दरअसल, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने लॉकडाउन के दौरान 30 वर्षीय विवाहिता से छेड़छाड़ करने के आरोपी की जमानत अर्जी मंजूर करते वक्त अनूठी शर्त लगाते हुए उसे रक्षाबंधन के दिन महिला के घर जाकर उससे राखी बंधवाने का आदेश दिया था. साथ ही, भविष्य में एक भाई की तरह हर हाल में उसकी रक्षा करने का वचन देने और आशीर्वाद लेने को कहा था. हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की महिला वकीलों ने याचिका दायर की गई थी.
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याचिकाकर्ता वकीलों की तरफ से संजय पारिख ने कहा कि इस तरह कि शर्त वाले निर्देश के मामले में हम सिर्फ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट नहीं, बल्कि सभी हाईकोर्ट और निचली अदालत के लिए निर्देश चाहते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम अटॉर्नी जनरल को इस मामले में नोटिस जारी कर रहे हैं. उनके जवाब के बाद आगे सुनवाई करेंगे. इस मामले में आज सुनवाई हुई. अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बेंच से कहा, ‘ये सिर्फ एक ड्रामा है. मैं इसके खिलाफ हूं. इसकी निंदा करता हूं.’
अटॉर्नी जनरल ने हाईकोर्ट के आदेश की आलोचना करते हुए कहा, ‘मेरा सुझाव उन्हें लिंग संवेदीकरण में प्रशिक्षित करना है. ऐसे मामलों में जमानत की शर्तों पर अदालत द्वारा दिए गए निर्णय भी सभी वेबसाइटों पर अपलोड किए जाने चाहिए, ताकि वे जान सकें कि क्या किया जा सकता है और क्या नहीं.’
इस याचिका में कहा गया है कि जमानत की ऐसी शर्त, जो आरोपी को विक्टिम से मिलकर उससे माफी मांगने, उससे राखी बंधवाने के लिए कहती है, उससे घबराकर हो सकता है कि लड़कियां और औरतें शिकायत ही न करें. इस तरह के मामलों में परिवार और आरोपी के दबाव में अक्सर विक्टिम अपना बयान बदल लेती हैं. ऐसी शर्तें उस पर और अधिक प्रेशर डालेंगी.
याचिका में ये भी कहा गया है कि बेल की इस तरह की शर्तें विक्टिम की तकलीफ को और अधिक बढ़ाती हैं, क्योंकि ये आरोपी को विक्टिम से मिलने की, उनके घर में घुसने की आजादी देते हैं. मध्य प्रदेश वाले केस में एक शादीशुदा महिला ने आरोप लगाया था कि उसके पड़ोसी ने उसके घर में घुसकर उसका यौन शोषण किया. इस तरह की शर्त महिला को अपने ही घर में असुरक्षित महसूस कराती है.
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बेंच ने केके वेणुगोपाल की सलाह को उचित माना और कहा कि इस केस में हाईकोर्ट के जज जमानत देते समय शर्तों को लेकर अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकते थे. बेंच ने कहा, ‘एक बार जब हम परिभाषित करते हैं कि क्या अनुमेय है और क्या नहीं है, तो यह एक तरीका बन जाता है. लिहाजा अदालतों को ऐसी शर्त देने से पहले अच्छी तरह से सोच-विचार लेना चाहिए.’
सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल और बाकी याचिकाकर्ताओं को अपने सुझाव पेश करने को कहा है, जिसे अंतिम आदेश के समय इस्तेमाल किया जाएगा. मामले पर अगली सुनवाई अब 27 नवंबर को होगी.