उनके जीवन से जुड़े कई ऐसे प्रसंग हैं, जो आज भी श्रद्धालुओं को सोचने पर मजबूर कर देते हैं. बता दें कि, सियाराम बाबा ने कई वर्षों तक खड़ेश्वरी तपस्या की और मौन व्रत में रहे. कोई उनका असली नाम नहीं जानता था, न ही यह जानकारी थी कि उनके गुरु कौन थे. आश्रम के बुजुर्ग श्रद्धालु बताते हैं कि जब बाबा ने मौन तोड़ा, तो उनके मुख से पहला शब्द “सियाराम” निकला. तभी से वे इसी नाम से पहचाने जाने लगे.
बाबा के जीवन में एक प्रसंग ऐसा भी आया, जब नर्मदा नदी में भीषण बाढ़ आई. उस समय बाबा आश्रम के बाहर पीपल के वृक्ष के नीचे खड़ेश्वरी तपस्या में लीन थे. पानी धीरे-धीरे बढ़ते हुए उनके गले तक पहुंच गया, लेकिन उन्होंने अपनी साधना नहीं छोड़ी. जबकि, पूरा गांव ऊंचे स्थान पर पहुंचा गया था. जब पानी उतरने के बाद ग्रामीण वापस आए तब भी वे उसी अवस्था में तपस्यारत पाए गए.
मंदिरों में दान किए करोड़ो रुपए
आश्रम की भूमि डूब क्षेत्र में आने के कारण शासन की ओर से सियाराम बाबा को 2 करोड़ 57 लाख रुपए का मुआवजा मिला. लेकिन बाबा ने इस राशि में से एक पैसा भी अपने लिए नहीं रखा. पूरी राशि नांगलवाड़ी के भिलट मंदिर के निर्माण कार्य में दान कर दी. इसके अलावा उन्होंने जाम गेट स्थित पार्वती माता मंदिर के लिए भी 50 लाख रुपए का दान किया. बाबा हमेशा कहते थे, धन वहां जाए, जहां उसका सदुपयोग हो.
सियाराम बाबा न सिर्फ इंसानों से बल्कि जानवरों से भी उतना ही प्रेम करते थे. आश्रम में एक कुत्ता उनके पास अक्सर आता था. लोग कहते है कि, बाबा उसे अपनी थाली से ही खाना खिलाते और उसी में खुद भी भोजन करते थे. बाबा कहते भूख सबकी एक जैसी होती है, बर्तन अलग करने से प्रेम कम हो जाता है.
कर्म को मानते थे सबसे बड़ा वरदान
बाबा के पास नेता, संत, उद्योगपति, अभिनेता सहित कई लोगों आते थे. पर बाबा का व्यवहार सभी के लिए समान रहता. लोगो ने उन्हें बंगला, गाड़ी, धन संपत्ति देना चाही, पर बाबा ने 10 रुपए के सिवाय कभी कुछ नहीं लिया. जब कोई आशीर्वाद मांगता तो बाबा कहते – “मैं कौन होता हूं आशीर्वाद देने वाला? मेरे आशीर्वाद से कुछ नहीं होगा, अच्छे कर्म करो, वही सबसे बड़ा आशीर्वाद है”. यही बात वह हर भक्त को समझाते, और यही उनका असली ’गुरु मंत्र’ था.
करीब 100 वर्षों तक जीवित रहने वाले सियाराम बाबा कभी चश्मा नहीं पहनते थे. बाबा हनुमानजी के परम भक्त थे लगभग 18 घंटे रोजाना दीप जलाकर बैठे-बैठे रामायण का पाठ करते और सुबह 4 बजे उठकर स्वयं नर्मदा परिक्रमा वासियों के लिए चाय बनाते थे. सर्दी, गर्मी या बारिश, मौसम कोई भी हो, बाबा हमेशा एक लंगोट में रहते थे. शनिवार को नियमित रूप से हनुमानजी को चोला चढ़ाते.
गुरु पूर्णिमा पर भी आश्रम पर उमड़ी भीड़
इस वर्ष गुरु पूर्णिमा पर बाबा के देह त्याग के बाद पहली बार भक्त उनके दर्शन से वंचित रहे. लेकिन उनकी समाधि और चरण पादुका के दर्शन कर श्रद्धालु भाव विभोर हो उठे. चुकी, दिसम्बर 2024 में बाबा ने करीब 95 वर्ष की उम्र में अपनी देह त्याग दी. आश्रम के सामने ही उनका अंतिम संस्कार हुआ. यहां भंडारे में हजारों लोगों ने प्रसादी भी ग्रहण की. आश्रम पर अब बाबा का एक मंदिर बनाकर मूर्ति स्थापित की जाएगी.