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- Ujjain Collector Visits Revealed To Send Patients From Government Hospital To Private Hospitals
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उज्जैन7 मिनट पहले
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उज्जैन कलेक्टर आशीष सिंह ने बुधवार को चरक अस्पताल का औचक निरीक्षण कर प्रसूताओं को निजी अस्पतालों में भेजने की हकीकत जानी
- मरीजों के बयान के बाद कलेक्टर ने दो निजी अस्पतालों को नोटिस जारी करने का दिया आदेश
उज्जैन के सरकारी चरक अस्पताल से जनवरी महीने में डिलीवरी के लिए आईं एक हजार में से 429 प्रसूताओं को दलाल किसी न किसी बहाने से निजी अस्पताल ले गए। आरोप है कि इसमें चरक अस्पताल के कर्मचारी भी शामिल थे। जिन्हें मोटा कमीशन मिलता है। यह चौंकाने वाला खुलासा बुधवार को कलेक्टर आशीष सिंह के चरक अस्पताल के औचक निरीक्षण में हुआ। दरअसल, पिछले कुछ समय से चरक अस्पताल से प्रसूताओं को निजी अस्पतालों में ले जाने की शिकायतें कलेक्टर के पास पहुंच रहीं थीं। दैनिक भास्कर के प्रिंट संस्करण ने भी इस मुद्दे को काफी प्रमुखता से प्रकाशित किया था। चरक हॉस्पिटल में निजी अस्पताल की एंबुलेंस से प्रसूताओं को ले जाते कई बार देखा गया। कलेक्टर ने करीब तीन घंटे अस्पताल में रहकर अलग-अलग फ्लोर पर बने मेटरनिटी वार्ड, आई-ओटी तथा पोषण पुनर्वास केन्द्र एनआरसी का निरीक्षण किया। पोषण पुनर्वास केन्द्र पर मात्र तीन कुपोषित बच्चे भर्ती पाए जाने पर शहर व ग्रामीण के चार परियोजना अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी करने के आदेश दिए हैं। कलेक्टर ने प्री-मेच्योर प्रसव वार्ड में जाकर महिलाओं से पूछा कि वे कितने दिनों से यहां भर्ती हैं। पूछताछ में खुलासा हुआ कि भर्ती महिलाओं में से कुछ महिलाएं प्राइवेट अस्पताल में भी ऑपरेशन करवाने के बाद फिर चरक अस्पताल में भर्ती हुई हैं। कलेक्टर के दौरे के बाद दो निजी अस्पतालों को नोटिस जारी किया है। कलेक्टर ने कहा कि सघन जांच के बाद इसमें अस्पताल के डॉक्टर व कर्मचारियों की संलिप्तता एवं निजी नर्सिंग होम की मिलीभगत मिलने पर दोनों के ही खिलाफ वैधानिक कार्रवाई की जाएगी। इन दो मामलों से जानिए, किस तरह से चरक और निजी अस्पतालों का है गठजोड़ मामला-1 बड़नगर निवासी सुल्ताना ने बताया वह पहले चरक अस्पताल में भर्ती हुई फिर किसी मैडम के कहने पर वह निजी अस्पताल चली गई। वहां पर दो दिन भर्ती रही। ऑपरेशन से बच्चा हुआ जो सात माह का था। अब फिर से शासकीय अस्पताल लौटी हूं। यहां पर प्री-मेच्योर बच्चे और उनका इलाज चल रहा है। निजी अस्पताल में एक लाख रुपये खर्च हुआ। मामला-2 उज्जैन निवासी दिलशाना ने कलेक्टर को बताया कि पहले शासकीय अस्पताल में भर्ती हुई थी। यहां से फ्रीगंज स्थित एक निजी हॉस्पिटल में ऑपरेशन करवाया और फिर वापस शासकीय अस्पताल में भर्ती हो गई। कलेक्टर ने दोनों मामलों को गंभीरता से लिया है। इस गठजोड़ में कौन-कौन शामिल है। किसके कहने से मरीज शासकीय अस्पताल छोड़कर प्राइवेट में गया और फिर शासकीय अस्पताल में लौटा है, इसकी पूरी जांच के बाद रिपोर्ट देने के निर्देश सीएमएचओ को दिए हैं। ये है पूरा खेल… महिला मरीजों को कागजों पर रैफर नहीं किया जाता है। उन्हें लामा यानी बगैर बताए हॉस्पिटल छोड़कर जाना दर्शाया जाता है या फिर उनसे लिखवा लिया जाता है कि हम अपनी इच्छा से यहां से जा रहे हैं। ऐसे में रैफरल केस की संख्या भी सीमित रह जाती है और रैफरल किए जाने का खेल भी चलता रहता है। इसमें शामिल आशा कार्यकर्ताओं और अस्पताल के कर्मचारियों को प्राइवेट अस्पतालों से पांच प्रतिशत तक कमीशन मिलता है। प्राइवेट अस्पताल डिलीवरी के 50 हजार से एक लाख रुपए तक वसूलते हैं। इसी बिल में से चरक के दलालों को कमीशन दिया जाता है। एक दलाल की हत्या तक हो चुकी है उज्जैन में चाहे शासकीय अस्पताल हों या फिर निजी अस्पताल। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक दलाल ने बताया कि सभी जगह दलाल हैं। निजी अस्पताल संचालक भी दूसरे अस्पतालों से मरीजों को अपने यहां भर्ती कराने के लिए उन्हें मोटी फीस देते हैं। कुछ साल दलाली के इसी धंधे में गोपाल नाम के एक दलाल की एक निजी अस्पताल के स्टाफ ने पीट-पीट कर हत्या कर दी थी।