महिला खिलाड़ियों ने पेश की कामयाबी की मिसाल: सपने सच करने का ऐसा जुनून, किसी ने नौकरी छोड़ी तो किसी ने 10वीं की परीक्षा

महिला खिलाड़ियों ने पेश की कामयाबी की मिसाल: सपने सच करने का ऐसा जुनून, किसी ने नौकरी छोड़ी तो किसी ने 10वीं की परीक्षा


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कृष्ण कुमार पांडेय। भोपाल14 मिनट पहले

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एशियाड की सिल्वर मेडलिस्ट जबलपुर की मुस्कान किरार

  • विक्रम अवार्ड से जिन 10 खिलाड़ियों को नवाजा गया है, उनमें 6 लड़कियां हैं

आज मिंटो हॉल में शाम 6:30 बजे खेल अलंकरण दिए जाएंगे। खास बात ये है कि इस बार प्रदेश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार विक्रम अवार्ड से जिन 10 खिलाड़ियों को नवाजा गया है, उनमें 6 लड़कियां हैं।

इस मुकाम तक पहुंचना आसान नहीं था, लेकिन अपनी मेहनत, जिद और आत्मविश्वास के जरिए इन महिला खिलाड़ियों ने कामयाबी की मिसाल पेश की जो औरों के लिए भी प्रेरणा बन सकती है।आज मिंटो हॉल में दिए जाएंगे खेल पुरस्कार, प्रदेश का सर्वोच्च खेल अलंकरण पाने वाले 10 खिलाड़ियों में से इस बार 6 महिलाएं

हॉकी- कभी किया था विरोध, आज गांव की ही लड़कियां ले रहीं ट्रेनिंग

ग्वालियर की करिश्मा यादव (23) बतौर मिडफील्ड भारतीय महिला हॉकी टीम का हिस्सा हैं। उन्होंने एक दर्जन से अधिक अंतरराष्ट्रीय मुकाबले खेले हैं। करिश्मा ने हॉकी के लिए अपने गांव के यादव समाज के विरोध का डटकर सामना किया। लोगों की न सुन पिता और परिवार ने बेटी को सपोर्ट किया। आज करिश्मा अपने शहर की कई लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं। उनके मेहरा गांव की ही 8 से 10 लड़कियां उनसे हॉकी सीख रही हंै।

जूडो- 5 साल की उम्र में गंवाई आंखें, चंदा जोड़कर इंटरनेशनल टूर्नामेंट खेला

सीहोरा के कुर्रो पिपरिया गांव की जानकी बाई (26) विक्रम अवॉर्ड के लिए चुनी गईं प्रदेश की पहली ब्लाइंड जूडो खिलाड़ी हैं। वे 5 साल की थीं तब उन्हें चिकन पॉक्स हो गया था। घरेलू इलाज के कारण उन्होंने अपनी आंखें गंवा दीं। दो संस्था की मदद से जानकी ने 2014 में जिला जूडो संघ की देखरेख में ट्रेनिंग शुरू की। चंदा एकत्रित कर जानकी इंटरनेशनल टूर्नामेंट खेलने गईं और वहां मेडल भी जीते।

शूटिंग- जब सबने कहा-कॅरियर खत्म, तब वापसी की और वर्ल्डकप में पहुंचीं

देश को पिस्टल शूटिंग में ओलिंपिक कोटा दिलाने वालीं भोपाल की चिंकी यादव (23) ने कॅरियर के सबसे खराब दौर से वापसी की है। सबने उनके कॅरियर को खत्म मान लिया था। 2017 के आखिर से 14 माह तक न कोई बड़ा मेडल आया और न ही किसी टीम में चयन हुआ। स्कोर भी लगातार डाउन हो रहा था, लेकिन चिंकी खुद को मोटिवेट करती रहीं और मेहनत जारी रखी। निरंतर अभ्यास के बाद चिंकी ने वर्ल्डकप में वापसी की।

वाटर स्पोर्ट्स- विक्रम अवॉर्ड का ऐसा जुनून कि एसएसबी की नौकरी छोड़ दी

राजेश्वरी कुशराम (25) 7 साल से भोपाल में रहकर वाटर स्पोर्ट्स का प्रशिक्षण ले रही हैं। विक्रम अवॉर्ड हासिल करने के लिए उन्होंने 5 साल पहले एसएसबी की नौकरी भी छोड़ दी थी। उसके बाद 2016-17 में उनका परफॉर्मेंस डाउन होने लगा, फिर 2018 में अच्छा प्रदर्शन किया। एशियन चैंपियनशिप में दो मेडल जीते, वर्ल्डकप और एशियन गेम्स के फाइनल तक पहुंचीं, पर विक्रम अवॉर्ड नहीं मिला। वे निराश नहीं हुईं और मेहनत जारी रखी।

सॉफ्टबॉल- टीम इंडिया से खेलने का मौका मिला तो छोड़ दी 10वीं की परीक्षा

इंदौर की सॉफ्टबॉल खिलाड़ी पूजा पारखे (21)। उनकी बुआ सविता पारखे को साल 2015 में विक्रम अवॉर्ड मिला था। उन्हीं से प्रेरणा लेकर पूजा 2011 में इस खेल से जुड़ीं, लेकिन शुरुआती 4 साल सफलता नहीं मिली। 2015 में उन्हें टीम इंडिया के लिए चुना गया, लेकिन तब उनके 10वीं के एग्जाम चल रहे थे। उनके सामने दो विकल्प थे पहला, देश के लिए खेलना और दूसरा, परीक्षा देना। ऐसे में पूजा ने टीम इंडिया को चुना।

तीरंदाजी- पहली बार में धनुष नहीं उठा, 6 माह तक प्रत्यंचा नहीं खींच पाई थीं

एशियाड की सिल्वर मेडलिस्ट जबलपुर की मुस्कान किरार (20) जब मप्र तीरंदाजी अकादमी के लिए चुनी गईं, तब वे पहली बार में धनुष तक नहीं उठा सकी थीं। उन्हें धनुष की प्रत्यंचा खींचने में 6 माह लग गए थे। खुद को तैयार करने के लिए वे रोजाना 6 घंटे अभ्यास करती थीं। कंपाउंड-बो (धनुष) की प्रत्यंचा खींचने में शुरुआती दौर के तीरंदाज को 30-40 पाउंड की ताकत लगानी पड़ती है। इसे बाद में 50-60 पाउंड कर दिया जाता है।



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