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मांडू17 घंटे पहले
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मांडू की उत्सवी शाम वेलेंटाइन डे 14 फरवरी पर आदिवासी लाेक संस्कृति और संगीत से सराबाेर रही।
रानी रूपमती और बाजबहादुर की प्रणय गाथा के साक्षी रहे मांडू की उत्सवी शाम वेलेंटाइन डे 14 फरवरी पर आदिवासी लाेक संस्कृति और संगीत से सराबाेर रही। प्राचीन स्मारकाें की ओट से ढलता सूरज और शीतल पवन के झोकाें के साथ मांदल की थाप पर जब मदमाती बांसुरी की तान छिड़ी ताे कुर्राटी ने देखने-सुनने वालाें में जाेश भर दिया। हामू काका बाबा न पाेरिया…, काली चिड़ी तू बड़ी नखराली रे…जैसे लाेकप्रिय गीताें काे आदिवासी लाेक गायक आनंदीलाल भावेल बाग ने स्वर दिया ताे श्राेता झूम उठे। मुक्त बैंड की स्वर लहरियाें ने मांडू की वादियाें काे झंकृत कर दिया।
अंतरराष्ट्रीय मांडू उत्सव के दूसरे रविवार काे सुबह से कई गतिविधियाें का पर्यटकाें ने लुत्फ उठाया। राज्य सभा सांसद सोलंकी और कलेक्टर सिंह ने अपनी पत्नियों के साथ लोक नृत्य किया। कबीर के दोहे बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, हम जगत के जोगी हम को कहां आराम पर भी प्रस्तुति दी। मुक्त बैंड के उदित भावसार गिटार व गायन, तरुण गागरेकर गिटार और बैंड, धवल यादव तबले के अलावा गीत-गजल की प्रस्तुति, हमदीप बेस्ट गिटार यश जोशी ड्रम पर संगत की।
मांडू उत्सव के दूसरे दिन सुबह 5 बजे से दिन की शुरुआत मांडू की गुड मॉर्निंग के साथ हुई। रानी रूपमति महल से जहाज महल और दिल्ली दरवाजे तक का एक अलग ही नजारा रहा। सुबह 7 से 9 बजे तक कार्यक्रम स्थल के अलावा मांडू की वादियों में योग कार्यक्रम हुए।
दूसरे दिन के कार्यक्रम का शुभारंभ राज्यसभा सांसद सुमेर सिंह सोलंकी ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया। धार जिला कलेक्टर आलोक कुमार सिंह, एसपी आदित्य प्रताप सिंह, मांडू नगर परिषद अध्यक्ष मालती जयराम गावर मौजूद थे।
दोपहर में पर्यटकों ने जंगल में भ्रमण कर यहां की संस्कृति व परिवेश जाना और स्मारक देखे। कुछ ने मालीपुरा तालाब के किनारे हॉर्स ट्रोल फीसिंग का आनंद लिया तो कुछ ने घुड़सवारी का लुफ्त उठाया। उधर प्रदेश के चुनिंदा कलाकारों ने अपनी अनूठी कलाकृतियों की आर्ट ऑफ गैलरी में प्रदर्शनी लगाई। इसमें जंगलों से और हाथों से बनाई कलाकृतियां आकर्षण का केंद्र रही।
मुक्त बैंड की प्रस्तुतियां आकर्षण का केंद्र बनी
कबीर के दोहे और निंदा फाजली की गजल के साथ गरज बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला… चिड़ियों से दाना बच्चों को गुड़धानी दे मौला…की प्रस्तुति दी गई। लेखक धर्मवीर भारती के खंडकाव्य अंधायुग के बाेलाें टुकड़े-टुकड़े हो बिखर चुकी मर्यादा पर कलाकाराें ने प्रस्तुति दी।
भावेल और कैलाश के नृत्य दल ने दी प्रस्तुति
कुक्षी के भावेल के हामू काका बाबा ना पोरिया, क्यों मारी रे क्यों पिटी रे बालमाें के साथ कैलाश सिसौदिया ग्रुप के आदिवासी नृत्य दल ने छाप छोड़ी। हाथ में लाठी और तीर कामठी लिए मांदल की थाप पर कुर्राटी लगाते हुए 20 सदस्यीय नृत्य दल ने 45 मिनट तक समा बांधा।