न्यूज वेबसाइट्स, टीवी चैनल, अखबारों, सोशल मीडिया में ऑक्सीजन की कमी से मरीजों की मौतों की खबरें, उनके परिजनों के रूदन और दवा बाजारों में संजीवनी इंजेक्शन पाने के लिए भटकते या दवा दुकानों के सामने लंबी कतारों की तस्वीरें सच बोल रहीं हैं या सरकारी दावे सच्चे और वास्तविक हैं, यह शोध का विषय हो सकता है. हकीकत यह है कि लड़ाई अब भारी होती जा रही है. दवाओं, ऑक्सीजन का टोटा है, अस्पतालों के आईसीयू तो पहले ही भर गए थे, अब वार्डों में भी पलंग खाली नहीं रह गए हैं. कोरोना से मरने वालों की संख्य इतनी ज्यादा है कि श्मशानों, कब्रिस्तानों में जगह नहीं बची है, वह छोटे पड़ गए हैं. अंतिम संस्कार के लिए घंटों की वेटिंग चल रही है. पहले से ही स्थान रिजर्व कराना पड़ रहे हैं. यह सब हालात सिस्टम की बदइंतजामियों और लोगों की लापरवाही का नतीजा है.
सांसों पर भारी पड़ रहा कोरोना
बता दें कि कोरोना के बढ़ते संक्रमण के मामलों में मध्यप्रदेश देश के सर्वाधिक संक्रमण वाले 7 राज्यों में शुमार हो गया है. हालातों की भयावहता का अनुमान आप इससे लगा सकते हैं कि यहां 8 अप्रैल गुरुवार को 4324 केस मिले. इनमें अकेले भोपाल में 657 और इंदौर में 867 नए केस मिले. ऑक्सीजन की खपत 10 गुना या उससे भी ज्यादा बढ़ गई है. ऑक्सीजन की कमी के कारण अब सांसों पर कोरोना भारी पड़ रहा है और लोग अकाल मौत मर रहे हैं. सरकार ऑक्सीजन की कमी की बात भले ही न माने, लेकिन बड़वानी जैसे जिलों में ऑक्सीजन की कालाबाजारी पकड़ी गई है. ऑक्सीजन के संकट को रोकने के लिए ही सरकार को भोपाल के ऑक्सीजन प्लांट्स पर पहरा बैठाना पड़ा. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बैच को महाराष्ट्र सरकार को यह आदेश देना पड़ा है कि वह मध्य प्रदेश को निर्बाध रूप से ऑक्सीजन की सप्लाई करे. हाइकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के उस नोटिफिकेशन पर भी रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि मेडिकल इस्तेमाल की ऑक्सीजन का 80 फीसदी हिस्सा पहले महाराष्ट्र के अस्पतालों को देना होगा. गुजरात भी मध्यप्रदेश को ऑक्सीजन नहीं दे रहा. यही वजह है कि राज्य के सीएम शिवराज सिंह चौहान को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग में गुजरात से मदद दिलाने का आग्रह करना पड़ा.ऑक्सीजन की कमी से मौतों पर नजर
सागर-उज्जैन में 24 घंटे में ऑक्सीजन की कमी से 15 लोगों की मौत हो गई. सागर बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में 10 लोगों की मौत हुई, जबकि कोविड -19 शासकीय माधव नगर अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से 5 मरीजों की मौत हुई. इन मौतों के बाद भड़के मरीजों के परिजनों ने अस्पताल में भारी तोड़फोड़ की और पथराव किया. हालात इतने बिगड़े कि अतिरिक्त कलेक्टर सुजान सिंह रावत को अस्पताल के एक कमरे का दरवाजा बंद कर अपनी जान बचानी पड़ी. बताते हैं कि उज्जैन में तो भाजपा के एक कार्यकर्ता ने रात में ही सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन की कमी बता दी थी, फिर भी ज़िम्मेदार नहीं जागे. नरसिंहपुर के अस्पताल में मां की मौत से बेसुध बेटी चीखती रही, जब अस्पताल में ऑक्सीजन नहीं दे सकते है, कहते हो कोरोना की कोई दवा ही नहीं, तो इलाज किस बात का कर रहे हो.
