एडिलेट टेस्ट का शर्मनाक प्रदर्शन टीम इंडिया की मनोवैज्ञानिक हार है

एडिलेट टेस्ट का शर्मनाक प्रदर्शन टीम इंडिया की मनोवैज्ञानिक हार है


India vs Australia first Test: गेंदबाजी के दबदबे वाले खेल में 53 रन की बढ़त अच्छी खासी मानी जाती है. पहले टेस्ट मैच में भारत की दूसरी पारी के लिए इससे बेहतर और क्या स्थिति हो सकती थी. मनोवैज्ञानिक रूप् से मजबूत स्थिति के बावजूद भारत की दूसरी पारी बुरी तरह ढह गई, इस कदर ढही कि टेस्ट इतिहास के सबसे कम स्कोर पर सिमट गई.

Source: News18Hindi
Last updated on: December 19, 2020, 6:26 PM IST

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गेंदबाजों के दबदबे वाला एडिलेड टेस्ट हम बुरी तरह हार गए. क्या हम गेंदबाजी में कम रह गए? बिल्कुल नहीं. हमारे गेंदबाज ऑस्ट्रेलिया को पहली पारी में 191 रन पर समेट चुके थे. 53 रन की बढ़त दिला चुके थे. गेंदबाजी के दबदबे वाले खेल में 53 रन की बढ़त अच्छी खासी मानी जाती है. पहले टेस्ट मैच (India vs Australia first Test) में भारत की दूसरी पारी के लिए इससे बेहतर और क्या स्थिति हो सकती थी. लेकिन मनोवैज्ञानिक रूप् से मजबूत स्थिति के बावजूद भारत की दूसरी पारी बुरी तरह ढह गई, इस कदर ढही कि टेस्ट इतिहास के सबसे कम स्कोर पर सिमट गई. जाहिर है कि इस टेस्ट की समीक्षा का केंद्र सिर्फ और सिर्फ बल्लेबाज ही माने जाएंगे. अब क्योंकि हमारे सारे बल्लेबाज बिल्कुल एकसी लाचारी में आउट हुए. लिहाज देखना यह पड़ेगा कि ऐसी स्थिति में हो क्या सकता था? और वैसी स्थिति में क्रिकेट के किस विशेषज्ञ विभाग की भूमिका हो सकती थी?

इसे मनोवैज्ञानिक हार क्यों न माना जाए?
हम तिरेपन रन की बढ़त के साथ दूसरी पारी खेलने उतरे हों और पहली पारी में ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजी के जबर्दस्त और सटीक आक्रमण के बावजूद हमने 244 रन बनाकर दिखाए हों, उसके बाद भी अगर दूसरी पारी में अपने बल्लेबाजों ने अतिरिक्त सावधानी के साथ शुरूआत की हो और आस्ट्रेलियाई गेंदबाजों को दिमाग में बैठ जाने दिया हो तो इस दुर्घटना की समीक्षा जरूर होनी चाहिए. याद दिलाया जा सकता है कि विकास करते करते क्रिकेट अब सिर्फ गेंद, बल्ले या पिच का ही खेल नहीं बचा. बाकी और खेलों की तरह इसमें दिमागी पकड़ और एक दूसरे के दिमाग पर चढ़ बैठने का भी खेल होता है. इसीलिए हर खेल के प्रशिक्षक जो आमतौर पर प्रसिद्ध खिलाड़ी ही रहे होते हैं वे अक्सर ज्ञान विज्ञान के दूसरे विशेषज्ञों का दखल पसंद नहीं करते. पहले टेस्ट में अपनी टीम की मनोवैज्ञानिक हार के बाद खेल प्रबंधकों को सोचने के काम पर लग जाना चाहिए कि क्या पूर्णकालिक खेल मनोवैज्ञानिक सेवाओं पर ध्यान देने का समय आ गया है.

ठहर कर खेलने के लिए मनोवैज्ञानिक मजबूती जरूरी

फटाफट क्रिकेट की बहुतायत ने टेस्ट क्रिकेट की लय बिगाड़ी है. कुछ दशकों पहले आमतौर पर टेस्ट मैचों के ड्रॉ रहने की संभावनाएं ज्यादा रहती थीं. पहली ईनिंग में कमजोर रह गई टीम ड्रॉ की तैयारी में लग जाती थी. और इसीलिए मैच बचाने के लिए हर टीम में दीवार बनकर खड़े हो जाने वाले बल्लेबाज जरूर रखे जाते थे. ठहराव वाले खिलाड़ियों का प्रशिक्षण भी उसी हिसाब का होता था. उनके प्रशिक्षक शास्त्रीयता पर ध्यान देते थे. इधर शास्त्रीयता दुर्लभ होती जा रही है. पहला टेस्ट बुरी तरह हारने के बाद खेल प्रबंधन को सोचना पड़ेगा कि क्या मुश्किल दौर पर मस्तिष्क और मांसपेशियों के संतुलन बनाए रखने के विशेषज्ञ प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए.

