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जबलपुर2 मिनट पहलेलेखक: संतोष सिंह
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शिवरानी ने सीधी बस हादसे में दो लोगों को जिंदगी दी। अब उसकी बहादुरी के चर्चे पूरे प्रदेश में हैं।
- 40 फीट गहरे नहर में रोज कूद कर तलहटी से निकालती है पत्थर
- अभी से तैयारियों में जुटी है शिवरानी, रोज लगाती है दौड़
सीधी बस हादसे में दो जिंदगियों को बचाने वाली शिवरानी को भले ही 5 लाख रुपए देने की घोषणा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कर दी है, लेकिन उसके जीवन का दूसरा पहलू भी है। आठ भाई-बहन और माता-पिता के साथ शिवरानी छोटे से कमरे में रहती है। वह पुलिस में भर्ती होकर परिवार की गरीबी दूर करना चाहती है। फुर्ती और फिटनेस के लिए अभी से तैयारी में भी जुटी है। रोजाना 5 किमी दौड़ भी लगाती है। सरकार से मिलने वाले 5 लाख रुपयों से घर की हालत तो शायद नहीं सुधरे, लेकिन खुद और भाई-बहन की पढ़ाई में वह इन रुपयों को खर्च करेगी। माता-पिता कुछ पैसों को बेटियों की शादी के लिए बचाकर रखेंगे।
16 फरवरी की सुबह बाणसागर नहर पर चारों ओर चीख-पुकार और मातम का माहौल था। तब किसी एक लड़की के साहस की चर्चा थी, तो वह शिवरानी थी। सदरा-पटना गांव की 18 वर्षीय शिवरानी की बहादुरी के कायल CM शिवराज सिंह भी हो गए। महिला दिवस पर भास्कर ने इस बहादुर युवती से बात की।

एक कमरे के घर में आठ भाई बहन के साथ रहती है बहादुर बिटिया।
आठ भाई-बहनों में पांचवें नंबर की शिवरानी पुलिस में भर्ती होना चाहती है। वह अपने सभी भाई-बहनों के साथ एक कमरे के साधारण घर में रहती है। पिता रामनरेश लुनिया पास की माइंस फैक्टरी में आठ हजार रुपए प्रतिमाह की पगार पर नौकरी करते हैं। मां श्यामवती लुनिया घर संभालती हैं। खेती के नाम पर डेढ़ एकड़ जमीन थी, जिसे फैक्टरी ने पट्टे पर ले लिया। बड़ी बहन की शादी हो चुकी है। चार भाइयों में सुरेंद्र व लवकुश और बहनों में रिंकी व परिक्रमा उससे बड़ी हैं।
सबसे अधिक पढ़ाई भी शिवरानी ने की
भाई-बहनों में सबसे अधिक पढ़ी-लिखी भी शिवरानी ही है। अभी वह 12वीं में है, जबकि तीन भाई पांचवीं और सातवीं पढ़कर स्कूल छोड़ चुके हैं। एक बहन ने 8वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी। शिवरानी जहां खुद पढ़ती है, वहीं अपने से छोटे 10वीं में पढ़ रही बहन मौसम, नौवीं में पढ़ने वाली शिवानी और सातवीं में पढ़ने वाले भाई आशिक को पढ़ाती भी है।

मां के साथ गांव के लोग भी उसकी बहादुरी के कायल।
‘आंखों के सामने कैसे किसी को डूबने देती’
हादसे की टीस शिवरानी को भी है। खुद दो जिंदगियाें को बचाने वाली शिवरानी कहती है कि मेरी आंखों के सामने लोग डूब रहे थे। मैं कैसे नहीं उन्हें बचाने जाती। अफसोस इतना है कि दो को ही बचा पाई। नहर में बहाव तेज था। बस में फंसे लोग पानी की गहराई में समा गए थे। जो बाहर निकल कर बह रहे थे, उन्हें बचाने का प्रयास किया।
पूरा परिवार बहादुर बिटिया का सपना पूरा करने में जुटा
शिवरानी हरफनमौला है। वह पढ़ाई में होशियार है, तो घर के कामकाज को भी चुटकियों में निपटा देती है। फर्राटे से बाइक चला लेती है, तो पुलिस में भर्ती होने के सपने को पूरा करने के लिए सुबह पांच किमी दौड़ लगाती है। उफनती नहर में घंटों धारा के विपरीत तैरते हुए अपना दम दिखाती है। मां श्यामवती लुनिया कहती हैं कि बिटिया सपना पूरा कर ले। इससे बड़ी खुशी मुझे और क्या मिलेगी। अपनी जिंदगी जैसे-तैसे कट जाएगी। बेटियां कुछ बन गईं, तो मुझसे अधिक फख्र किसे होगा।

शिवरानी की मां और भाई-बहन