रोहित शर्मा के लिए जरूरी है विदेश में चेन्नई जैसी 161 वाली पारियां– News18 Hindi

रोहित शर्मा के लिए जरूरी है विदेश में चेन्नई जैसी 161 वाली पारियां– News18 Hindi


26 जनवरी 2018 को इंग्लैंड के पूर्व कप्तान और मौजूदा क्रिकेट के बेहद सम्मानजनक एक्सपर्ट नासिर हुसैन ने लिखा कि- ‘अगर रोहित शर्मा टेस्ट बैट्समैन नहीं है तो मैं शायद किसी दूसरे रोहित शर्मा को पिछले 5 सालों से देख रहा हूं!’. नासिर हुसैन को एक फैंस ने मज़ाकिया अंदाज़ में ट्रॉल करने की कोशिश करते हुए उनकी टाइमलाइन पर लिखा, “ आपका मतलब अंजिक्या रहाणे से हैं, निश्चित तौर पर.”  नासिर हुसैन तो बड़े-बड़े खिलाड़ियों और कई पत्रकारों (ब्लू टिक वाले भी शामिल हैं) को भी पलटकर जवाब नहीं देते हैं लेकिन रोहित के क्लास को लेकर वो इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने फिर से लिखा- “नहीं (रहाणे नहीं) ऐसा मुमकिन ही नहीं है कि आप रोहित शर्मा की तरह प्रतिभाशाली हों और टेस्ट क्रिकेट का तोड़ नहीं निकाल सकते हैं. भारत को रोहित पर भरोसा नहीं खोना चाहिए. आपको आंकड़ों पर नहीं अपनी आंखों और अपने विवेक पर भरोसा रखना चाहिए.’ विदेशी जानकार भी रोहित शर्मा के लिए अंध-भक्त क्यों बन जानतें है

चेन्नई में खेले जा रहे दूसरे टेस्ट में 161 रन की एक शानदार पारी खेलने के बाद हुसैन ने अपने 3 साल पुराने ट्वीट को फिर से रीट्वीट किया और साथ ही एक और वाक्य भी जोड़ा ‘मैंने पिछले 3 सालों में रोहित के बारे में अपनी राय नहीं बदली है.’

क्रिकेट के किसी भी मुद्दे पर हुसैन की राय से असहमत होने के मुझे बहुत सारे वाक्ये याद नहीं है. ऐसे में अब सोचिए इतने बड़े जानकारों के ऐसे आकलन के बाद मैं किस कलम से ये तर्क कर सकता हूं इस शतक के बावजूद रोहित शर्मा को टेस्ट करियर में खुद को वर्ल्ड क्लास साबित करने के लिए काफी कुछ करना होगा. हुसैन का मैं बहुत सम्मान करता हूं कि लेकिन उनकी रोहित को लेकर राय को संदेह से देखता हूं.

आलोचना नहीं संतुलित आकलन ज़रुरी
आज सोशल मीडिया पर रोहित की एक बहुत बड़ी सेना है जो ऐसे लेख पढ़ने के बाद मुझे भी ट्रोल कर सकती है लेकिन हकीकत हर किसी को जानने की ज़रुरत है. चाहे वो अवसर ऐसा भी क्यों ना हो जब रोहित ने अपने करियर की सबसे शानदार टेस्ट पारी खेली है. मुझे ग़लत ना समझिएगा क्योंकि मैं रोहित का आलोचक ना होकर सही कहूं तो उनका फैन हूं और हमेशा चाहता हूं कि वो टेस्ट क्रिकेट में वैसे ही अपना झंड़ा गाड़ें जैसा कि उन्होंने सफेद गेंद की क्रिकेट में किया है. लेकिन, जबतक वो ऐसा नहीं करते हैं तो उनसे टेस्ट क्रिकेट की चुनौतियों का पूरी कामयाबी से अब तक सामना नहीं करने पर तीखे सवालों से गुज़रना ही पड़ेगा.

घरेलू पिचों का ब्रैडमैन हैं रोहित?

चेन्नई में रोहित ने अपने करियर का 7वां शतक लगाया लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू ये है कि टेस्ट क्रिकेट में रोहित के बल्ले से शतक एक बार फिर से घरेलू पिच पर ही आया है. 36 मैचों के अब तक के सफर में हर शतक घर पर ही, विदेश में एक भी नहीं! ऐसा नहीं है कि घर में शतक लगाना कोई जुर्म है. उल्टे, रोहित के हर रिकॉर्ड का जश्न मनना चाहिए. उस रिकॉर्ड का भी जिसके चलते अब वो घरेलू पिचों पर डॉन ब्रैडमैन (98.22 का औसत और 18 शतक) के बाद सबसे ज़्यादा औसत (83.55) रखने वाले बल्लेबाज़ हैं.  लेकिन, ना सिर्फ ब्रैडमैन बल्कि कोहली के कई समकालीन (स्टीव स्मिथ, विराट कोहली  और केन विलियम्स्न का भी औसत 60 से 67 के बीच है) का भी घरेलू पिचों पर रिकॉर्ड लाजवाब हैं लेकिन वो विदेश में भी रन खूब बनाते हैं. यही फर्क है रोहित और बाकि महान बल्लेबाज़ों में. लाल गेंद की क्रिकेट में.

