धर्म: श्रीकृष्ण ने इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए उंगली पर उठाया था गोवर्धन पर्वत

धर्म: श्रीकृष्ण ने इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए उंगली पर उठाया था गोवर्धन पर्वत


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मुरैना21 घंटे पहले

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भावगत कथा सुनाते कान्हा महाराज व पांडाल में बैठे श्रद्धाुल।

  • भागवत कथा के दौरान भगवान गिरिराज धरण, गोवर्धन पर्वत महाराज और छप्पन भोग की झांकी सजाई

इंद्र ने क्रोधित होकर भयंकर आंधी तूफान बारिश की। जिससे समस्त गोकुल में त्राहि-त्राहि मच उठी। रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर श्री गोवर्धन पर्वत को धारण किया एवं समस्त गोकुल वासी को शरण दी। इंद्र के कुपित होने पर भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया था। शहर से सटे दाऊजी धाम मुरैना गांव में भगवान श्रीकृष्ण की यह कथा गुरुवार को कान्हा महाराज श्रद्धालुओं को सुना रहे थे। गुरुवार को भागवत कथा के दौरान भगवान गिरिराज धरण की मनमोहक झांकी, गोवर्धन पर्वत महाराज की झांकी एवं छप्पन भोग की झांकी सजाई। जिसके सभी ने दर्शन किए।

भागवत कथा में कान्हा महाराज ने बताया कि श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों की रक्षा के लिए राक्षसों का अंत किया। ब्रजवासियों को पुरानी चली रही सामाजिक कुरीतियों को मिटाने व जीवन सफल बनाने का उपदेश दिया। उन्होंने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र के अहंकार को नष्ट करने के लिए गोवर्धन पूजा कराई थी। इससे पूर्व कथा वाचक ने भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया गया। जिनमें कंस भगवान कृष्ण को मारने के लिए पूतना राक्षसी को भेजता है। भगवान दूध रूप में मिला उसके विष को पीकर के उसका अंत कर उसे मोक्ष दिलाते हैं।

इसलिए होती है गोवर्धन पूजा
जब भगवान श्रीकृष्ण नंद गांव पहुंचे तो देखा कि गांव में इंद्र पूजन की तैयारी में 56 भोग बनाए जा रहे हैं। श्रीकृष्ण ने नंद बाबा से पूछा कि कैसा उत्सव होने जा रहा है। जिसकी इतनी भव्य तैयारी हो रही है। नंद बाबा ने कहा कि यह उत्सव इंद्र भगवान के पूजन के लिए हो रहा है। क्योंकि वर्षा के राजा इन्द्र है और उन्हीं की कृपा से बारिश हो सकती है। इसलिए उन्हें खुश करने के लिए इस पूजन का आयोजन हो रहा है। इस पर श्रीकृष्ण ने इंद्र के लिए हो रहे यज्ञ को बंद करा दिया और कहा कि जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल मिलता है।

इससे इंद्र का कोई मतलब नहीं है। ऐसा होने के बाद इंद्र गुस्सा हो गए और भारी बारिश करना शुरु कर दिए। नंद गांव में इससे त्राहि-त्राहि मचने लगी तो भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को ही उठा लिया। नंद गांव के लोग सुरक्षित हो गए। इसके बाद से ही गोवर्धन पूजा का क्रम शुरु हुआ।



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