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- The 81 year old Kanhaiya And His Son, Who Were Engraved On The Card board From The Hands Of Ganga Water And Natural Colors Of The Scene Of Sita Ram Court
ग्वालियर24 मिनट पहले
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गंगाजल और प्राकृतिक रंगों से सीता-राम दरबार के चित्र बनाते कन्हैयालाल।
- शहर की इस कला से बनने वाले चित्रों के मुंबई तक कद्रदान, लेकिन सरकारी प्रोत्साहन नहीं
- ओली क्षेत्र में रहने वाले इन कलाकारों को कॉलेजों में ट्रेनिंग देने के लिए बुलाया जा रहा है
(प्रदीप बौहरे) दीपावली पूजन के लिए सिंथेटिक रंगों से बने महालक्ष्मी जी के चित्र की जगह यदि आप कार्ड बोर्ड पर हाथ से उकेरे गए चितेराकला से बने चित्र काे देखेंगे ताे आपकाे अहसास हाेगा, जैसे कि आप दशकाें पुराने दाैर में पहुंच गए हैं। चितेराकला की यही पहचान है।
इस कला से चित्राें काे उकरेने वाले चंद कलाकार ही अब शहर में बचे हैं, जाे दीपावली पूजन के लिए सीता-राम (नारायण और लक्ष्मी रूप), गरुड़, हनुमान जी, सूर्य, चंद्रमा, गणेश जी और चार हाथियों के चित्र एक ही कार्ड-बोर्ड पर उकेरने में जुटे हुए हैं। साधारण पानी की जगह गंगाजल और सिंथेटिक रंगाें की जगह प्राकृतिक रंगाें का उपयाेग कर ये चित्र बनाए जा रहे हैं।
इनकी पूछपरख दिल्ली और मुंबई तक है। ग्राहकों की विशेष मांग पर ये चित्र बनाए जा रहे हैं। कहा जाता है कि चितेराकला से बनाया गया यह चित्र लंका विजय के बाद अयोध्या वापसी पर अयोध्या में आयोजित राम दरबार का चित्र है। इस चित्र की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि प्रभुराम की अयोध्या वापसी के उपलक्ष्य में ही दीपावली मनाई जाती है। शहर में रहने वाले चितेरा कलाकार दीपावली के अवसर पर 2 से 3 हजार तक चित्रों की बिक्री कर लेते हैं।
एक चित्र की कीमत 150 रुपए तक
चितेरा कला को जीवित रखने वाले 81 साल के कन्हैयालाल कहते हैं कि 1965 के बाद इस चितेरा चित्र की बिक्री कम होने लगी। इसकी जगह प्रिंटिग प्रेस पर छापे जाने वाले लक्ष्मी, गणेश और सरस्वती जी के चित्रों ने ले ली। उनकी कीमत काफी कम होती है। जबकि चितेरा कला के प्रत्येक चित्र को चित्रकार अपने हाथ से बनाता है इसलिए एक चित्र की कीमत 100 से 150 रुपए के बीच होती है।
कन्हैयालाल कहते हैं कि पहले 200 से ज्यादा लोग इस कला को जानते थे। अब तो 10-12 लोग ही रह गए हैं। कन्हैयालाल की पत्नी पवन, बेटे धर्मेंद्र, जितेंद्र और देवेंद्र इस कला को आगे बढ़ा रहे हैं। दीपावली पर राम दरबार के अलावा यह कलाकार शादियों में घरों के बाहर चित्रकारी करते हैं।
कन्हैयालाल बताते हैं मुंबई और दिल्ली में जिन लोगों के घर दीपावली पूजा में यह चित्र रखे जाते हैं वह अब भी किसी को भेजकर यह चित्र मंगवाते हैं। माधौगंज के चितेरा ओली क्षेत्र में रहने वाले इन कलाकारों को कॉलेजों में छात्र-छात्राओं को ट्रेनिंग देने के लिए बुलाया जा रहा है, लेकिन कलाकारों को पुरस्कार और प्रोत्साहन नहीं मिले हैं इसकी वजह से भी यह कला लुप्त हो रही है।