बिना किसी हिचकिचाहट के रोहित की टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाज़ी की तारीफ़ करना हुसैन या बाकि क्रिकेट एक्सपर्ट की तरह इसलिए आसान नहीं हो पाता है क्योंकि भारत के बाहर (20 मैच, 37 पारियां, 27  का औसत और सिर्फ 6 अर्धशतक) उनका बल्ला अक्सर खामोश ही दिखता है. बड़े-बड़े स्कोर तो दूर की बात वो 80-90 तक पहुंचने में ही संघर्ष करते दिखते हैं. 2020 के न्यूज़ीलैंड दौरे को टेस्ट ओपनर के तौर पर रोहित की सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर देखा जा रहा था लेकिन वो दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से चोटिल हुए सीरीज़ से बाहर हो गए.

ऑस्ट्रेलिया में गिल-पंत लूट ले गए ‘रोहित की महफिल’?

उसके बाद पिछले ऑस्ट्रेलिया दौरे को काफी अहम माना जा रहा था जिसमें रोहित को खुद को बल्लेबाज़ के तौर उठने वाले हर सवालों का जवाब देना था. लेकिन वो तो दौरे से पहले ही विवादों के घेरे में आ गए जब कप्तान कोहली और कोच ने सार्वजनिक तौर पर इस बात पर बवाल मचा दिया कि रोहित ने टेस्ट की बजाए आईपीएल को प्राथमिकता दी और इसके टलते पहले 2 टेस्ट वो खेल नहीं पाए. लेकिन, उसके बाद क्या हुआ? सिडनी टेस्ट के दौरान 407 रन का टारेगट था तो युवा ऋशभ पंत ने अपनी 97 रन की पारी से क़त्लेआम मचाया और एक अंसभव से दिखने वाली जीत को संभव सा बना दिया. बाद में मैच ड्रॉ हुआ तो तारीफ हनुमा विहारी और अश्विन की हुई. इसके बाद ब्रिसबेन टेस्ट में 328 रन के लक्ष्य का पीछा का मौका आया तो इस बार महफिल शुभमन गिल और फिर से पंत जैसे युवा बल्लेबाज़ों ने लूट ली. ऐसा नहीं था कि टीम के अनुभवी बल्लेबाज़ चुप थे. चेतेश्वर पुजारा ने अपनी साख के साथ न्याय करते हुए रन भले ही बहुत नहीं बनाए लेकिन क्रीज़ पर समय बिताकर अपना रोल बखूबी निभाया.

कहने का मतलब बिलकुल ये नहीं है कि ऑस्ट्रेलिया में रोहित पूरी तरह से फ्लॉप रहे लेकिन 26, 52, 44, और 7 रन की पारियों को अब 1 महीने बाद किसी को याद नहीं आ रहा है तो इतिहास क्या याद रखेगा कि बेहद विषम हालात में 2-1 से सीरीज़ जीतने में इस खिलाड़ी की क्या भूमिका रही थी.

रोहित की प्रतिभा या क्लास में नहीं है खोट

इंग्लैंड के पूर्व कप्तान डेविड गावर ने मुझसे बातचीत में ये माना कि लाल गेंद की क्रिकेट में अपना दबदबा साबित करना सफेद गेंद के मुकाबले ज़्यादा चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इसका कतई मतलब नहीं है कि आप रोहित की प्रतिभा या फिर उनके क्लास में खोट निकालें. बहुत सारे खिलाड़ी ऐसे हुए हैं जिन्होंने सफेद गेंद में तहलका मचाने के बावजूद लाल गेंद में संघर्ष किया है. रोहित तो ऐसे में अपवाद नहीं है. लेकिन, उन्हें इस बात से ज़्यादा परेशानी होती होगी.

बहरहाल, रोहित के पास अब भी वक्त है. अपने करियर के आखिर दौर में वो प्रवेश कर चुके हैं. अगले 3-4 सालों में वो कम से कम 20 मैच सेना मुल्कों (दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया) में खेलेंगे. इसी दौरान अगर वो चेन्नई की 161 जैसा 4-5 पारियां या फिर मैच-जिताने वाली पारियां खेल देते हैं तो निश्चित तौर पर इतिहास उन्हें एक संपूर्ण बल्लेबाज़ के तौर पर उनकी महानता का आकलन करेगा. वर्ना रोहित का महानता को ज़बरदस्ती कोहली के साथ तुलना करने के लिए जानकारों को ‘इंटरनेशनल 100’ का जिक्र करना पडेगा ना कि सिर्फ टेस्ट क्रिकेट वाली तराजू का इस्तेमाल. वो भी विदेश में प्रदर्शन वाले चश्मे से देखते हुए.

शनिवार को चेन्नई में रोहित ने जो पारी खेली उससे देखकर हर किसी ने माना कि वो किसी दूसरी पिच पर खेल रहे थे. मतलब टर्निंग पिच की मुश्किल उन्हें कतई परेशान नहीं कर रही थी. अगर रोहित ने विदेश में भी पिच और कंडीशंस को बेमानी साबित कर दिया तो निश्चित तौर पर हुसैन ही नहीं मेरे जैसे फैन और आलोचक भी उनकी कामयाबी पर बेहद खुश होंगे. (डिस्क्लेमर: यह लेखक के निजी विचार हैं.)





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