टीम इंडिया टी20 सीरीज़ पहले ही जीत चुकी थी. लेकिन तीसरा टी20 हार गई. इस मैच में हमने ऑस्ट्रेलिया को 186 रन पर रोक दिया था. जब अपनी बल्लेबाजी शुरू हुई तो ऐसा लगा कि सबकुछ बाद में करने के लिए छोड़ते जा रहे हैं. फिर बाद में कुछ नहीं हो पाया. बीस ओवर खत्म हो गए और 12 रन कम रह गए.
Source: News18Hindi
Last updated on: December 8, 2020, 9:56 PM IST
दूसरे टी20 को आसानी से नहीं जीता था
दो दिन पहले की बात है जब भारत ने दूसरा टी20 मैच जीता था. टीम इंडिया को जीतने के बावजूद उस मैच से एक सबक लेना चाहिए था, जो उसने नहीं लिया. दूसरे टी20 मैच में भारतीय टीम ने फिजूल में ही बाद के ओवरों में अपने ऊपर दबाव बढ़ा लिया था. बाद में हार्दिक और श्रेयस ने तेज खेलकर किसी तरह लक्ष्य हासिल कर लिया था. आज ऐसा नहीं हो पाया. हालांकि आज पिछले मैच जैसा बहुत कुछ हुआ. ऑस्ट्रेलिया ने लक्ष्य भी लगभग उतना ही दिया था. और उसका पीछा करते हुए शुरुआती दस ओवर में हम रन भी लगभग उसी रफ्तार से बनाते रहे. अपने विकेट भी बचाए रखे. लेकिन इस बार बाद के ओवरों में लक्ष्य पाना मुश्किल हो गया. गौर किया जाना चाहिए शुरुआत में जरूरत के मुताबिक तेज न खेलने के कारण इसबार भी बाद के ओवरों में हर मशहूर खिलाड़ी स्कोरबोर्ड को तेज भगाने की कोशिश में आउट हुआ. क्या हमारी टीम के कोच और दूसरे विशेषज्ञों को एक समीक्षा नहीं करनी चाहिए कि क्रिकेट में जरूरत के लिहाज़ से जोखिम लेकर तेज खेलने के हुनर का जिक्र करते रहें?
फिर काम नहीं आई कोहली की ऐसी पारी
पूरे मैच में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले कोहली ही रहे. उन्होने 61 गेंदों में 85 रन बनाए. सरसरी तौर पर देखने में लगता है कि वे तो ठीक खेले लेकिन दूसरे बल्लेबाजों की वजह से हार गए. लेकिन क्या एक यह नुक्ता भी नहीं समझाया जाना चाहिए कि जिस रफ्तार से कोहली खेले उस रफ्तार से अगर हर खिलाड़ी खेलता तो भी टीम को हारना ही था. याद दिलाया जाना चाहिए कि हम 187 रन का पीछा कर रहे थे. यानी हमें तकरीबन 9.3 रन प्रतिओवर की रफ्तार से रन बनाने थे. और साधारण परिस्थितियों में भी यह तभी संभव हो पाता है जब टीम के कम से कम दो तीन बल्लेबाज जरूरी रन रेट से भी एक दो रन ज्यादा की रफ्तार से खेलें. आज की 85 रन की पारी में कोहली का स्ट्राइक रेट 139 दशमलव तीन चार ही रहा. जबकि जबकि जीतने के लिए टीम का स्ट्राइक रेट कम से कम 155.8 होना जरूरी था.
