कोरोना से JAH के दो डॉक्टर की मौत: लोगों को बचाते-बचाते खुद भूल गए वैक्सीन के पूरे डोज लगवाना, दो डॉक्टरों की कोविड के चलते मौत

कोरोना से JAH के दो डॉक्टर की मौत: लोगों को बचाते-बचाते खुद भूल गए वैक्सीन के पूरे डोज लगवाना, दो डॉक्टरों की कोविड के चलते मौत


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ग्वालियर19 मिनट पहले

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सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल यह�

  • JAH में पहली बार हुआ है जब किसी डॉक्टर की कोविड से मौत हुई है

मंगलवार को JAH (जयारोग्य अस्पताल) के दो डॉक्टरों की मौत कोविड के चलते हुई है। कोरोना पीरियड में यह पहली घटना है जिसमें JAH के किसी डॉक्टर की मौत कोरोना के चलते हुई है। इन दोनों मौत के बीच एक और बात का खुलासा हुआ है। दोनों डॉक्टरों ने वैक्सीन के पूरे दोनों डोज भी अभी तक नहीं लिए थे। इन दो मौतों के बाद कई सवाल खड़े हो गए हैं। मृतक डॉ. देवेन्द्र तो कैजुअल्टी में मरीजों का उपचार करते-करते ही कोविड संक्रमित हुए हैं। साथ ही मृतक डॉ. अपेक्षा भाले को कैंसर और किड्नी जैसी बीमारी होने की बात सामने आई है। इन्होंने वैक्सीन का एक डोज भी लिया था, पर अपनी बीमारी की हालत के चलते दूसरा डोज नहीं ले सकीं।

मंगलवार की सुबह JAH के डॉक्टरों के लिए बुरी खबर लेकर आई है। JAH के कैजुअल्टी में बतौर मेडिकल ऑफिसर पदस्थ 45 वर्षीय डॉ. देवेन्द्र सिंघार और PSM (प्रीवेंड सोशल मेडीसिन) डिपार्टमेंट में पदस्थ 55 वर्षीय डॉ. अपेक्षा भाले ने मंगलवार सुबह कोरोना संक्रमण के चलते दम तोड़ दिया। जब यह JAH में उनके साथियों के पास पहुंची तो उनके लिए किसी झटके से कम नहीं था। डॉक्टरों को विश्वास भी नहीं हो रहा था कि यह आखिर हो कैसे गया। दोनों को 6 मई को कोरोना जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद JAH के सुपर स्पेशियिलिटी हॉस्पिटल में भर्ती किया गया था। बीच में हालात में सुधार भी आया, लेकिन सोमवार रात को अचानक हालत बिगड़ी और मंगलवार सुबह दोनों ने दम तोड़ दिया।

कोरोना से जान गंवाने वाले डॉ. देवेन्द्र सिंघार, आखिरी समय तक लोगों को समझाते रहे वैक्सीन जरूरी है पर खुद भूल गए

कोरोना से जान गंवाने वाले डॉ. देवेन्द्र सिंघार, आखिरी समय तक लोगों को समझाते रहे वैक्सीन जरूरी है पर खुद भूल गए

