धर्मिक आयोजन: दोष से बचने राम नाम ही एक उपाय: राजेंद्रदास

धर्मिक आयोजन: दोष से बचने राम नाम ही एक उपाय: राजेंद्रदास


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छतरपुर17 मिनट पहले

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  • नगर के बड़ा मंदिर परिसर में पांच दिवसीय दिव्य सत्संग का आयोजन

नगर के बड़ा मंदिर परिसर में पांच दिवसीय दिव्य सत्संग का आयोजन किया जा रहा है। मलूक पीठाधीश्वर राजेंद्रदास देवाचार्य महाराज द्वारा विनय पत्रिका ग्रंथ के माध्यम से राम नाम की महिमा का बखान हो रहा है। प्रवचन के दूसरे दिन कलयुग के दोषों से बचने का उपाय बताते हुए कहा कि राम नाम एक ऐसा उपाय है। जिसके जपने से कलिमल के दोष उसे नहीं सता सकते।

देवाचार्य ने कहा कि राम नाम सदा सर्वथा दोष रहित है। राम नाम में किसी भी प्रकार की कोई मिलावट नहीं है। आज सभी वस्तुओं में मिलावट हो चुकी है, लेकिन नाम में कोई मिलावट हो ही नहीं सकती। उन्होंने कहा कि दोषों को दूर करने के लिए धर्म के अन्य सभी साधनों को करने में बहुत कठनाई है, लेकिन नाम ऐसा एकमात्र साधन है, जिसको लेने में किसी भी प्रकार की त्रुटि नहीं होती।

मलूक पीठाधीश्वर महाराज ने कहा कि काल का प्रभाव सभी पर पड़ता है। समय से कोई नहीं बच सकता। उसी तरह कर्मों का प्रभाव सभी पर पड़ता है। तुलसीदास कहते है कि गुण, कर्म, स्वभाव और काल कोई नहीं बच सकता है। इन सब पर विजय प्राप्त करना आसान नहीं है। इनके प्रभाव सभी पर है। गुणों का प्रभाव भी जीवों होता है।

उन्होंने कहा कि गुणों का तात्पर्य त्रिगुणात्मक सृष्टि है। इससे देवता भी नहीं बच सकते। इससे तभी बच सकते हैं। जब भजन का प्रभाव हो व्यक्ति त्रिगुणातीत हो जाता है। स्वभाव का प्रभाव भी सभी पर है। स्वभाव पर विजय प्राप्त करने के हमें वह व्यवहार दूसरे से नहीं करना चाहिए जो आपके साथ किया जा रहा है। महाराज ने कहा कि तुलसीदास कहते हैं कि इनसे बचने काल, कर्म, गुण और स्वभाव को जीतने का साधन राम नाम है। तुलसीदास कहते हैं कि सिर्फ राम नाम पर विश्वास करने वाले के इन सभी से पिण्ड छूट जाते हैं।

विकारों की निवृत्ति राम नाम में
कलयुग में अनेक प्रकार के दोष दिखाई देते हैं, इन सब से यदि दूर रहना है तो हमें राम नाम का आश्रय लेना चाहिए। नाम की महिमा अनंत है, कलिमल के दोषों की निर्वित्ति एकमात्र राम के नाम में है। लोभ, मोह, द्वेष, राग, इर्शा, मतशर्य यह 6 प्रकार के विकार हैं। इनके समन का कोई और साधन नहीं है, केवल और केवल भगवान का नाम ही विकारों को दूर कर सकते हैं। इसलिए गोस्वामी तुलसीदास ने 6 बार राम नाम विनय पत्रिका के पद संख्या 130 में लिया है।



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