महाराष्ट्र और गुजरात से ऑक्सीजन की सप्लाई बंद
मध्यप्रदेश को महाराष्ट्र, गुजरात से ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद होने से राज्य के 250 से ज्यादा अस्पतालों को मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है. अगर हालात नहीं सुधरे, तो यह मुसीबत और बढ़ने वाली है. एक तो दिक्कत ऑक्सीजन की कमी की है, दूसरी तरफ ऑक्सीजन की कीमत भी 26 रुपए घनमीटर से बढ़ाकर 37 रुपए घनमीटर कर दी गई है. वास्तव में कोविड अस्पताल में भर्ती मरीजों को ऑक्सीजन की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, लेकिन उसका टोटा मरीजों के लिए खतरा ए जान बना हुआ है. राजधानी भोपाल में ऑक्सीजन के तीनों प्लांट्स पर कलेक्टर ने पहरा बिठा दिया है. भोपाल में तीन प्लांट्स मिलाकर प्रदेश में कुल 17 छोटे बड़े प्लांट्स चिन्हित किए गए. जहां से ऑक्सीजन की सप्लाई अस्पतालों में हो रही है. अन्य राज्यों से भी ऑक्सीजन बुलवाई जा रही है.
कहां से कितनी ऑक्सीजन
सरकार के अनुसार अभी मप्र को 300 टन ऑक्सीजन मिल रही है. उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव संजय शुक्ला के मुताबिक आइनाक्स प्लांट से 150 टन के करीब ऑक्सीजन मिल रही, जबकि भिलाई प्लांट से 60 टन की मंजूरी मिली है, जिसकी पहली खेप कल तक आनी थी, इसके अलावा गुजरात से भी 60 टन ऑक्सीजन अपेक्षित है.
क्यों गड़बड़ाया समीकरण?
वास्तव में कोरोना संक्रमण के मामलों में अचानक बाढ़ सी आ जाने की वजह से जरूरत के अनुसार ऑक्सीजन की आपूर्ति ग़ड़बड़ा गई. यही स्थिति रेमडेसिवर इंजेक्शन को लेकर बनी. लेकिन इस बारे में सवाल यह है कि पिछले साल भी जब कोरोना के चलते हालात गंभीर हुए थे, तब भी ऐसी ही संकटकालीन स्थिति बनी थी. सरकार ने उससे सीख लेते हुए पहले से व्यवस्थाएं सुनिश्चित क्यों नहीं कीं? हालात यह है कि जिस रेमडेसिवर इंजेक्शन की कीमत सरकार ने खुद 1100 रुपए तय की है, वह 10 हजार से 15 हजार रुपए तक ब्लैक मार्केट में बिक रहा है. सरकार कहती है कि रेमडेसिवर की कोई कमी नहीं है, तो सवाल है कि अगर कमी नहीं है, तो दवा की कालाबाजारी क्यों की जा रही, क्यों इस पर लगाम नहीं है? भोपाल, इंदौर के दवा बाजारों में इंजेक्शन के लिए लंबी कतारें क्या सरकार की कथनी, करनी की पोल नहीं खोलतीं?
विपक्ष का आरोप
पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा है कि शिवराज सिंह सरकार ने ऑक्सीजन का इंतजाम न कर कोरोना मरीजों की श्वांस नली से प्राणवायु छीन ली है. ऑक्सीजन के अभाव में सभी अकाल मृत्यु के शिकार हो रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ हों या दिग्विजय सिंह, सभी का एक आरोप है कि जब प्रदेश में कोरोना का गंभीर संकट छाया है. आपदा की इस घड़ी में जब अस्पतालों में बिस्तर कम पड़ गए है, दवाएं नहीं मिल रहीं, ऑक्सीजन का संकट है, ऐसे में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इन सब संसाधनों को जुटाने के काम में लगने की बजाय मिंटो हॉल में गांधी जी की प्रतिमा के पास बैठकर स्वास्थ्य आग्रह की नौटंकी करते हैं. चौराहों पर मास्क बांटने का नाटक करते हैं. 11 से 14 अप्रैल तक टीका उत्सव मनाने की बात करते हैं और खुद सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं. कमलनाथ ने कहा कि वह स्वयं दवा की कमी को दूर करने के लिए महाराष्ट्र सरकार से बात कर रहे हैं. (डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.)