शवदाह गृह के लिए विशेष योगदान: भोपाल के ऐसे दो समाजसेवियों की कहानी, जिन्होंने भदभदा श्मशान की हालत सुधारने जुनून से काम किया

शवदाह गृह के लिए विशेष योगदान: भोपाल के ऐसे दो समाजसेवियों की कहानी, जिन्होंने भदभदा श्मशान की हालत सुधारने जुनून से काम किया


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भोपाल6 मिनट पहलेलेखक: वंदना श्रोती

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  • जो विद्युत शवदाह गृह का प्रस्ताव लाए, सामने बनवाया, उन्हीं का हुआ यहां पहला दाह संस्कार
  • अंत्येष्टि की जगह कम पड़ी तो 40 साल के दीपक बनवा रहे हैं 30 नए चिता स्थल
  • नगर निगम के अधीक्षण यंत्री तापस दासगुप्ता का कोरोना से हुआ निधन

यह भी अजीब विडंबना है। नगर निगम के अधीक्षण यंत्री (विद्युत) तापस दासगुप्ता का शुक्रवार को कोरोना संक्रमण से निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार भदभदा विश्राम घाट के उसी विद्युत शवदाह गृह में हुआ, जिसका निर्माण तापस ने अपने सामने ही करवाया था। दुखद है कि तापस के अंतिम संस्कार से ही इस शवदाह गृह की शुरुआत हुई। यह शवदाह गृह बीते नवंबर में बनकर तैयार हुआ था।

इस पर सवा करोड़ रु. खर्च हुए लेकिन तब से अब तक यहां किसी का दाह संस्कार नहीं हुआ था। तापस ने न केवल इसके निर्माण का प्रस्ताव तैयार कराया, बल्कि इसके पूर्ण होने तक वे खुद सुपरविजन करते रहे। उनकी व्यक्तिगत रुचि लेने का नतीजा था कि यह काम डेढ़ साल में पूरा हो गया। दासगुप्ता की पत्नी नुपूर दासगुप्ता और अन्य परिजनों ने ही विद्युत शवदाह गृह में दाह संस्कार की इच्छा व्यक्त की।

दासगुप्ता के अधीन एक्जिक्युटिव इंजीनियर आशीष श्रीवास्तव ने बताया कि इस विद्युत शवदाह गृह की डिजाइनिंग से लेकर कंप्लीट होने तक हर गतिविधि में तापस का मार्गदर्शन और निर्देशन था। पिछले साल नवंबर में जब इसका परीक्षण हुआ तो वे काफी संतुष्ट थे कि चलो एक अच्छा काम हो गया।

यहां अभी 12 चिता स्थल, एक हफ्ते में 30 बन जाएंगे

भदभदा विश्राम घाट में गुरुवार को संक्रमित मृतकों के दाह संस्कार के लिए चिता स्थल कम पड़ गए थे। इससे शहर के समाजसेवी 40 वर्षीय दीपक सिंह का मन दुखी हो गया। उन्होंने विश्रामघाट कमेटी के सामने प्रस्ताव रखा कि वे नए चिता स्थल बनवाना चाहते हैं। इस पर कमेटी ने हामी भर दी। यहां अभी 12 चिता स्थल हैं और 30 नए बनाए जाएंगे, जिनका काम शुक्रवार से शुरू हो गया।

दीपक कॉन्ट्रैक्टर हैं। उन्होंने बताया कि इस विश्राम घाट पर जो भी निर्माण कार्य होता है, मैं ही करता हूं। गुरुवार को यहां के हालात देखकर मेरा मन टूट गया था। एक के बाद एक शव आते चले जा रहे थे। दाह संस्कार के लिए जमीन नहीं बची थी। फिलहाल विद्युत शवदाह गृह के पीछे की जमीन पर अब 30 नए चिता स्थल बनेंगे। इसे मैं अपना सामाजिक दायित्व मान रहा हूं। मैं हर साल एक हजार पेड़ लगाता हूं और दूसरों को लगाने के लिए प्रेरित करता हूं।

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