जज्बे से भरी दो खबरें: हमारा एक गांव जहां महोत्सव के तीसरे ही दिन 95 % वैक्सीनेशन

जज्बे से भरी दो खबरें: हमारा एक गांव जहां महोत्सव के तीसरे ही दिन 95 % वैक्सीनेशन


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उज्जैन2 मिनट पहले

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  • हर घर से लोगों ने लगवाए टीके, दूसरों को भी प्रेरित किया
  • हमारे 2 जांबाज…भीषण गर्मी में किट पहन रोज ढो रहे दर्जनों लाशें

लॉकडाउन में पुलिस की सख्ती के बीच भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां लोग आगे बढ़कर वैक्सीन लगवा रहे हैं। टीका महोत्सव के तीसरे दिन में जिले के सेंटर पर 45 साल से अधिक उम्र के लोगों ने टीका लगवाया। जिले के धतरावदा के लोगों ने मिसाल पेश की है। यहां के हर घर के पात्र लोगों ने कोरोना को मात देने का संकल्प लेते हुए टीका लगवाया है।
यहां एक दिन में रिकॉर्ड 95 % वैक्सीनेशन हो पाया है। इस गांव में भी दूसरे गांवों की तरह वैक्सीन को लेकर भ्रांतियां फैली हुई थी, जिन्हें दूर करने के लिए गांव के जागरूक लोग सामने आए। गांव के लोग भ्रांतियों के कारण डर रहे थे, ऐसे में ग्राम पंचायत के सरपंच कैलाश चौहान ने घर-घर जाकर लोगों को जागरूक किया। मंगलवार को 120 लोगों को वैक्सीन लगाने का टारगेट था जिसमें से 95 प्रतिशत लोगों ने आगे आकर वैक्सीन लगवाई। उन्होंने गांव के अन्य लोगों को भी संदेश दिया कि वैक्सीन लगवाने के बाद हम कोरोना के संक्रमण से सुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
यहां वैक्सीन के लिए पात्र लोगों की संख्या 450 से भी ज्यादा
पंचायत में 450 लोग ऐसे हैं जिनकी उम्र 45 साल से ज्यादा हैं जिन्हें वैक्सीन लगाई जा रही है। सरपंच का कहना है, पहले जरूर लोगों में कुछ भ्रांति थी लेकिन समझाइश के बाद सभी मान गए। यहां के लोगों ने खुद तो वैक्सीन लगवाई ही अपने परिवार के सभी सदस्यों को फोन लगाकर भी सेंटर पर बुलाया। गांव के हाजी नाजी पटेल, हाजी अराबली पटेल, गुलजी पटेल, बाबू पटेल, अंबाराम, लतीफ खान पंचायत सचिव संजय गोठवाल और खंड अधिकारी प्रेमचंद सिरोंजा आदि ने लोगों को प्रेरित करने का कार्य किया। उन्होंने पहले खुद वैक्सीन लगवाई और फिर आस पड़ोस व परिवार तथा रिश्तेदारों को टीका लगवाया।

हमारे 2 जांबाज…भीषण गर्मी में किट पहन रोज ढो रहे दर्जनों लाशें

यहां का दर्द देखा नहीं जाता, लोग अपनों को छू भी नहीं पा रहे

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गजब की हिम्मत है उन दोनों नौजवानों में। जानते हैं सामने मौत का भंवर है बावजूद रोज…हर घंटे, पल-पल जिंदगी दांव पर लगा रहे हैं। 38 से 41 डिग्री तापमान में झुलसा देने वाली गर्मी में भी किट पहनकर हॉस्पिटल में रोज दम तोड़ रही जिंदगी को मोक्ष मिले इसके लिए दिन-रात डटे हैं।
चक्रतीर्थ व त्रिवेणी पर संदिग्ध शवों को लेकर पहुंच रहे इन दोनों युवकों में एक का नाम अर्जुन तो दूसरा धर्मेंद्र है। यह नाम भी हमें औरों ने बताए। छोटी उम्र के इन बड़े भगीरथों से जब हमने पूछा तो बोले- छोड़िए साहब नाम में क्या रखा है। दोनों नगर निगम के अस्थायी कर्मचारी बताए जाते हैं। एक कॉल पर दोनों संक्रमित शवों को कांधा देने के लिए तत्पर रहते हैं।
हर दिन कई शवों को मुक्तिधाम तक पहुंचाते हैं धर्मेंद्र और अर्जुन
चक्रतीर्थ पर सोमवार को जब इनसे मुलाकात हुई तो सुरक्षा के लिए पहनी गई किट पसीने से तरबतर थी। सुरक्षा कवच इनके शरीर से चिपक रहा था। हमने कहा गर्मी नहीं लगती, तो दोनों एक साथ बोल पड़े…साहब… हमारी छोड़िए…उनसे पूछिए जो अपने अपनों को चाहकर भी छू तक नहीं पा रहे। हमने ही कोई पुण्य किए होंगे, जो ईश्वर ने हमें इस काम के लिए चुना। भास्कर इन नौजवानों की हिम्मत, जज्बे को सलाम करता है। जिंदगी के असल योद्धा यही हैं, जो कुछ पाने के लिए नहीं, औरों को मोक्ष के अंतिम धाम तक पहुंचाने के काम पर हैं।

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