आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से चातुर्मास का आगाज 6 जुलाई रविवार से होगा। विशाखा नक्षत्र में प्रारंभ हो रहे इस चार माह के दौरान विवाह, यज्ञोपवित और मुंडन जैसे शुभ कार्य नहीं होंगे।
.
ज्योतिषाचार्य पंडित अमर डब्बावाला के अनुसार यह समय धर्म, ज्ञान, भक्ति और सत्संग का है। इस दौरान भगवत भजन, यम, नियम और संयम पर विशेष ध्यान दिया जाता है। कई साधक तीर्थों पर जाकर कल्पवास का व्रत लेते हैं। वे 42 दिन, डेढ़ महीना या 3 महीने तक साधना करते हैं। यह अवधि शरीर को स्वस्थ रखने और मन को एकाग्र करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
चातुर्मास में अनेक महत्वपूर्ण त्यौहार आते हैं। गुरु पूर्णिमा से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक के इस काल में रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, तीज, गणेश स्थापना, नवरात्रि, दशहरा, दीपावली जैसे प्रमुख पर्व मनाए जाते हैं। इसके अलावा महाकालेश्वर की सवारी, नाग पंचमी, कल्की जयंती, स्वतंत्रता दिवस, गोगा नवमी, करवा चौथ, धनतेरस और भाई दूज भी इसी अवधि में आते हैं। कुछ विद्वान गुरु पूर्णिमा से भी चातुर्मास के आरंभ की मान्यता रखते हैं।