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जबलपुर2 मिनट पहले
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बेटी ललिता ने दी मां को मुखाग्नि।
- वृद्ध मां के साथ रह रहे अकेली रहने वाली बेटी और पोती हो गई थी बदहवास, बेटी ने निभाया रस्म
कोरोना में इंसानों के साथ इंसानियत भी दम तोड़ती नज़र आ रही है। इसे वक्त की मजबूरी कहें या कुछ और लेकिन मातम के इस माहौल में खुद को बचाने की जद्दोजहद के आगे इंसानियत और हमदर्दी जैसे शब्द बौने साबित होने लगे हैं। ऐसा ही दिल को रुला देने वाला एक वाकया रांझी में नजर आया। जहां बुजुर्ग मां की मौत के बाद अकेली रह रही बेटी व पोती पर पहाड़ टूट पड़ा। मोहल्ले वालों ने बजाय मदद के अपने घरों के खिड़की-दरवाजे बंद कर लिए। वो तो भला हो कुछ उत्साही युवकों की, जो आगे आकर बदहवास मां-बेटी के संबल बन गए।
नई बस्ती रांझी निवासी गीता रामटेके (70) की शुक्रवार को अचानक तबियत खराब हुई। उलटी-दस्त के बाद बेटी ललिता शनिवार को विक्टोरिया अस्पताल ले गई। वहां चिकित्सकों ने प्राथमिक उपचार के बार कोरोना का सेम्पल लिया और रविवार सुबह छुट्टी दे दी। बेटी मां को लेकर घर पहुंची। थोड़ी देर बाद रामटेके बाई की मौत हो गई। बेटी की चित्कार सुनते ही बजाए ढांढस बंधाने के पड़ोसियों ने अपने घरों के दरवाजे और खिड़कियां बंद कर ली।

दोपहर तक मां के शव के साथ बैठी रही बेटी।
दोपहर तक शव घर में ही पड़ा रहा
दोपहर तक शव घर पर ही पड़ा रहा। कांधा देने के लिए चार लोग भी नहीं मिल रहे थे। बेटी ने निगम से लेकर कई स्वयंसेवी संस्थाओं को फोन लगाए। कोई आगे नहीं आया। थकहार कर वह मां की लाश के पास ही बदहवासी की हालत में अचेत हो गई। उसकी आठ साल की बेटी भी मां के आंचल को पकड़ कर सो गई।

युवकों ने पेश की मिशाल।
क्षेत्र के युवकों ने पेश की नजीर
इस परिवार के दर्द की जानकारी क्षेत्र के युवकों को हुई। संवेदना के आगे कोरोना का खौफ भी जाता रहा। युवकों ने आपस में मिलकर दो पीपीई-किट की व्यवस्था की। युवाओं का हौसला देख मकान मालिक भी आगे आए। अर्थी का प्रबंध किया गया। फिर शव को शमशान घाट पहुंचाने की परेशानी खड़ी हो गई। कई वाहन वालों ने हाथ खड़े कर दिए।
संक्रमण के खौफ के बीच वृद्धा को दिया कांधा
फिर युवकों का अपना संपर्क काम आया। एक दोस्त की लोडिंग गाड़ी बुलवाई। ललिता को हौसला दिया। संक्रमण के खौफ के बीच वृद्धा को कांधा दिया। इसके बाद शव को कोविड प्रोटोकाल के तहत मुक्तिधाम ले गए। जहां आंसूओं से भीगे हाथों से बेटी ललिता ने मां को मुखाग्नि दी।
मां के शव के पास ही अचेत पड़ी थी ललिता
घटना के संबंध में खेरमाई मंदिर के समीप सर्रापीपल रांझी निवासी मनीष अवस्थी ने बताया कि गीता रामटेके अपनी बेटी ललिता के साथ क्षेत्र में ही किराए के मकान में रहती थी। तीन दिन से वह उल्टी दस्त से परेशान थी। बेटी ने शनिवार शाम उन्हें विक्टोरिया अस्पताल मे भर्ती कराया था। जहां से रविवार सुबह घर भेज दिया गया। गीता के रक्त में आक्सीजन का स्तर काफी घट गया था, जिसके बाद उन्होंने सांस लेने में कठिनाई हो रही थी।

लोडिंग गाड़ी से ले गए मुक्तिधाम।
कोरोना की आशंका के चलते कोई आगे नहीं आ रहा था
एक स्थानीय निजी चिकित्सक ने भी कोरोना की आशंका जताई थी। रविवार सुबह रामटेके बाई की मौत हो गई। मां के अंतिम संस्कार की चिंता में बेटी ललिता बेहाल हो गई थी। हम लोग पहुंचे तो वह मां के शव के पास ही अचेत पड़ी थी। हमारे हौसले के बाद उसने मां का अंतिम संस्कार किया। मां की मौत के बाद ललिता और उसकी बेटी अकेली रह गई हैं।