खंडवा की खुशबू से महकेगा दिल्ली और UP का बाजार, बनेगा परफ्यूम और…

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Khandwa News: स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं ने इस साल 150 एकड़ के बड़े रकबे में कस्तूरी (सुगंध) और अंबाड़ी की भाजी की बोवनी की है. अंबाड़ी के फूलों का इस्तेमाल फूड कलर और जेली बनाने में किया जाएगा और कस्तू…और पढ़ें

खंडवा. आज हम आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहे हैं, जो दिखाती है कि कैसे पारंपरिक खेती से हटकर कुछ नया करने से हमारे किसान भाई और बहनें सफलता की नई इबारत लिख सकते हैं. मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाएं अब औषधीय फसलों की खेती में एक क्रांति ला रही हैं. उनकी मेहनत और नवाचार के दम पर खंडवा की धरती पर उगने वाली सुगंध और अंबाड़ी की खुशबू अब दूर दिल्ली और उत्तर प्रदेश के बाजारों तक पहुंचने वाली है.

खंडवा, पंधाना और खालवा तहसीलों में कृषि नमामि आजीविका फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी से जुड़ी ये महिलाएं लगातार औषधीय खेती में नए प्रयोग कर रही हैं. कंपनी के सीईओ सुनील पंडोले लोकल 18 को बताते हैं कि पहले यह काम केवल पंधाना ब्लॉक के जलकुआं में स्वयं सहायता समूह की महिलाएं कर रही थीं लेकिन अब यह व्यवसाय धीरे-धीरे खंडवा और खालवा तक फैल गया है और इन विकासखंडों की महिलाएं भी उत्साहपूर्वक औषधीय फसलों की खेती में जुट गई हैं. सबसे खास बात यह है कि ये महिलाएं केवल उत्पादन ही नहीं कर रही हैं बल्कि अपनी फसल की बिक्री भी स्वयं कर रही हैं, जिससे वे आत्मनिर्भर बन रही हैं.

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150 एकड़ जमीन में की बोवनी
इस साल महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़ी इन मेहनती महिलाओं ने 150 एकड़ के बड़े रकबे में कस्तूरी (सुगंध) और अंबाड़ी की भाजी की बोवनी की है. सुनील पंडोले के अनुसार, अंबाड़ी के फूलों का उपयोग फूड कलर और जेली बनाने में किया जाएगा जबकि कस्तूरी के सुगंधित बीजों का इस्तेमाल परफ्यूम बनाने में होगा. यह सुनकर आपको हैरानी होगी लेकिन उत्तर प्रदेश और दिल्ली की बड़ी कंपनियों ने इन महिला समूहों को इन उत्पादों के लिए ऑर्डर भी दे दिए हैं. यह खंडवा के किसानों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है.

हर्बल प्रोडक्ट का भी उत्पादन
यह कहानी सिर्फ कस्तूरी और अंबाड़ी तक सीमित नहीं है, स्वयं सहायता समूह की ये महिलाएं कई अन्य हर्बल प्रोडक्ट का भी उत्पादन कर रही हैं, जिनमें अश्वगंधा, मोरिंगा, हरण, आंवला, कुसुम, स्टीविया, चिया, अंबाड़ी, तुलसी और मुश्तदाना शामिल हैं. वे इन फसलों का बड़ी मात्रा में उत्पादन करती हैं और फिर प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) के माध्यम से कुछ सामग्री का पाउडर भी बनाती हैं. इसके अलावा वे नीम, बहेड़ा और जंगल तुलसी का भी संग्रहण करती हैं. पिछले साल इस कंपनी ने पांच लाख रुपये का बहेड़ा इकट्ठा कर कंपनियों को बेचा था, जो उनकी व्यावसायिक कुशलता का प्रमाण है.

15 हजार रुपये प्रति क्विंटल की कमाई
अब बात करते हैं आर्थिक लाभ की. कृषि नमामि आजीविका कंपनी के अनुसार, इन औषधीय फसलों की खेती से महिलाएं पारंपरिक फसलों की तुलना में दोगुना उत्पादन और दोगुना लाभ कमा रही हैं. ये फसलें प्रति एकड़ 11 क्विंटल का शानदार उत्पादन देती हैं और इन्हें बेचने पर 15 हजार रुपये प्रति क्विंटल की कमाई होती है. कंपनी इन उपज को किसानों से खरीदती है और फिर उत्तर प्रदेश और दिल्ली की फर्मों को सप्लाई करती है. यह पहल न केवल महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बना रही है बल्कि यह पारंपरिक कृषि पद्धतियों में नवाचार को भी बढ़ावा दे रही है. यह दिखाता है कि कैसे छोटे स्तर पर शुरू किया गया एक विचार बड़े पैमाने पर बदलाव ला सकता है. खंडवा की यह सुगंधित क्रांति सिर्फ उत्पादों की बात नहीं है बल्कि यह महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास की भी एक प्रेरणादायक कहानी है.

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