खुद चलकर गए थे हॉस्पिटल फिर कभी नहीं लौटे

  • डॉ. देवेन्द्र सिंघार की उम्र 45 साल थी। वह मूल रूप से इंदौर के पास धार के रहने वाले थे। MBBS की पढ़ाई उन्होंने ग्वालियर के गजराराजा मेडिकल कॉलेज से ही की है। दो साल पहले उनकी नियुक्ति JAH के कैजुअल्टी में बतौर मेडिकल ऑफिसर हुई थी। 6 मई को मरीजों को देखते-देखते हल्का फीवर आने पर उन्होंने अपनी कोरोना की जांच कराई थी। उसी दिन वह कोविड संक्रमित हुए थे। शाम को जब उनकी ऑक्सीजन सेचुरेशन 85 पर आ गई तो साथी डॉ. राकेश बघेल ही उनको सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल तक लेकर गए थे। इसके बाद उनकी हालत में सुधार भी हो गया था, लेकिन सोमवार रात अचानक उनकी हालत बिगड़ी उनका BP नीचे गिरने लगा। तत्काल वेंटीलेटर पर उनको डालना पड़ा। सुबह 5.45 बजे उनके डॉ. देवेन्द्र के निधन की खबर ने पूरे JAH के डॉक्टरों को हिलाकर रख दिया। डॉक्टर के बारे में पता लगा है कि उनकी अभी शादी नहीं हुई थी। उनकी भाभी बड़वानी में CMHO हैं और भाई कृषि विभाग में पदस्थ हैं। एक भाई दिलीप ने सोमवार रात 8 बजे उनसे मुलाकात की थी। पर हालात खराब होने पर वह कुछ बोल नहीं सके थे।

कोविड हुआ तो भर्ती हो गईं फिर ठीक ही नहीं हुईं

  • JAH के PSM में बतौर सीनियर डेमोस्टेटर पदस्थ 55 वर्षीय डॉ. अपेक्षा भाले को भी 6 मई को कोविड ने घेरा था। वह पहले से ही कैंसर और किड्नी की बीमारी से परेशान थीं, लेकिन लगातार अस्पताल आकर काम कर रही थीं। साथियों ने उनको भी JAH के सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में भर्ती कराया था। जहां सोमवार रात उनकी हालत बिगड़ी और देर रात उन्होंने दम तोड़ दिया। डॉ. अपेक्षा भाले भी कोविड आने से पहले तक लगातार अपने काम को करती रहीं। परिवार में पति, बेटा व बेटी है। पति ललितपुर में बतौर डॉक्टर पदस्थ हैं। बेटा श्रेयस IIT से पास होकर इंजीनियर है। बेटी मानसी ने ग्वालियर से ही MBBS किया है और अब मुम्बई से MD कर रही है। डॉ. अपेक्षा भाले खुद महाराष्ट्र के मिरज मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद सितंबर 2004 में ग्वालियर JAH में नियुक्त हुई थीं।

सब को समझाते रहे खुद भूले वैक्सीन

  • दो डॉक्टरों की मौत के बाद एक बड़ी लापरवाही सामने आई है। हेल्थ वर्कर को 16 जनवरी से वैक्सीन लगना शुरू हुई थी। सबसे पहले डॉक्टरों को ही वैक्सीन लगाई जा रही थी। इसके बाद भी डॉ. देवेन्द्र ने वैक्सीन की एक भी डोज नहीं ली। वह कैजुअल्टी में आने वाले हर मरीज को समझाते रहे, लेकिन खुद लापरवाही कर अपनी जिंदगी को खतरे में डाल गए। दूसरी ओर डॉ. अपेक्षा भाले ने फरवरी 2021 को वैक्सीन का पहला डोज तो लगवा लिया था, लेकिन दूसरा डोज उन्होंने भी नहीं लगवाया है।

हर समय मदद के लिए रहते थे तैयार

  • जिन दो डॉक्टरों को कोविड ने छीन लिया है उनका स्वभाव काफी मिलता जुलता था। डॉ. देवेन्द्र सिंघार के साथी डॉ. राकेश बघेल बताते हैं कि ऐसा साथी शायद ही किसी को मिले। जिंदा दिल इंसान थे। हर समय मदद के लिए तैयार रहते थे। जब उनको कोविड हुआ तो वह पैदल चलकर हॉस्पिटल तक गए। मुझे ऐसा लगा ही नहीं कि यह आज जा रहा है तो फिर कभी नहीं लौटेगा। इसी तरह डॉ. अपेक्षा भाले के बारे में भी बताते हैं कि तबीयत खराब होने के बाद भी वह लगातार दूसरों के लिए काम करती रहती थीं।

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