Both have no hands, work in hospitals, make paintings and sell them with feet, so that they can open art schools for the differently-abled | दोनों हाथ नहीं हैं, हॉस्पिटल में काम करती हैं, पैरों से पेंटिंग बनाकर बेच रहीं, ताकि दिव्यांगों के लिए आर्ट स्कूल खोल सकें

Both have no hands, work in hospitals, make paintings and sell them with feet, so that they can open art schools for the differently-abled | दोनों हाथ नहीं हैं, हॉस्पिटल में काम करती हैं, पैरों से पेंटिंग बनाकर बेच रहीं, ताकि दिव्यांगों के लिए आर्ट स्कूल खोल सकें


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गुवाहाटी5 मिनट पहले

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पैर के जरिए टेलीफोन पर बात करती प्रिंसी।

  • असम के सोनारी की प्रिंसी गोगोई जिनसे मुश्किलें भी हार मान चुकी हैं
  • मानसिक बीमार बताकर स्कूल ने एडमिशन नहीं दिया था, प्राइवेट स्कूल से 10वीं पास की

(दिलीप कुमार शर्मा) ‘मुश्किलें किसके जीवन में नहीं हैं। भगवान मेरे दोनों हाथ बनाना भूल गए लेकिन मैंने पैरों से जीना सीख लिया है।’ 21 साल की प्रिंसी गोगोई जब ये बातें कहती हैं तो उनकी आंखें अटूट विश्वास से और चमकने लगती है। असम के छोटे से शहर सोनारी में पैदा हुई प्रिंसी के जन्म से ही दोनों हाथ नहीं है। फिलहाल वह गुवाहाटी के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में फ्रंट डेस्क एग्जीक्यूटिव की नौकरी कर घर का खर्च उठा रही हैं।

प्रिंसी ने पैरों से लिखकर 12वीं पास की है। प्रिंसी को पेंटिंग, सिंगिंग और स्पोर्ट्स का शौक है। पैरों की अंगुलियों से ब्रश पकड़ कर प्रिंसी ने हाल ही में गणेश की पेंटिंग बनाई जो 30 हजार रुपए में बिकी। वह दिव्यांग बच्चों के लिए एक आर्ट स्कूल खोलना चाहती हैं।

मानसिक बीमार बताकर स्कूल ने एडमिशन नहीं दिया था
प्रिंसी ने बताया, ‘मुझे एक सरकारी स्कूल में कक्षा पांच में इसलिए एडमिशन नहीं दिया गया था क्योंकि मेरे दोनों हाथ नहीं हैं। एक शिक्षक ने मां से कहा था कि वे ‘मानसिक रोगी’ बच्चे को भर्ती नहीं कर सकते। लेकिन एक दरवाजा बंद होता है, तो ईश्वर दूसरा खोल देता है। गांव के ही एक व्यक्ति की मदद से मेरा एडमिशन प्राइवेट स्कूल में हुआ, जहां से मैंने 10वीं पास की।’

सफलता का मंत्रः खुद से रोज पूछें-मैं यह काम कैसे और बेहतर कर सकता हूं..
ऐसा कोई काम नहीं, जो किया न जा सके। जब आप यह विश्वास करते हैं कि आप कोई काम कर सकते हैं, तो आपका दिमाग उसे करने के तरीके ढूंढ ही लेता है। इसका कोई रास्ता है, यह सोचने भर से रास्ता निकालना आसान हो जाता है।

  • अपनी शब्दावली से असंभव, यह काम नहीं करेगा, मैं यह नहीं कर सकता, कोशिश करने से कोई फायदा नहीं…जैसे वाक्य निकाल दें।
  • अपने आप से रोज पूछें, ‘मैं इसे किस तरह और बेहतर तरीके से कर सकता हूं?’ जब आप खुद से यह पूछते हैं, तो अच्छे जवाब अपने आप सामने आएंगे। करके देखिए।
  • अपने काम की क्वालिटी सुधारें। रोज जितना काम पहले करते थे, उससे ज्यादा करें।
  • पूछने और सुनने की आदत डालें। याद रखें, बड़े लोग लगातार सुनते हैं; छोटे लोग लगातार बोलते हैं।

प्रिंसी गोगोई।

तुरंत फैसले के अनुभव बदलें, सफल होंगे

बिना देर किए, तुरंत लिए फैसले उन निर्णयों से बेहतर हो सकते हैं, जो हम काफी सोचने और समझने के बाद लेते हैं। आउटलायर्स और द टिपिंग पॉइंट के लेखक मैल्कम ग्लैडवेल की बेस्टसेलर किताब ‘ब्लिंक’ अब हिंदी में आ रही है। किताब में उन 2 सेकंड्स का जिक्र है, जब हम खुद ही बहुत कुछ ‘जान’ लेते हैं।

  • कला विशेषज्ञ नकल को तुरंत पहचान लेता है। पुलिसकर्मी जानता है कि गोली कब चलानी है। मनोवैज्ञानिक कुछ ही मिनटों में किसी की मनोदशा भांप लेते हैं। यह क्षमता हम सबमें है। हम अपने अनुभवों से छवि गढ़ते हैं।
  • हम किसी बारे में फैसला लेते हैं,तो इसे स्नैप जजमेंट कहेंगे। जैसे कोई जॉन या मैरी कहे, तो हमारा दिमाग बिना किसी बाहरी मदद के सबसे पहले एक पुरुष और एक महिला का नाम होना बताता है।
  • हमें पूर्वाभास होता है। इस पर ध्यान दें और समय-समय पर इन्हें सुधारते रहें तो हमारे त्वरित फैसले ज्यादा प्रभावी साबित होते हैं। ब्लिंक इसी प्रतिभा को धार देने में मदद करती है।

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