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मुरैना5 मिनट पहले
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सामान लेकर पैदल चल रहे लोग
- लॉकडाउन में यातायात पूरी रह बंद होने से बहुत परेशान हो रहे लोग
- लोगों को सता रही चिंता, कैसे कटेंगे लॉकडाउन के ये दिन
मुरैना। लॉकडाउन में शहरवासी तो परेशान हैं ही, साथ ही वे लोग भी परेशान हो रहे है जो दूर-दराज के क्षेत्रों से मुरैना आ रहे हैं। शनिवार को लॉकडाउन के दौरान जो लोग ट्रेन से मुरैना रेलवे स्टेशन पर उतरे तो, उन्हें अपने गंतव्य तक पैदल ही सामान ढोकर जाना पड़ा, क्योंकि लॉकडाउन के दौरान पांच-सात ही ई-रिक्शा को चलने की अनुमति दी गई थी।
जिला प्रशासन ने लॉकडाउन के दौरान कुछ ही ई-रिक्शा चालकों को शहर के अन्दर स्टेशन से बैरियर चौराहे तक चलने की इजाजत दी थी। इसका खामियाजा उन लोगों को भुगतना पड़ा जो मुरैैना स्टेशन पर उतरे और वाहन न मिलने पर पैदल ही अपने घर गए।
चार से पांच किलोमीटर तक चले पैदल
रेलवे स्टेशन से बैरियर चौराहे की दूरी तीन किलोमीटर के लगभग है। कुछ लोगों के घर पांच किलोमीटर तक की दूरी पर थे, जिससे उन्हें यह दूरी पैदल ही सिर पर सामान ढोकर या ट्राली बैग सरकाकर तय करना पड़ी।
सात बजने से पहले बंद कराई सब्जी मंडी
जिला प्रशासन ने लॉकडाउन के दौरान थोक सब्जी मंडी की समय सीमा प्रात: 3 बजे से लेकर प्रात: 7 बजे तक केवल चार घंटे के लिए ही निर्धारित की थी। जबकि फुटकर सब्जी मंडी को पूरी तरह बंद किया हुआ था। जैसे ही सुबह के सात बजे, पुलिस फोर्स थोक सब्जी मंडी पहुंच गया तथा पूरी मंडी को सात बजने से पहले ही बंद करवा दिया।
चौराहों पर मुस्तैद रही पुलिस
लॉकडाउन के दौरान शहर के चौराहों पर पुलिस तैनात रही। जैसे ही कोई व्यक्ति अनावश्यक घूमता दिखता, पुलिस तुरंत उसको पहले जाने के लिए कहती और अगर कोई हेंकड़ी दिखाता तो बैठा लेती। हालांकि बाद में छोड़ दिया गया लेकिन, पुलिस के इस एक्शन से शहरवासी सहमे हुए हैं।
शादी वाले घरों में अधिक समस्या
सबसे अधिक समस्या उन घरों मे हैं जहां 25 अप्रेल की सहालग में शादी है। वह भी परेशान हैं जिनके लगुन, फलदान दो-चार दिन के बाद आना है। उनके यहां आने वाले रिश्तेदार भी परेशान हैं, क्योंकि उनको स्टेशन पर रिसीव करने के लिए भी कोई नहीं जा पा रहा है। इसके अलावा शादी के निमंत्रण पत्र देने जाना है, हलवाई या क्राकरी वाले को अभी तय नहीं किया है, आदि ऐसे कई काम हैैं जो करने हैं लेकिन लॉकडाउन के कारण घर से बाहर नहीं निकल पा रहे है।
रोजी-रोटी कमाने वाले परेशान
शहर के खोमचे वाले, पानी पूरी का ठेला लगाने वाले, आइसक्रीम का ठेला लगाने वाले या अन्य वे छोटे उद्योग धंधे वाले लोगों की लॉकडाउन में मुश्किलें बढ़ गई हैं जो 200 या 500 रुपए हर दिन कमाकर अपने परिवार का पालन पोषण कर लेते थे। उनका पूरा धंधा फिलहाल एक सप्ताह के लिए बंद हो गया है। दिहाड़ी मजदूरों का भी यही हाल है, उन्हें मजदूरी नहीं मिल पा रही है।
इस बार न कोई खाने के पैकेट बांट रहा, न आर्थिक सहायता
वर्ष 2020 में जब लॉकडाउन लगा था, उस समय विधान सभा उपचुनाव थे। इसलिए जहां कोई नेता भण्डारे चला रहा था तो कोई खाने के पैकेट बांट रहा था। कुछ दयालु भी खुलकर दान पुण्य करते नजर आए थे, लेकिन ऐसा इस बार नहीं है। इस बार न चुनाव हैं और न ही लोगों में इतनी सामर्थ्य बची है कि वे लोगों में खाने के पैकेट बांटे या फिर आर्थिक मदद करें।
जनजीवन पूरी तरह प्रभावित, चारों तरफ पसरा सन्नाटा

ई-रिक्शा में ठसकर बैठे लोग
लॉकडाउन के दौरान लोगों की जहां दिनचर्या बदल गई है वहीं पूरा जनजीवन प्रभावित हो गया है। चारों तरफ खामोशी ही खामोशी छाई है। हर किसी की जुबान पर जहां संक्रमितों की संख्या का जिक्र है, वहीं दूसरी तरफ लॉकडाउन के हालातों का जिक्र, कुल मिलाकर हर व्यक्ति को सिर्फ इसी बात का डर है कि कहीं इस बार भी लंबा लॉकडाउन न लग जाए और गत दिवस जैसी स्थिति निर्मित न हो जाए।