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- 400th Prakash Parv Will Celebrate Sikh Society By Distributing Food, Mask sanitizer To 1500 Needy People
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सागर35 मिनट पहले
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- सिमानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए त्याग का संदेश देने गुरु सिंघ सभा ने बनाई योजना
गुरु तेग बहादुर सिंह सिख समुदाय के नौवें गुरु हैं। शनिवार को उनका 400वां प्रकाश पर्व मनाया जाएगा। इस उपलक्ष्य में भगवानगंज स्थित गुरुद्वारा में विभिन्न कार्यक्रम होंगे। हालांकि इनमें लोगों को प्रवेश नहीं मिलेगा। सोशल मीडिया के माध्यम से इनका लाइव प्रसारण जरूर सभी लोग अपने घर बैठ कर देख सकेंगे। गुरुद्वारे में सुबह 9 बजे अखंड पाठ साहिब की समाप्ति होगी। इसके बाद सुबह 11 बजे तक कीर्तन दीवान सजेगा।
इसके बाद निशान साहिब की सेवा होगी। अरदास के बाद समारोह की समाप्ति होगी। इसके बाद गुरु का चलित लंगर बरतेगा। गुरु सिंह सभा सागर के अध्यक्ष सतेंदर सिंह होरा ने बताया कि 400वें प्रकाश पर्व के उपलक्ष में हम 1500 लोगों को भोजन के पैकेट, राशन सामग्री, सैनिटाइजर, मास्क आदि वितरित करेंगे। अस्पतालों सहित शनि मंदिर, परेड मंदिर, पहलवान बब्बा मंदिर से लेकर रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड परिसर में जाकर जरूरतमंद लोगों को भोजन के पैकेट देने की तैयारी हमने की है। इसके साथ ही अनाथ आश्रम, दिव्यांगों के आश्रम घरौंदा सहित विभिन्न जगहों पर भी भोजन के पैकेट वितरित किए जाएंगे।
उन्होंने बताया गुरु तेग बहादुर ने धर्म, मानवीय मूल्यों, आदर्शों और सिद्धांत की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राण की आहुति दी थी। सिख धर्म में उनके बलिदान को बड़ी ही श्रद्धा से याद किया जाता है। इसीलिए हम उनके प्रकाश पर्व पर लोगों की मदद के लिए चलित लंगर लगाएंगे। अलग-अलग टीमें शहर भर में जाकर लोगों को भोजन सामग्री उपलब्ध कराएंगी।
युद्ध में बहादुरी की वजह से तेग बहादुर के नाम से मशहूर हो गए
- औरंगजेब ने कश्मीर में हिंदुओं को जबरन मुस्लिम बनाने के वे सख्त विरोधी रहे और खुद भी इस्लाम कबूलने से मना कर दिया। औरंगजेब के आदेश पर उनकी हत्या कर दी गई।
- पिता ने उन्हें त्यागमल नाम दिया था, लेकिन मुगलों के खिलाफ युद्ध में बहादुरी की वजह से वे तेग बहादुर के नाम से मशहूर हो गए. तेग बहादुर का मतलब होता है तलवार का धनी।
- दिल्ली का मशहूर गुरुद्वारा शीश गंज साहिब जहां है, उसी स्थान पर उनकी हत्या की गई थी और उनकी अंतिम विदाई भी यहीं से हुई थी, वो जगह आज रकाबगंज साहिब के नाम से जानी जाती है।
- साल 1665 में उन्होंने आनंदपुर साहिब शहर बनाया और बसाया। वह गुरुबाणी, धर्म ग्रंथों के साथ-साथ शस्त्रों और घुड़सवारी में भी प्रवीण थे।
- उन्होंने 115 शबद भी लिखे, जो अब पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब का हिस्सा हैं।