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हाेशंगाबाद3 मिनट पहले
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- परिवार के साथ सुरक्षा में रहना पसंद कर रहे बच्चे
काेराेना काल में भले ही हर तरफ से बुरी खबरें सुनने मिल रही हाें लेकिन यह अच्छी खबर है कि घर से रूठकर और पढ़ाई के डर से घर छाेड़कर चले जाने वाले बच्चाें की संख्या 10 गुना कम हाे गई है। पिछले एक साल में चाइल्ड लाइन के पास आने वाले भटके हुए और जरूरतमंद बच्चाें की संख्या कम हाे गई है। बाल कल्याण समिति की सदस्य श्वेता चाैरे ने बताया आवासीय शैक्षणिक संस्थाएं बंद हाेेने, पढ़ाई और परीक्षा का प्रेशर कम हाे जाने और घर से निकलने के संसाधन सीमित हाे जाने के कारण परिवाराें से रूठकर दूर जाने वाले बच्चे अब घर में ही साथ रहना पसंद कर रहे हैं। इधर, काेराेना काल में सामूहिक आयाेजन निरस्त हाेने से भिक्षावृत्ति करते बच्चे भी कम ही मिले हैं।
इसलिए कम हुई मिसिंग संख्या
ट्रेनाें में रिजर्वेशन के बिना आवाजाही बंंद है, घराें में माता पिता बच्चाें पर लगातार ध्यान दे रहे है। पढ़ाई और हाेमवर्क का तनाव और निर्धारित टाइम टेबल काे फाॅलाे करना भी जरूरी नहीं है इसलिए बच्चे घर पर ही रहना पसंद कर रहे हैं।
इसलिए मिलते हैं मिसिंग चाइल्ड
- पढ़ाई और स्कूल के हाेमवर्क के प्रेशर के कारण बच्चे घर छाेड़ देते हैं।
- माता, पिता या परिवार के सदस्याें के डांटने पर या गलत व्यवहार करने पर।
- मुंबई जाकर स्टार बनने की इच्छा से भी 14 से 18 साल तक के बच्चे अकेले या समूह बनाकर घर छाेड़ देते हैं।
- परिवार से पैसा मिलने और माता पिता का समय ना मिलने से चिढ़े हुए बच्चे पर्यटन के लिए घर से निकल जाते थे।
- संभाग के हरदा और बैतूल जिलाें में बाल संरक्षण के आश्रय स्थल नहीं हैं, जिसके कारण पूरे संभाग के बच्चाें काे हाेशंगाबाद जिले में ही आसरा मिलता है, जिसके कारण आंकड़े बढ़ जाते हैं।
मिसिंग चाइल्ड कम ताे जरूरतमंद बच्चाें काे मिला आसरा
केस-1: मटकुली की 16 साल की निवेदिता परिवर्तित नाम के माता पिता दोनाें का निधन हाे गया है। भाई मजदूर है और उसके पालन में सक्षम नहीं है। ऐसे में निवेदिता काे बालिका गृह में आसरा मिल गया है।
केस-2: पिपरिया का माेनू 9 और रिंकी 6 साल परिवर्तित नाम के पिता जेेल में हैं और मां की मृत्यु हाे गई है। दोनाें भाई बहन काे बालगृह में संरक्षण दिया गया है।
आयाेजन बंद हुए ताे कम हुई भिक्षावृत्ति
चाइल्ड लाइन काे-ऑर्डिनेटर अंकित बांके ने बताया शहर में हाेने वाले मेले और बड़े आयाेजनाें में परिजन 0 से 10 साल के बच्चाें काे भिक्षावृत्ति के लिए लाते थे। नर्मदा स्नान के पर्व, रामजीबाबा मेला, बांद्राभान मेला जैसे आयाेजन निरस्त हाेने के कारण चाइल्ड लाइन काे भिक्षावृत्ति करते बच्चे पिछले वर्षाें की अपेक्षा कम मिले हैं।