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- Some 8 month old Twins Are Unable To Feed The Milk, So Some 8 year old Girl Is Kept In The House Alone And Performing Duty
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गुना5 मिनट पहले
गुना। कोरोना की पहली लहर के मुकाबले दूसरी लहर ने जनजीवन ज्यादा अस्त -व्यस्त किया है। सभी तरफ जीवन की हानि हुई है। डॉक्टर और नर्सों सहित फ्रंट लाइन वर्कर्स निरंतर अपनी ड्यूटी कर रहे हैं। मदर्स डे के दिन दैनिक भास्कर ऐसी ही कुछ महिला योद्धाओं की कहानी अपने पाठकों के लिए लेकर आया है। मदर्स डे के दिन दैनिक भास्कर इन सभी मात्र शक्तियों द्वारा किये जा रहे कार्यों के लिए उन्हें सलाम करता है।
आठ महीने की जुड़वाँ बेटियों को मां का दूध तक नसीब नहीं
जिला मुख्यालय स्थित टीकाकरण में नर्स प्रीति बिहारे अपनी सेवाएं दे रही हैं। उनकी ड्यूटी सुबह ८:३० बजे से शाम ५ बजे तक हैं। दो वर्ष पहले उनका विवाह हुआ। पिछले वर्ष सितम्बर महीने में उन्होंने दो जुड़वाँ बेटियों को जन्म दिया। वे यहाँ अपने पति के साथ किराये के मकान में रहती हैं। टीकाकरण केंद्र में ड्यूटी करते हुए उन्हें दो महीने हो गए हैं। वे बताते हैं की बेटियों को अपना दूध तक नहीं पीला पाती हैं। सुबह ८ बजे से लेकर शाम ५ बजे तक उनके पति ही बेटियों की देखभाल करते हैं। वे कहती हैं की बाकी सब सही है , बस बच्चियों की ही चिंता रहती है। बच्चियों की उम्र अभी बहुत कम है , ऐसे में उन्हें मां की ज्यादा आवश्यकता रहती है। लेकिन आज के समय मानव सेवा भी एक बड़ी जरुरत है , इसी सोच के साथ वे अपनी ड्यूटी करती हैं।
डेढ़ साल से अपने बच्चों को नहीं देखा
इसी टीकाकरण केंद्र पर अपनी ड्यूटी कर रहीं प्रीति श्रीवास्तव बताती हैं की पिछले वर्ष की कोरोना लहर से ही ड्यूटी कर रही हैं। पहले उनकी फीवर क्लिनिक में ड्यूटी थी और अब इस वेक्सिनेशन सेंटर पर वे अपनी सेवाएं दे रही हैं। वे बताती हैं की पिछले डेढ़ वर्ष से वे अपने बच्चों से नहीं मिली हैं। न उन्हें देखा है और न उनसे बात हो पाती है। वे अपने पिता और दादी के साथ रहते हैं। कुछ पारिवारिक कारणों से मुझे उन्होंने छोड़ रखा है। बच्चों की बहुत याद आती है , लेकिन उनसे बात नहीं हो पाती है। हालत ऐसे हैं की चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती हूँ। अब मानव सेवा ही मेरा सबसे बड़ा कर्तव्य है।
कोरोना के कारण बच्चों को भेज दिया केरल
स्टाफ नर्स सिम्मी मैथ्यू केरल से आकर गुना जिले में अपनी सेवाएं दे रही हैं। उनके दो बच्चे हैं। वे भी 9 घंटे की अपनी ड्यूटी कर रही हैं। वे बताती हैं की पहले बच्चे यहीं उनके साथ ही रहते थे। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में चिंताजनक हालत बन गए। तो ऐसे में परिजनों ने कहा की बच्चों को केरल भेज दो। उनके दोनों बच्चे केरल में उनकी मां के साथ ही रहते हैं। वे बताती हैं की बच्चों से फ़ोन और विडिओ कॉल पर ही बात हो पाती है। बच्चे उन्हें काफी याद करते हैं लेकिन ये समय ऐसा है की बच्चों के पास नहीं जा पा रही हैं। बच्चों से ऑनलाइन ही मुलाकात हो पाती है। कोरोना के समय में ऐसे ही ड्यूटी चल रही हैं।
8 वर्ष की बच्ची को ताले में बंद करके आती हैं
अपनी ड्यूटी और कर्तव्य निभाने का इससे अच्छा क्या उदहारण होगा की जिला अस्पताल में पदस्थ मेडिकल इंचार्ज गीता तिवारी अपनी ८ वर्ष की बच्ची को ताले में बंद करके आती हैं। वे इंदौर की रहने वाली हैं और १५ वर्षों से गुना जिला चिकित्सालय में अपनी सेवाएं दे रही हैं। उन्हें टीकाकरण केंद्र का प्रभारी बनाया गया है। वे बताती हैं की अपनी बच्ची के साथ यहाँ अकेली रहती हैं। इस करोनकाल में अपनी ड्यूटी के लिए बच्ची को ताले में बंद करके आना पड़ता है। उसकी देखभाल करने वाला इनके अलावा कोई नहीं है। बच्ची बमुश्किल अपना समय गुजार पाती है।

19 वर्ष की आयु में पति की मौत के बाद बच्चों को पाला
डॉक्टर और नर्सों की तरह पुलिस भी फ्रंट लाइन पर आकर काम कर रही है। कई महिला अधिकारीयों – कर्मचारियों की निरिक्षण दल में ड्यूटी लगी हुई है। ऐसे ही एक निरिक्षण दल की सदस्य हेड कांस्टेबल ५५ वर्षीय कृष्णा पाराशर ने बताया की 17 वर्ष की उम्र में ही उनकी शादी हो गयी थी। १९ वर्ष की उम्र में उनके पति का देहांत हो गया। तबसे ही उन्होंने अपने बच्चों को अकेले पाला। कोरोना काल में उनकी सुबह ६ बजे से दोपहर ३ बजे तक ड्यूटी है। निरिक्षण दस्ते की गाडी के साथ वे रहती हैं। बीपी और शुगर की बीमारी के बाद भी वे अपनी ड्यूटी कर रही हैं। उन्होंने बताया की सुबह ४ बजे से उठना पड़ता है। अपने बच्चों के लिए खाना बनाकर वे रखकर आती हैं। उन्होंने बताया की जीवन में इतना संघर्ष किया है की अब आदत हो गयी है।