बदनावर सीट यहां से सिंधिया समर्थक विधायक राजवर्धनसिंह दत्तीगांव के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाने के कारण खाली हुई है. दत्तीगांव अब एमपी की बीजेपी सरकार मे उद्योग मंत्री हैं. पश्चिमी मध्यप्रदेश में बसे आदिवासी बाहुल्य धार जिले में कुल 7 विधानसभा सीट हैं. 2018 में हुए चुनाव में 6 सीटो पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था जबकि भाजपा को 1 सीट से ही संतोष करना पड़ा था.
सत्ता विरोधी लहर पर सवार रहता है बदनावर
बदनावर विधानसभा सीट का इतिहास देखा जाए तो कुछ अपवाद छोड़कर यहां हमेशा सत्ता के विपरित निर्णय लेने की परम्परा रही है. सन 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति लहर जैसे माहौल में जब कांग्रेस ने पूरे प्रदेश में ज़र्बदस्त बहुमत प्राप्त हासिल किया था. लेकिन बदनावर में कांग्रेस उम्मीदवार चुनाव हार गए थे. यहां से भाजपा के रमेश चंद्रसिंह राठौर ने जीत दर्ज की थी. इसी प्रकार 1989 मे पूरे देश में राम लहर चली थी और प्रदेश में भाजपा ने जर्बदस्त सीटें लेकर सरकार बनाई थी, तब भी यहां के मतदाताओं ने भाजपा की बजाए कांग्रेस के उम्मीदवार प्रेमसिंह दत्तीगांव को जीतवा कर भेजा था. इसी तरह 1993 में जब प्रदेश मे कांग्रेस का जादू सिर चढ़कर बोल रहा था और कांग्रेस का हर छोटा बड़ा नेता जीत गया था लेकिन बदनावर के मतदाताओं ने कांग्रेस के बजाए भाजपा पर विश्वास जताया थाराजपूतों और पाटीदारों का संपन्न इलाका है बदनावर
क्षेत्र में राजपूत मतदाता करीब 35 से 40 हजार हैं. पाटीदार करीब 40 से 45 हजार मतदाता हैं. वही 50 हजार आदिवासी मतदाता भी हैं. जबकि 15 से 18 हजार मुस्लिम मतदाता हैं. इसके अलावा जाट , सिरवी, यादव, माली, राठौर समाज के लोग यहां रहते हैं. बदनावर की पूरी राजनीति राजपूत और पाटीदार मतदाता के इर्द गिर्द ही घूमती है. यही निर्णायक मतदाता हैं और यही कारण है कि दोनों ही प्रमुख पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस राजपूत और पाटीदार प्रत्याक्षी चुनने में ज्यादा विश्वास रखती हैं.. पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस से राजवर्धनसिंह दत्तीगांव और बीजेपी से भंवरसिंह शेखावत दोनों राजपूत उम्मीदवार थे .
ऐसा है बदनावर का भूगोल
बदनावर विधानसभा क्षेत्र की सीमा धार, रतलाम, उज्जैन, इंदौर, झाबुआ जिलों को टच करती है. इस इलाके में खेती किसानी वाले मतदाता अधिक हैं. राजपूत और पाटीदारों के पास ज़मीन अच्छी मात्रा में है. एक बड़े भू भाग पर खेती की जाती है और क्षेत्र के किसान सीजन की फसलों के साथ ही साथ ही सब्जियां भी उगाते हैं. जो बड़े शहरों तक भी भेजी जाती हैं. बदनावर, इंदौर-रतलाम- उज्जैन-धार जैसे शहरों के बीच स्थित होने के कारण व्यापार व्यवसाय की दृष्टि से भी संपन्न माना जाता है .
राजवर्धन सिंह का राजनैतिक सफर
राजवर्धनसिंह धार के दत्तीगांव के रहने वाले हैं. इनके पिता प्रेमसिंह दत्तीगांव और माता कुसुम सिंह दत्तीगांव भी राजनीति में थे. प्रेमसिंह दत्तीगांव बदनावर से विधायक रहे हैं जबकि इनकी माता कुसुम सिंह दत्तीगांव जिला पंचायत उपाध्यक्ष रहीं.
राजवर्धन सिंह का राजनैतिक सफर ठीक तरह से 1998 से शुरू हुआ जब ये निर्दलीय प्रत्याक्षी के रुप में विधान सभा चुनाव लड़े. हालांकि इससे पहले ही ये राजनीति में सक्रिय हो गये थे और कई छोटे बड़े पदों पर रहे हैं.1998 के चुनाव में बैलगाड़ी इनका चुनाव चिन्ह था. इनके सामने कांग्रेस के मोहनसिंह बुंदेला और बीजेपी से खेमराज पाटीदार थे. सन् 2003 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े जिसमें इन्होंने बीजेपी के खेमराज पाटीदार को हराया. सन् 2008 में फिर से कांग्रेस का टिकट मिला और खेमराज पाटीदार को फिर हराया. 2013 में कांग्रेस से चुनाव लड़े लेकिन इस बार बीजेपी के भँवरसिंह शेखावत ने इन्हें हरा दिया. 2018 में कांग्रेस ने फिर राजवर्धन को मैदान में उतारा और इस बार इन्होंने बीजेपी के भंवरसिंह शेखावत को हराकर अपनी पुरानी हार का बदला ले लिया.
सिंधिया के करीबी
राजवर्धनसिंह दत्तीगांव ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेहद करीबी हैं. यही कारण है कि अभी हाल ही मे सिंधिया के साथ ये भी बीजेपी में चले गए. 2018 विधानसभा चुनाव मे राहुल गांधी ने ग्वालियर मे आमसभा को संबोधित किया था. इस आमसभा का संचालन भी राजवर्धन सिंह ने किया था.राजवर्धनसिंह बदनावर के कद्दावर नेता है और यहाँ इनकी तूती बोलती है. राजवर्धन युवक कांग्रेस के जिला अध्यक्ष,प्रदेश युवक कांग्रेस के महासचिव, जिला कांग्रेस उपाध्यक्ष और जिला कांग्रेस महामंत्री के पद पर रह चुके हैं.
अनुभवी नेता हैं कमल सिंह पटेल
कमल सिंह पटेल कांग्रेस के एक अनुभवी नेता हैं.उन्होंने अपने राजनीतिक सफर में मंडी से लेकर जनपद जिला पंचायत तक के चुनाव लड़े.15 साल से कानवन में कांग्रेस पंचायत पर काबिज हैं.राजपूत समाज में कमल पटेल अच्छी पेठ रखते हैं.चामला पट्टी में व्यक्ति गत संबंध का फायदा इन्हें मिलेगा. कमल पटेल को क्षेत्र का प्रभावी नेता मान सकते हैं.उनके पुत्र वर्तमान में सरपंच हैं जो काफी लोक प्रिय माने जाते हैं. कमल सिंह पटेल ऐसा नेता हैं जो सरल-सहज स्वभाव के हैं और लोगों को आसानी उपलब्ध रहते हैं.वर्तमान में ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष हैं. जब राजवर्धन सिंह कांग्रेस में थे तब कमल पटेल के खास हुआ करते थे. लेकिन अब दोनों आमने सामने विपक्षी पार्टियों से चुनाव मैदान में हैं.