बड़वानी जिले में आदिवासी समाज ने फसलों की बोवनी के बाद पहले रविवार को पारंपरिक दित्वारिया त्योहार मनाया। यह पर्व होली तक हर रविवार को मनाया जाता है। इस अवसर पर सभी परिवार अपने घरों के बाहर भोजन बनाते हैं। गांव के लोग पटेल के घर इकट्ठा होकर प्रकृति क
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पूजा में खैर की लकड़ी की खिल्ली, उड़द, ज्वार, प्याज, नींबू, सिंदूर, लाल मिर्च, तलवार, शराब, सिक्के और नीम-आम की पत्तियों का उपयोग किया जाता है। गांव का पुजारी पूजा कर गांव की सुख-शांति की कामना करता है।
घर को बुरी नजर से बचाने के लिए नीम, आम की पत्ती, लाल मिर्च और प्याज से बने तोरण को मुख्य दरवाजे पर लगाया जाता है। परिवार की सुरक्षा के लिए खैर की लकड़ी की खिल्ली घर के मुख्य दरवाजे पर गाड़ी जाती है। बीमारियों से बचाव के लिए ज्वार और उड़द के दानों को कपड़े में लपेटकर परिवार के सदस्यों के कमर या गले में बांधा जाता है।
बूदी, बमनाली और लिम्बी समेत आसपास के गांवों में भी यह त्योहार धूमधाम से मनाया गया। सामाजिक कार्यकर्ता भाकर सिंह सोलंकी के अनुसार, अच्छी फसल के लिए खेतों में बांस की टहनी और मटकी लगाई जाती है, जिसे उज्ज्वल करना कहा जाता है।आदिवासियों का मानना है कि ऐसा करने से फसल नीरोगी रहती है। फसल को बुरी नजर नहीं लगती है।
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