कटनी में उमा को शिवराज का जवाब: शराब बंद करने से  MP नशामुक्त नहीं होने वाला, पीने वाले रहेंगे तो दारू आती रहेगी

कटनी में उमा को शिवराज का जवाब: शराब बंद करने से  MP नशामुक्त नहीं होने वाला, पीने वाले रहेंगे तो दारू आती रहेगी


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भोपाल6 मिनट पहले

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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शनिवार को कटनी में विकास कार्यों के लोकापर्ण कार्यक्रम में कहा कि शराब बंद करने से MP नशामुक्त नहीं होने वाला, पीने वाले रहेंगे तो दारू आती रहेगी। उन्होंने प्रदेश को नशा मुक्त बनाने के लिए लोगों को संकल्प भी दिलाया।

  • कटनी में विकास कार्यों के लोकार्पण कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने नशामुक्ति के लिए दिलाया संकल्प
  • उमाभारती पहले ही कह चुकी हैं- शराबबंदी के लिए राजनीतिक साहस की जरूरत होती है

शराबबंदी को लेकर उमा भारती के बयानों से बैकफुट पर आई शिवराज सरकार ने अब अपना रूख साफ कर दिया है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कटनी में शनिवार को साफ-साफ कह दिया कि केवल शराबबंदी से प्रदेश नशा मुक्त नहीं होने वाला। जब तक पीने वाले रहेंगे तो दारू आती रहेगी। समाज को ही नशा छोड़ना होगा इसके लिए हम अभियान चलाएंगे। उनका यह बयान सीधे तौर पर उमा भारती को जवाब माना जा रहा है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शनिवार को कटनी में सरकारी कार्यक्रम में पहुंचे थे। उन्होंने लोगों से मध्य प्रदेश को नशामुक्त प्रदेश बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा- हम मध्यप्रदेश को नशामुक्त प्रदेश बने इसके लिए प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए आपका सहयोग चाहिए। यह सिर्फ शराबबंदी से नहीं होगा। पीने वाले रहेंगे तो दारू आती रहेगी। लोग यहां-वहां (अन्य राज्यों) से शराब लेकर आते रहेंगे। हम नशामुक्ति अभियान चलाएंगे, जिससे लोग पीना ही छोड़ें। वे रतलाम में भी इसी तरह की अपील कर चुके हैं।

उमा के तेवर सख्त, रणनीति साफ कर चुकीं

उमाभारती ने टीकमगढ़ में अपने गृह ग्राम डूंडा की शराब दुकान को बंद कराने से अभियान की शुरुआत करने की रणनीति बनाई है। जानकार मानते हैं कि उमाभारती शराबबंदी को लेकर आर-पार के मूड में है जबकि शिवराज सरकार के सामने राजस्व को लेकर धर्मसंकट है। शिवराज के कटनी में दिए बयान से संकेत हैं कि अगले वित्तीय वर्ष (2021-22) की आबकारी नीति में शराब से मिलने वाले राजस्व में कमी नहीं करना चाहती है।

उमा का कटाक्ष- माफिया का दबाव नहीं होने देता शराब बंदी

उमा भारती ने सोशल मीडिया पर लिखा था- थोड़े से राजस्व का लालच और माफिया का दबाव शराबबंदी नहीं होने देता। देखा जाए तो सरकारी व्यवस्था ही लोगों को शराब पिलाने का प्रबंध करती है। जैसे, मां जिसकी जिम्मेदारी अपने बालक का पोषण करते हुए उसकी रक्षा करने की होती है। वही मां अगर बच्चे को जहर पिला दे, तो सरकारी तंत्र द्वारा शराब की दुकानें खोलना ऐसे ही है।

बता दें कि आर्थिक संकट से जूझ रही राज्य सरकार आय बढ़ाने के लिए शराब दुकानों की संख्या बढ़ाने पर विचार कर रही थी, लेकिन राजनीतिक बखेड़ा खड़ा होने के कारण उसे बैकफुट पर जाना पड़ा।



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