क्या था कोहली का इस तरह आउट होना?
न सिर्फ भारतीय टीम में बल्कि पूरी दुनिया में सबसे विश्वसनीय खिलाड़ियों में शुमार विराट कोहली दूसरी पारी में जिस तरह आउट हुए उसने साबित कर दिया है कि मुश्किल समय में बैलेंस एंड मूवमेंट का मनोविज्ञान कितना महत्वपूर्ण हो जाता है. क्रिकेट में कोहली जैसे हाजिर दिमाग खिलाड़ी अगर ऑफ स्टंप के बहुत बाहर जाती गेंद को लापरवाही से खेल गए हों तो आसानी से समझा जा सकता है कि मनोवैज्ञानिक दबाव के पलों में विवेक किस कदर कमजोर पड़ जाता है. कोहली पर तो अपने निजी प्रदर्शन का दबाव भी नहीं था. वे पहली पारी में सबसे ज्यादा रन बना चुके थे. जिस समय कोहली आउट हुए उस समय भारत के सिर्फ 19 रन बने थे और पांच खिलाड़ी आउट हो चुके थे. वे ही सबसे बड़ी और लगभग आखिरी आस थे. उन्हें गेंद को बिना छुए रहना आता भी है. लेकिन लगभग छठे स्टंप पर पिच हुई गेंद को छुए बगैर अगर कोहली जैसा खिलाड़ी भी नहीं रह पाया तो बाकी खिलाड़ियों की मनोदशा को आसानी से समझा जा सकता है.क्या कोई काट नहीं था अच्छी गेंदबाजी का
मैच का सीधा प्रसारण करने वाले स्टाफ ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्लिप तैयार की. इस क्लिप में उन चारों बल्लेबाजो को आउट होता हुआ दिखाया जिसमें बल्ले के बाहरी किनारे पर गेंद छूकर विकेटकीपर के दस्तानों में गई. चारों बल्लेबाजों को आउट होते अगर अलग अलग देखें तो ऐसा लगता है कि जैसे रीप्ले देख रहे हों. आज के मैच में बल्लेबाजों को बल्ले के बीचों बीच गेंद लेना मुश्किल हो गया. विशेषज्ञगण अगर गौर करेंगे तो हो सकता है कि यह नतीजा निकले कि फटाफट क्रिकेट की बहुतायत ने गेंद को बल्ले के बीचोंबीच लेने का हुनर ही भुला दिया है. गौरतलब है कि धांय धांय के क्रिकेट में बल्ले के इधर उधर लगी गेंदें भी बाउंड़ी पार कर जाती हैं. सीमित ओवरों के खेल में आउट होने का जोखिम लेने की काफी गुंजाइश होती है. लेकिन संयम रखना तब बड़ा मुश्किल होता है जब उसकी आदत ही पड़ जाए. इसीलिए खेलों में विशेषज्ञ मनोवैज्ञानिकों की बड़ी भूमिका समझी जाना चाहिए.

पहले टेस्ट की समीक्षा करने वाले कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि हार गए क्योंकि भारत की दूसरी ईनिंग में कुछ भी ठीक नहीं बैठा. लेकिन ठीक क्यों नहीं बैठा? इसकी चर्चा न करना ठीक नहीं है. यह तो टैस्ट सीरीज की शुरुआत थी. आगे लंबा सफर तय करना है. उसी देश में उन्ही खिलाडियों से खेलना है. अगर सबक लेते नहीं चलेंगे तो आगे भी मुश्किल आएगी. (डिस्क्लेमर: यह लेखक के निजी विचार हैं.)


ब्लॉगर के बारे में

सुधीर जैन

अपराधशास्त्र और न्यायालिक विज्ञान में उच्च शिक्षा हासिल की. सागर विश्वविद्यालय में पढाया भी. उत्तर भारत के 9 प्रदेश की जेलों में सजायाफ्ता कैदियों पर विशेष शोध किया. मन पत्रकारिता में रम गया तो 27 साल ‘जनसत्ता’ के संपादकीय विभाग में काम किया. समाज की मूल जरूरतों को समझने के लिए सीएसई की नेशनल फैलोशिप पर चंदेलकालीन तालाबों के जलविज्ञान का शोध अध्ययन भी किया.देश की पहली हिन्दी वीडियो ‘कालचक्र’ मैगज़ीन के संस्थापक निदेशक, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिमिनोलॉजी एंड फॉरेंसिक साइंस और सीबीआई एकेडमी के अतिथि व्याख्याता, विभिन्न विषयों पर टीवी पैनल डिबेट. विज्ञान का इतिहास, वैज्ञानिक शोधपद्धति, अकादमिक पत्रकारिता और चुनाव यांत्रिकी में विशेष रुचि.

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First published: December 19, 2020, 6:26 PM IST





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