शरीर के आधे हिस्से ने छोड़ा साथ, फिर भी नहीं मानी विशाखा ने हार और…

शरीर के आधे हिस्से ने छोड़ा साथ, फिर भी नहीं मानी विशाखा ने हार और…


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Khandwa News: विशाखा पाराशर के माता-पिता ने बेटी को न केवल स्नेह दिया बल्कि हर कदम पर उसकी मदद की. उनका विश्वास और समर्थन बेटी के आत्मविश्वास का आधार बना, जो उन्हें घायल शरीर के बावजूद रोज अभ्यास करने और आगे बढ…और पढ़ें

खंडवा. मध्य प्रदेश के खंडवा की बेटी विशाखा पाराशर ने अपनी अद्भुत जीत और संघर्ष से साबित कर दिया कि हिम्मत हो तो हर चुनौती कदम चूमती है. बचपन में हुई जिंदगी बदलने वाली दुर्घटना ने उन्हें जकड़ लिया था. छत से गिरने के बाद उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई थी, जिससे शरीर का निचला हिस्सा काम करना बंद हो गया. डॉक्टरों ने कहा कि वह अब कभी सामान्य नहीं हो पाएंगी लेकिन विशाखा ने अपने हालात को कमजोरी की जगह प्रेरणा बना लिया. उन्होंने धैर्य दिखाया, कठिनतम शारीरिक चुनौतियों का सामना किया और तलवारबाजी जैसी अनुशासन और फुर्ती की मांग वाले खेल को अपनी चुनौती मान लिया.

विशाखा पाराशर के पिता विजय पाराशर और मां पौषा पाराशर ने बेटी को न केवल स्नेह दिया बल्कि हर कदम पर उसकी मदद की. उनका विश्वास और समर्थन विशाखा के आत्मविश्वास का आधार बना. यही आधार था, जो उन्हें घायल शरीर के बावजूद रोज अभ्यास करने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता रहा. चेन्नई में 4 से 6 जुलाई को आयोजित नेशनल फेंसिंग चैंपियनशिप (बी‑कैटेगरी) में विशाखा ने जबरदस्त परफॉर्मेंस दी. उन्होंने एक स्वर्ण और दो रजत पदक जीते. इन मेडल से उन्होंने न सिर्फ व्यक्तिगत रूप से बल्कि खंडवा जिले और मध्य प्रदेश का नाम रोशन किया है.

विशाखा की कहानी हर किसी के लिए प्रेरणा
विशाखा की सफलता से खंडवा जनपद में खुशी की लहर है. उनकी उपलब्धि सिर्फ एक खेल की जीत नहीं बल्कि एक संदेश है. उनकी कहानी उन सब के लिए प्रेरणा है, जो अपने जीवन में किसी न किसी बाधा से जूझ रहे हैं. उनका आत्मबल दिखाता है कि सही समर्थन और आत्मविश्वास हो, तो इंसान अपने भाग्य को स्वयं मोड़ सकता है. विशाखा पाराशर की यह कहानी केवल उन लोगों को प्रेरित नहीं करती, जो खेल में रुचि रखते हैं बल्कि उस हर व्यक्ति को हिम्मत देती है, जो किसी न किसी चुनौती से जूझ रहा है. हादसे, चोट या विकलांगता जैसी विपत्तियां सफलता का रास्ता बंद नहीं कर सकतीं बल्कि संघर्ष और आत्मबल को बुलंद करती हैं.

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