार्यालय में बैठक में शामिल होने से पहले कानून बनाने का ऐलान करते हुए कहा था कि लव के नाम पर कोई जिहाद नहीं होगा। जो ऐसी हरकत करेगा, उसे ठीक कर दिया जाएगा और उसके लिए कानूनी व्यवस्था बनाई जाएगी।
क्या यह बंगाल के लिए रणनीति
जानकार कहते हैं कि बीजेपी ने हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव धारा 370 और CAA के नाम पर निकाल दिए थे। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला जब आया,उस वक्त झारखंड में चुनाव होने वाले थे। गृह मंत्री अमित शाह ने झारखंड चुनाव में जोर शोर से राम मंदिर निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्रेडिट लेने की कोशिश की थी, हालांकि लोगों ने जरा भी ध्यान नहीं दिया और रघुबर दास सरकार को बेदखल कर हेमंत सोरेन को गठबंधन सरकार सौंप दी। बिहार के बाद बीजेपी अब पश्चिम बंगाल चुनाव की तैयारी में जुटी है और केरल के भी लेफ्ट शासन पर उसकी नजर लगी हुई है। वैसे भी राम मंदिर का मुद्दा पीछे छूट जाने और बेअसर होने के बाद बीजेपी को ऐसे ही किसी असरदार एजेंडे की जरूरत तो है ही। एक ऐसा एजेंडा जो बीजेपी के वोट बैंक को भावनात्मक तौर पर एकजुट रख सके।