Ads से है परेशान? बिना Ads खबरों के लिए इनस्टॉल करें दैनिक भास्कर ऐप
ग्वालियर3 घंटे पहले
- कॉपी लिंक
सरेंडर के समय दस्यु सुंदरी फूलन देवी, साथ में है डाकू मानसिंह, साधु सिंह चौहान खड़े हैं।
- भिंड में पुलिस बना रही संग्रहालय, डकैतों के फोटो, सामग्री, अफसरों के किस्से सहेजे जाएंगे
- 1960 से लेकर 2011 तक के डकैतों की कहानियां होंगी, 30 लाख रुपए तक आएगा खर्च
चंबल में ‘डाकू म्यूजियम’ बनाया जाएगा। इसमें बीहड़ में दशकों तक दहशत के पर्याय रहे कुख्यात डाकुओं के हथियार उठाने से लेकर मुठभेड़ में ढेर होने तक की दास्तान होगी। साथ ही लोग उनके आतंक को खत्म करने वाले चंबल के जांबाज अफसरों-जवानों की कहानी भी जान सकेंगे।
संग्रहालय में दस्यू सुंदरी फूलन देवी, एथलीट से डाकू बने पान सिंह तोमर, मोहर सिंह, मलखान सिंह जैसे डाकुओं के जीवन को विस्तार से बताया जाएगा। अभी यह ‘डाकू म्यूजियम’ भिंड पुलिस लाइन में बनाया जा रहा है। इसमें डाकुओं और पुलिस की बड़ी और खतरनाक मुठभेड़ को मूवी की तरह प्रस्तुत किया जाएगा।

कुख्यात डाकू अरविंद सिंह गुर्जर ने भिंड के कोतवाली थाने में गिरोह के साथ सरेंडर किया था।
80 से ज्यादा डाकुओं के जीवन के राज खोलेगा म्यूजियम
पूरा म्यूजियम डाकुओं-पुलिस के जांबाजों और उनके पीछे की कहानी पर आधारित होगा। संग्रहालय में ग्वालियर-चंबल अंचल की बीहड़ में पैदा हुए 80 से ज्यादा ऐसे कुख्यात डाकुओं की हिस्ट्री रहेगी, जिनके नाम से कभी यह बीहड़ कांपा करते थे। प्रदर्शनी के माध्यम से बताया जाएगा कि कैसे साधारण आदमी बागी हुआ और कुख्यात बन गया। संग्रहालय में 1960 से लेकर 2011 तक के डकैतों को शामिल किया जाएगा।
फोटो, स्टोरी, गन व अन्य सामग्री होगी
म्यूजियम में डकैतों की हिस्ट्रीशीट, उनके फोटोग्राफ, गिरोह के बड़ी वारदातों के किस्से, वारदातों के बाद वहां के हालात की कहानी, डाकू गिरोहों के सदस्य, हथियारों की झांकी डिजिटल आधार पर दिखाई जाएगी। इससे यह आसानी से लोगों की समझ में आ जाएगी। इसके साथ ही पिछले 3 दशक में 40 पुलिस जवान, अफसर भी डाकुओं से लड़ते हुए शहीद हुए हैं। इनके जीवन चरित्र और जांबाजी के किस्से यहां होंगे।
इनको जान सकेंगे हम
डाकू पान सिंह तोमर के बारे में बताया जाएगा कि कैसे एक एथलीट अपने ही रिश्तेदारों के अत्याचार और पुलिस द्वारा सुनवाई नहीं करने पर डाकू बना। इसी तरह दस्यू सुंदरी फूलन देवी की साधारण जिंदगी से डाकू फिर सांसद बनने की दास्तान रखी जाएगी। इसके अलावा मलखान सिंह, मोहर सिंह, माखन मल्लाह, मानसिंह जैसे बड़े डाकुओें के जीवन को एक रोचक कहानी की तरह समझ सकेंगे।
म्यूजियम में होंगी हर दशक की गैलरी
इस म्यूजियम के बारे में जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक हर दशक की एक गैलरी बनाई जाएगी। इस गैलरी में उस दशक के कुख्यात डकैत, उनके द्वारा किए गए बड़े अपहरण, हत्या और पुलिस मुठभेड़ की झलकियां, फोटोग्राफ, स्टोरी को प्रदर्शित किया जाएगा। बागी होने से लेकर सरेंडर करने की पूरी कहानी को एक मूवी की तरह दिखाया जाएगा। इसमें यह भी बताया जाएगा कि उस समय इनका गैंग कहां रहता था और किस गैंग में कितने सदस्य थे। किस तरह के हथियार रखते थे। बीहड़ में सर्दी, गर्मी में कैसा जीवन जीते थे। बारिश के समय कहां शरण लेते थे।
खुद का फोर्स था मोहर सिंह पर
चंबल के बीहड़ में खौफ का एक नाम डाकू मोहर सिंह का रहा है। बताते हैं मोहर सिंह के गिरोह में 146 के लगभग सदस्य थे। मतलब उसका खुद का फोर्स था। पूरे गिरोह पर 12 लाख का इनाम 1960 के दशक में था। अकेले मोहर सिंह पर 2 लाख रुपए का इनाम था। उस पर 200 से ज्यादा अपराध थे। जिनमें 57 हत्या के मामले थे। गिरोह के पास एसएलआर, सेमी ऑटोमैटिक गन, 303 रायफल एलएमजी, स्टेन गन, मार्क-5 रायफल जैसे हथियार थे। यह गिरोह 146 सदस्यों को कैसे संभालता था। क्या खाने की व्यवस्था थी। इसका पूरा इतिहास रहेगा।
एक गैलरी पुलिस जांबाजों की
इस म्यूजियम में एक गैलरी जांबाज पुलिस अफसरों की रहेगी। इसमें बताया जाएगा कि चंबल में यदि डाकू पैदा हुए हैं तो जांबाज पुलिस अफसर, जवान भी पैदा हुए हैं। जिन्होंने इन डाकुओं का अंत किया था। 40 पुलिसकर्मी शहीद हो चुके हैं। इनकी स्टोरी व उस समय के फोटो संग्रहालय में रखे जाएंगे।
कितनी लागत आएगी
यह म्यूजियम में कितनी लागत आएगी इसका सटीक अनुमान तो नहीं है, लेकिन पुलिस अफसरों की माने तो 25 से 30 लाख रुपए का खर्च आएगा। पुलिस जवानों ने इस म्यूजियम के लिए चंदा भी दिया है। पता लगा है कि 3 लाख रुपए अभी तक जमा हो चुके हैं। एसपी भिंड के एसपी मनोज कुमार सिंह ने कहा कि बागियों के जीवन को जानने के लिए लोग उत्सुक रहते हैं। यह बीहड़ तक कैसे पहुंचे, क्या कारण रहे। इनका खात्मा कैसे हुआ। सरेंडर करने वाले समाज में कैसे वापस जुड़े।