नियमित बल्लेबाजों में कोई भी तो नहीं खेला तेज़
केएल राहुल का केस अलग है क्योंकि वे पहले ओवर की दूसरी गेंद पर ही आउट हो गए थे. बेशक ऐसी स्थिति में कुछ देर के लिए टीम संभल कर खेलती ही है. लेकिन इस तरह बिल्कुल नहीं खेलती कि बाद के ओवरों में हारना पक्का ही हो जाए. गौरतलब है कि आज भारत की दूसरे विकेट की साझेदारी 74 रन की हुई. बीस ओवर के फटाफट क्रिकेट में इतनी बड़ी साझेदारी अच्छी खासी मानी जाती है. लेकिन उसे अच्छा तभी कहते हैं जब उसकी रफ्तार भी ठीक हो. धवन के रूप में जब दूसरा विकेट गिरा तबतक 74 रन बनाने में आठ ओवर और पांच गेंदे खर्च हो चुकी थीं. यानी टीम का रन रेट लगभग सवा आठ रन ही था. जाहिर है जीत के लिए जरूरी रन बढ़कर दस से ज्यादा हो चुका था. धवन के विकेट गिरने से थोड़ी देर के लिए फिर सुरक्षात्मक खेल चलना स्वाभाविक था. लेकिन जल्द ही रफ्तार पकड़ना भी जरूरी था. क्रीज पर संजू सैमसन आए थे. तेज खेलने में उनकी शोहरत भी है. लेकिन दबाव आखिर दबाव ही होता है. वे नौ गेंदों में सिर्फ 10 रन बना पाए और आउट हो गए. श्रेयस भी पहली गेंद पर आउट हो गए. कहा जा सकता है कि कम से कम उन्होंने गेंदें खर्च नहीं कीं. अब पांडया पर एक बार फिर अपना प्रदर्शन दोहराने की बड़ी भारी जिम्मेदारी आ गई. लेकिन आमतौर पर वैसे प्रदर्शन बार बार दोहराना क्रिकेट में दुर्लभ होता है. वे अच्छी रफ्तार से खेलते हुए 13 गेंदों में 20 रन बनाकर आउट हो गए. दरअसल उस समय मुश्किल यह थी कि भारत को जीत के लिए 43 रन की जरूरत थी और गेंदें सिर्फ 18 बची थीं. वैसे तो 14 रन प्रतिओवर बनाना भी कभी कभी संभव हो जाता है. लेकिन इसकी शर्त यही है कि क्रीज़ पर मैक्सवैल या पांडया जैसे खिलाड़ी मौजूद हों. आखिर आउट होने से बचे और रन संख्या के लिहाज से भारी भरकम दिखने वाली पारी खेल चुके विराट कोहली को रफ्तार से रन बनाने के दबाव में आउट होना पड़ा. उसके बाद अपनी टीम के लिए संभावनाएं लगभग समाप्त ही मानी जाने लगी थीं.कोई समीक्षक यह बात भी कह सकता है कि दूसरे खिलाड़ियों के धीमे खेलने से कोहली पर दबाव पड़ गया. लेकिन यह मानना सही नहीं होगा. कोहली भारत की पारी की शुरुआत के पहले ही ओवर में क्रीज पर आ गए थे. और वे 20 ओवर के मैच में 18 ओवर तक मैदान पर रहे. क्या रन रेट का दबाव बढ़ाने में उनकी भी उतनी ही भूमिका नहीं मानी जानी चाहिए.
शार्दूल और वाशिंगटन सुंदर या टीम के अन्य गेंदबाजों से थोड़े बहुत रन बनाने की तो उम्मीद लगाई जा सकती है लेकिन उनसे भारी भरकम रफ्तार से अच्छेखासे रन बनाने की उम्मीद लगाना बेमानी है. बहरहाल, तीसरे टी20 में हार का सबक यही है कि ऐसे फटाफट क्रिकेट में अच्छे खेल की परिभाषा में तेज रफ्तार को शामिल मानना कभी न भूला जाए. और जरूरत के मुताबिक तेज रफ्तार से खेलने की जिम्मेदारी नियमित बल्लेबाजों की ही मानी जाए.
सुधीर जैन
अपराधशास्त्र और न्यायालिक विज्ञान में उच्च शिक्षा हासिल की. सागर विश्वविद्यालय में पढाया भी. उत्तर भारत के 9 प्रदेश की जेलों में सजायाफ्ता कैदियों पर विशेष शोध किया. मन पत्रकारिता में रम गया तो 27 साल ‘जनसत्ता’ के संपादकीय विभाग में काम किया. समाज की मूल जरूरतों को समझने के लिए सीएसई की नेशनल फैलोशिप पर चंदेलकालीन तालाबों के जलविज्ञान का शोध अध्ययन भी किया.देश की पहली हिन्दी वीडियो ‘कालचक्र’ मैगज़ीन के संस्थापक निदेशक, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिमिनोलॉजी एंड फॉरेंसिक साइंस और सीबीआई एकेडमी के अतिथि व्याख्याता, विभिन्न विषयों पर टीवी पैनल डिबेट. विज्ञान का इतिहास, वैज्ञानिक शोधपद्धति, अकादमिक पत्रकारिता और चुनाव यांत्रिकी में विशेष रुचि.
First published: December 8, 2020, 9:56 PM IST