एक मजबूर वृद्धा की कहानी: जिस पुष्पाबाई के पैर में कीड़े रेंग रहे थे, वह हिंदी साहित्य में डबल MA, बोलीं- नौकरी में मन नहीं लगा, बस आर्मी या पुलिस में जाना चाहती थी

एक मजबूर वृद्धा की कहानी: जिस पुष्पाबाई के पैर में कीड़े रेंग रहे थे, वह हिंदी साहित्य में डबल MA, बोलीं- नौकरी में मन नहीं लगा, बस आर्मी या पुलिस में जाना चाहती थी


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इंदौर10 मिनट पहले

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पुष्पाबाई का इलाज अरबिंदो अस्पताल में चल रहा है। इनसेट में पैर में लगे कीड़े।

पैर में कीड़े लगने के बाद सड़क किनारे पड़ी पुष्पाबाई का अब अरबिंदो अस्पताल में इलाज चल रहा है। पुष्पाबाई अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी और उसने ओल्ड जीडीसी से हिंदी साहित्य में डबल एमए किया है। उसने पढ़ाई के बाद नौकरी भी की, लेकिन उसका मन नहीं लगा। उसे सिर्फ देश सेवा के लिए आर्मी या पुलिस में भी भर्ती होना था। हालांकि इंदौर और सीहाेर आने जाने के कारण उसका यह सपना पूरा नहीं हो पाया। उधर, पुष्पा का इलाज एमवाय अस्पताल में करीब 23 दिनों तक चला था। हालांकि उसने एमवाय में सही इलाज नहीं मिलने का आरोप लगाया, लेकिन एमवाय प्रबंधन के पास उसके भर्ती से लेकर डिस्चार्ज तक होने तक के दस्तावेज मौजूद हैं। जिसमें कहा गया है कि उसके पांव में संक्रमण हो गया था और ऐसे में उसकी जान काे खतरा था।

एमवाय अस्पताल लेकर जाने पर कहा था हाथ जोड़ती हूं वहां नहीं लेकर जाना।

एमवाय अस्पताल लेकर जाने पर कहा था हाथ जोड़ती हूं वहां नहीं लेकर जाना।

अरबिंदो अस्पताल में भर्ती पुष्पाबाई ने बताया कि मेरा जन्म इंदौर के वल्लभ नगर में हुआ था। मेरी माता लक्ष्मी बाई और पिता बाबू सिंह हैं। मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान हूं। मैंने शादी नहीं की थी। मां सिहोर में कलेक्ट्रेट ऑफिस में कार्यरत थी, जबकि पिता बेंग्लोर में नौकरी करते हैं। मैं पुराना एमवाय अस्पताल सोचकर पहुंच गई थी। यहां तीन-चार दिन मुझे एडमिट नहीं किया। इसके बाद मैं पुलिस थाने के पास पहुंची। इसके बाद वे एमवाय अस्पताल लेकर पहुंचे। मरीज ऐसे चिल्ला रहे थे, वहां जानवर चिल्ला रहे थे। मेरा जैसे-तैसे इलाज किया, अगले दिया सुबह छुट्‌टी दे दी। मैंने हाथ जोड़-जोड़कर 10-12 दिन निकाले। मेरे पैर की ऐसी हालत सीहोर और भोपाल के डॉक्टरों के कारण हुई है। मैं तो यहां पर किराए से कमरा खोजने आई थीं। चोट ज्यादा दिक्कत देने लगी तो एमवाय अस्पताल पहुंची थी।

आर्मी या पुलिस में जाना चाहती थी पुष्पा
पुष्पाबाई ने बताया कि कलेक्ट्रेट के पास स्थिति ओल्ड जीडीसी से डबल एमए हिंदी लिस्टलेचर में किया था। मैं अभी वह रिकॉर्ड इसलिए नहीं दे सकती कि मेरा एक ट्रक सामान भोपाल के बैरागढ़ में एक के यहां रखा है। वहां एक पेटी में मेरे दस्तावेज रखे हुए हैं। मां और मैं सिहोर में रहते थे, लेकिन वे दो महीने पहले एक्सपायर हो गईं। मेरी मां जिन्हें बैंक बैलेंस बताकर गई है, वे लोग मुझसे नहीं मिल रहे हैं। सबसे ज्यादा मां के मुंह वहां के चपरासी लगे हुए थे। वे मां से रुपए लिया करते थे।

डबल एमए करने के बाद मैंने नौकरी भी की थी, लेकिन मेरा मन नहीं लगा, क्योंकि मेरी देश सेवा की इच्छा थी। मैं आर्मी या पुलिस में जाना चाहती थी। यहां से ठीक होने के बाद मैं किराए से मकान लूंगी। इसके बाद सीहोर से पूरा सामान लेकर आऊंगी। मेरी मां ने जो किया है वे सभी कागजात सीहोर से लेकर आऊंगी। मेरे मकान में मेरे परिवार के कुछ लोग और कुछ गुंडा तत्वों की संपत्ति पर नजर पड़ गई थी। मेरी मां ने मेरे लिए बहुत कुछ कर गई है।

अरबिंदो में उसके पैर से कीड़े निकाले गए हैं।

अरबिंदो में उसके पैर से कीड़े निकाले गए हैं।

23 दिन तक महिला का एमवाय में चला इलाज
एमवाय अस्पताल के डॉ. पीएस ठाकुर ने बताया कि पुष्पा बाई पिता बाबू सिंह 22 दिसंबर 2020 को अस्पताल में भर्ती हुई थी। 17 जनवरी को इनका डिस्चार्ज कार्ड बना था और 18 जनवरी 2021 को इन्हें डिस्चार्ज किया गया था। इनका इलाज डाॅ. घनघोरिया की यूनिट में 23 दिनाें तक चला। मरीज के पांव में गहरा और संक्रमित घाव था। जिसके संक्रमण से मरीज को जान का खतरा था। मरीज को ऑपरेशन के साथ-साथ एंटीबायोटिक एवं सपोर्टटिव इलाज कर उनकी जान बचाई गई थी। उनकी तबीयत और घाव सूखने के बाद उन्हें अस्पताल में नियमित दिखाने की सलाह एवं दवाइयों के साथ डिस्चार्ज किया गया था। यदि काेई शिकायत होती तो इतने दिनों तक महिला भर्ती नहीं रहती और ना ही विधिवत डिस्चार्ज होती। क्योंकि महिला नाम के साथ डिस्चार्ज हुई थी, इसीलिए अज्ञात महिला में इनकी जानकारी नहीं मिल पा रही थी। इन्हें डिस्चार्ज करते समय ओपीडी मे दिखाने के लिए भी लिखा गया था। इसलिए यह कहना कि एमवाय अस्पताल में केयर नहीं हुई यह पूर्णतया भ्रामक है।



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