कर्तव्य के आगे बौने हुए फासले: कोविड अस्पताल में ड्यूटी देने दोपहिया से 180 किमी का सफर तय कर नागपुर पहुंचीं बालाघाट की बेटी डॉ. प्रज्ञा

कर्तव्य के आगे बौने हुए फासले: कोविड अस्पताल में ड्यूटी देने दोपहिया से 180 किमी का सफर तय कर नागपुर पहुंचीं बालाघाट की बेटी डॉ. प्रज्ञा


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बालाघाट8 मिनट पहलेलेखक: सोहन वैध

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  • कठिन समय में स्थापित की मिसाल

महाराष्ट्र में खासतौर पर नागपुर व मुंबई में कोराेना ने तेजी से पांव पसारे, दोनों राज्यों (मप्र व महाराष्ट्र) के बीच पब्लिक कनवेंस बंद कर दिए गए थे। इस मुश्किल हालात में बालाघाट की एक बेटी ने हौसला दिखाया और कोविड अस्पताल में ड्यूटी देने वह 180 किमी के सफर पर अकेली अपनी दोपहिया वाहन पर निकल पड़ी।

कोराेना काल में सेवा के जज्बे की बड़ी मिसाल पेश की है शहर के कुड़ी मोहल्ले की रहने वाली डॉ. प्रज्ञा घरड़े ने। वे नागपुर के निजी अस्पताल के एक कोविड केयर सेंटर में सेवाएं भी देती हैं। वे कुछ दिन पहले छुट्टी पर अपने घर आई थीं। अचानक संक्रमण बढ़ने के कारण, चिकित्सकीय सेवाएं देने उन्हें छुट्टी के बीच ही नागपुर लौटना पड़ा। सबसे बड़ी बाधा दोनों राज्यों के बीच कोई सार्वजनिक परिवहन का साधन न होना था।

अंत में उन्होंने अपनी दोपहिया से नागपुर तक का सफर करना तय किया। परिजन अकेले इतना लंबा रास्ता दोपहिया वाहन से तय करने देने में हिचक रहे थे, लेकिन डॉ. प्रज्ञा की सेवा भावना और दृढ़ इच्छा शक्ति देखते हुए उन्होंने सहमति दे दी। प्रज्ञा 19 अप्रैल (सोमवार) को सुबह 8.30 बजे नागपुर के लिये निकलीं और धूप, प्यास सहते हुए करीब सात घंटे का सफर तय कर वहां पहुंचीं और तत्काल कोविड मरीजों का उपचार शुरू कर दिया। डॉ. प्रज्ञा ने बताया कि उन्हें स्कूटी चलाकर बालाघाट से नागपुर करीब 180 किमी की दूरी तय करने में करीब 7 घंटे का समय लगा। उन्होंने बताया कि तेज धूप और गर्मी व साथ में अधिक सामान होने से थोड़ी असुविधा जरूर हुई। रास्ते में भी कुछ खाने-पीने को नहीं मिला। लेकिन वह दोबारा अपने कर्तव्य पथ पर लौट गई, इस बात की संतुष्टि है। शेष|पेज 8 पर

.. ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद कर सकूं
डॉ. प्रज्ञा ने दैनिक भास्कर से चर्चा में बताया कि वह नागपुर में प्रतिदिन 6 घंटे उस कोविड अस्पताल में सेवा देती हैं, जहां वे आरएमओ हैं। इसके बाद शाम को एक अन्य अस्पताल में सेवा देती हैं। रोज 12 घंटे से अधिक समय तक पीपीई किट पहनकर काम करने में होने वाली असुविधा को वे यह सोच कर नजरअंदाज कर देती हैं कि यह असुविधा कोरोना मरीजों की पीड़ा के आगे कुछ भी नहीं है। वे दो अस्पतालों में भी महज इसलिए सेवाएं दे रहीं ताकि इस संक्रमणकाल में वे ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद व सेवा कर सकें।

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