धर्मसभा: हिंसा के त्याग के प्रत्याख्यान लेते हैं तो संसार में होने वाली हिंसा के पाप से आप बच सकते हैं

धर्मसभा: हिंसा के त्याग के प्रत्याख्यान लेते हैं तो संसार में होने वाली हिंसा के पाप से आप बच सकते हैं


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रतलाम3 घंटे पहले

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  • रत्नप्रभा श्रीजी मसा ने कहा-आगार धर्म को अपनाने वाला ही श्रावक कहलाने का हकदार होता है

श्रावक के 12 व्रतों में पहला व्रत है अहिंसा अणुव्रत। संसार में होने वाली प्रत्येक हिंसा में जो पाप लगता है उसका कुछ अंश पाप आपको भी लगता है, भले ही आप उस हिंसा से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए नहीं हों, इस बात को आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि आपका बंगला है जो कई महीनों से बंद है लेकिन फिर भी उसमें बिजली पानी का बिल आता है, भले ही वो नॉमिनल आए लेकिन वो आपको भरना पड़ता है। वैसे ही संसार की हिंसा से कनेक्शन जुड़ा हुआ है, आप इस कनेक्शन को त्याग और प्रत्याखान से काट सकते हैं, संकल्पपूर्वक यदि आप हिंसा के त्याग के प्रत्याख्यान लेते हैं तो हिंसा के पाप से बच सकते हैं।

यह बात रत्नप्रभा श्रीजी मसा ने कही। नीमचौक स्थानक में उन्होंने कहा दो प्रकार के धर्म हैं, आगार धर्म और अणगार धर्म। आगार धर्म श्रावक के लिए और अणगार धर्म संत सतियों के लिए होता है। आगार धर्म को अपनाने वाला ही श्रावक कहलाने का हकदार होता है।

हमारा मन स्वार्थ के हिसाब से बदलता रहता है
मोक्षिता श्रीजी मसा ने कहा कि मानव का मन बहुत चंचल होता है ये पल-पल में बदलता है। जैसे सूर्यमुखी का फूल सूर्य के सामने खिलता है। वैसे ही हमारा मन स्वार्थ के हिसाब से बदलता रहता है, मन गिरगिट की तरह रंग बदलता है। मन हट (झोपड़ी) के समान भी होता है मतलब गंदा और अस्त व्यस्त रहता है। मन में हमेशा गंदगी भरी रहती है। मन हॉस्पिटल के समान भी होता है- थका हुआ, डरा हुआ, उत्साह विहीन। मन दूध के समान है जिसमें नींबू डालो तो फट जाएगा और शक्कर डालो तो मिठाई बन जाएगा।

मन घी के समान है जिसे आग में डालो तो आग और बढ़ जाएगी, राख में डालो तो बेकार हो जाएगा, खिचड़ी या हलवे में डालो तो स्वाद बढ़ जाएगा और दीपक में डालो तो प्रकाश कर देगा।
ऐसे कर्म करें जिससे सर्वत्र प्रकाश फैले
उन्होंने बताया रावण ने घी को आग में डालने का काम किया, सुपर्णखा ने राख में डाला लक्ष्मण ने खिचड़ी में डालने जैसा भरत ने हलवे में और राम ने दीपक में घी डालने का काम किया। हमें अपने मन को दीपक में घी डालने जैसा बनाना है जिससे सर्वत्र प्रकाश फैले। उन्होंने कहा कि हम बहाना बना लेते हैं कि सामायिक में ध्यान में मन नहीं लगताैं।

हम दुकान खोलते हैं ग्राहक नहीं आए या ग्राहकी कमजोर हो तो क्या हम दुकान बंद कर देते हैं नहीं करते हैं, वैसे ही भले ही सामायिक में मन नहीं लगे फिर भी सामायिक करने से वचन और काया की हिंसा से तो बच ही जाते हैं तो 100 में से 66 नंबर तो मिल ही गए अब मन तो थोड़ा थोड़ा एकाग्र करेंगे तो ये नंबर 66 से 100 की और अवश्य जाएगा।



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